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Explainer : जब 'अपने' ही बने दुश्मन, बिहार की 35+ सीटों पर बागी बिगाड़ रहे खेल | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार लड़ाई सिर्फ दो गठबंधनों NDA और महागठबंधन के बीच नहीं है, बल्कि 'अपनों' के खिलाफ भी है। 35 से भी ज्यादा सीटें ऐसी हैं, जहां टिकट न मिलने से नाराज बागी निर्दलीय या छोटे दलों से ताल ठोक रहे हैं, जिससे सियासी समीकरण बुरी तरह गड़बड़ा गया है। इन 'विभीषणों' के कारण कई हॉट सीटों पर बड़े दलों के उम्मीदवारों की हार-जीत तय हो सकती है, और निष्कासन की कार्रवाई के बावजूद बागी झुकने को तैयार नहीं हैं।
बिहार की राजनीति का इस बार का अध्याय, अंदरूनी कलह और बगावत की स्याही से लिखा जा रहा है। विधानसभा चुनाव 2025 में एक तरफ जहां दोनों प्रमुख गठबंधन - NDA एनडीए और महागठबंधन - एक-दूसरे को मात देने की रणनीति बना रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपनी ही पार्टी के असंतुष्ट नेताओं से जूझना पड़ रहा है। यह बगावत इतनी बड़ी है कि यह 35 से अधिक सीटों पर जीत-हार का अंतर तय करने की क्षमता रखती है।
सत्ता की राह में रोड़ा बगावत का गणित
यह बगावत सिर्फ पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों तक सीमित नहीं है, बल्कि कई जगहों पर सहयोगी दल के उम्मीदवार के खिलाफ भी 'अपनों' ने मोर्चा खोल दिया है।
निर्दलीय चुनौती: अधिकांश बागी नेता निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे हैं, जिससे दोनों गठबंधनों के वोट कटेंगे।
निष्कासन का दांव: राजद ने जहां 37 पदाधिकारियों को, तो वहीं जदयू ने दो पूर्व मंत्रियों और 4 विधायकों समेत 16 नेताओं को निष्कासित कर दिया है। यह कार्रवाई विद्रोहियों को शांत करने के लिए की गई है, लेकिन जमीन पर इसका असर अभी दिखना बाकी है।
खोजी रिपोर्ट: राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर ये बागी उम्मीदवार 5000 से 15000 तक वोट भी खींचने में सफल रहे, तो इसका सीधा असर प्रमुख गठबंधनों के नतीजों पर पड़ेगा, खासकर उन सीटों पर जहां मुकाबला कड़ा है।
किसे कितना 'अपनों' का डर? दल-वार बगावत की सूची
बिहार में बगावत की आग हर बड़े दल को झुलसा रही है। सबसे ज्यादा नाराजगी राजद और जदयू में दिख रही है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस भी इससे अछूते नहीं हैं।
राष्ट्रीय जनता दल RJD 'लालटेन' को लगी सेंध
राजद में बड़ी संख्या में नेता टिकट न मिलने से नाराज हैं। ये बागी कई ऐसी सीटें हैं जहां पार्टी का मजबूत जनाधार रहा है, लेकिन अब ये वोट-कटवा Vote-Cutter बनकर चुनौती पेश कर रहे हैं।
जनता दल यूनाइटेड JDU: नीतीश के सिपाही ही बागी
जदयू में भी वरिष्ठ नेताओं और मौजूदा विधायकों का निष्कासन यह दिखाता है कि अंदरूनी असंतोष कितना गहरा है। बागी अपने साथ वोटबैंक का एक हिस्सा लेकर जा रहे हैं, जो पार्टी को नुकसान पहुंचाएगा।
गोपालपुर: यहां बुलो मंडल के खिलाफ गोपाल मंडल का बागी होना, एक स्थानीय दिग्गजों की सीधी टक्कर है।
बरबीघा: डॉ कुमार पुष्पंजय के सामने सुदर्शन कुमार निर्दलीय की चुनौती।
नवीनगर: चेतन आनंद के मुकाबले लव कुमार सिंह निर्दलीय का ताल ठोकना।
भारतीय जनता पार्टी BJP और कांग्रेस Congress
भाजपा और कांग्रेस में भी बगावत के इक्का-दुक्का मामले सामने आए हैं जो कड़े मुकाबले वाली सीटों पर समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
कुढ़नी: भाजपा ने केदार गुप्ता के खिलाफ धर्मेंद्र कुमार उर्फ अबोध निर्दलीय का मैदान में होना।
जाले: कांग्रेस के ऋषि मिश्रा के सामने डॉ मशकूर उस्मानी निर्दलीय की चुनौती, खासकर मुस्लिम वोटबैंक के ध्रुवीकरण पर असर।
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सहयोगी दल के खिलाफ बगावत
गठबंधनों में 'विश्वासघात'बड़ी चिंता की बात यह है कि कई सीटों पर दोनों गठबंधन NDA और महागठबंधन के नेता अपने ही गठबंधन के सहयोगी दल के उम्मीदवार के खिलाफ खड़े हो गए हैं। यह 'विश्वासघात' गठबंधन धर्म पर सवाल खड़े कर रहा है।
महागठबंधन के अंदरूनी झगड़े
कटिहार: वीआईपी के उम्मीदवार सौरभ अग्रवाल के सामने राजद के रामपकाश महतो निर्दलीय खड़े हैं।
बरबीघा: कांग्रेस के त्रिशूलधारी सिंह के खिलाफ राजद के सतीश कुमार निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं।
NDA में भी खींचतान: NDA के लिए सबसे बड़ी चुनौती
जदयू के उन बागी नेताओं से है जो भाजपा, रालोमो या लोजपा-आर के उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान में हैं।
विश्लेषण: दिनारा, मोतिहारी, और साहेबपुर कमाल जैसी सीटों पर जदयू के बागी नेता सीधे तौर पर NDA की जीत की संभावनाओं को कमजोर कर रहे हैं। इसी तरह, पारू में भाजपा का बागी रालोमो के लिए संकट खड़ा कर रहा है।
निचोड़: 35+ सीटें, किसकी सरकार?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का यह 'बागी फैक्टर' निर्णायक साबित हो सकता है। दोनों प्रमुख गठबंधनों के बीच के मुकाबले में, बागी उम्मीदवार तीसरे पक्ष के रूप में काम कर रहे हैं जो हार-जीत के मार्जिन को इतना कम कर देंगे कि नतीजों की भविष्यवाणी करना मुश्किल हो जाएगा।
राजनीतिक दल जल्द से जल्द इन बागियों को मनाकर या उन्हें निष्क्रिय करके अपने नुकसान को कम करने की कोशिश करने जुटे हुए हैं, लेकिन वक्त कम है और विद्रोहियों के हौसले बुलंद हैं। यह तय है कि ये 35 से अधिक सीटें इस बार बिहार की सत्ता की चाबी बन सकती हैं।
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