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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दोनों चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है और अब एग्जिट पोल्स के नतीजों ने राज्य की सियासत को गर्मा दिया है। ज्यादातर सर्वे में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है, जबकि महागठबंधन पिछड़ता नजर आ रहा है। अगर 14 नवंबर को आने वाले वास्तविक नतीजे इन अनुमानों से मेल खाते हैं, तो नीतीश कुमार एक बार फिर इतिहास रच देंगे, लगातार 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में।
बिहार की राजनीति में सत्ता के समीकरण भले हर बार बदले हों, लेकिन सत्ता की चाबी दो दशकों से एक ही व्यक्ति के पास रही है - नीतीश कुमार। चाहे गठबंधन किसी भी रंग का रहा हो, नीतीश हर दौर में केंद्र में बने रहे। उनका यह सफर केवल राजनीतिक सफलता की कहानी नहीं, बल्कि बिहार की बदलती सामाजिक संरचना और नेतृत्व शैली की भी झलक देता है।
साल 2000 में जब नीतीश पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब उनके पास बहुमत नहीं था और उन्हें 7 दिनों में इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन यह उनकी कहानी की शुरुआत थी। 2005 के अक्टूबर में उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सत्ता में वापसी की और पहली स्थिर सरकार बनाई। 2010 में नीतीश के नेतृत्व में एनडीए ने प्रचंड बहुमत हासिल किया, जब जदयू और भाजपा ने मिलकर 206 सीटें जीतीं, जो बिहार की राजनीति में अब तक का एक दुर्लभ रिकॉर्ड है।
2014 में नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद नीतीश ने एनडीए से अलग राह चुनी, लेकिन 2015 में उन्होंने लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर महागठबंधन बनाकर जबरदस्त वापसी की। यह चुनाव बिहार की राजनीतिक दिशा बदलने वाला साबित हुआ। हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद 2017 में उन्होंने लालू से नाता तोड़ा और दोबारा भाजपा से हाथ मिला लिया।
2020 का चुनाव नीतीश के लिए सबसे पेचीदा रहा। RJD सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन एनडीए ने 125 सीटों के साथ सरकार बनाई और भाजपा की अधिक सीटें होने के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी फिर नीतीश को मिली। 2022 में उन्होंने एक बार फिर राजनीतिक पैंतरा बदला और महागठबंधन में लौट आए, लेकिन जनवरी 2024 में फिर एनडीए का दामन थामते हुए नौवीं बार मुख्यमंत्री बने।
अब 2025 के एग्जिट पोल्स एक बार फिर उनके पक्ष में संकेत दे रहे हैं। अगर नतीजे इन अनुमानों के अनुरूप रहे, तो नीतीश कुमार भारतीय राजनीति में एक अनोखा रिकॉर्ड बनाएंगे, दसवीं बार मुख्यमंत्री बनने वाले पहले नेता के रूप में। यह उपलब्धि न केवल बिहार बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अभूतपूर्व मानी जाएगी।
14 नवंबर को जब मतगणना होगी, तब यह साफ हो जाएगा कि क्या नीतीश कुमार की यह राजनीतिक रणनीति एक बार फिर कामयाब होती है या जनता इस बार बदलाव का मन बना चुकी है। लेकिन फिलहाल एग्जिट पोल्स का रुझान इस ओर इशारा कर रहा है कि बिहार की सत्ता की चाबी एक बार फिर उसी नेता के हाथ में जाने वाली है, जिसने पिछले 25 वर्षों से हर राजनीतिक धारा को अपने इर्द-गिर्द घूमने पर मजबूर किया है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 सिर्फ सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं, बल्कि नीतीश कुमार की राजनीतिक स्थिरता की परीक्षा भी है। अगर NDA को बहुमत मिलता है, तो यह चुनाव भारतीय राजनीति में उस नेता की अमर गाथा दर्ज करेगा जिसने हर परिस्थिति में खुद को “अपरिहार्य” बनाए रखा।
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