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HanumanDharanews Photograph: (ians)
नई दिल्ली। चित्रकूट में स्थित हनुमान धारा मंदिर का पौराणिक महत्व बेहद खास है। कहा जाता है कि लंका दहन के बाद जब भगवान हनुमान का शरीर जलने लगा, तो भगवान राम ने उनके ताप को शांत करने के लिए इस स्थान से शीतल जलधारा प्रवाहित की थी। यही जलधारा आज भी मंदिर की दीवार से निरंतर बहती है, जिसे चमत्कारी माना जाता है। यहां श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं और इस पवित्र जल से स्नान कर अपने दुखों से मुक्ति की कामना करते हैं। मंदिर की प्राकृतिक सुंदरता और अध्यात्म का संगम इसे अद्भुत बनाता है।
प्राकृतिक सुंदरता और अध्यात्म का संगम
मालूम हो कि शिव के अवतार अंजनी पुत्र हनुमानकी आस्था देश से लेकर विदेश तक में देखने को मिलती है। देश के अलग-अलग राज्यों में रामायण से जुड़े कई प्राचीन और सिद्ध पीठ मंदिर हैं, जहां भक्त मान्यताओं के आधार पर मंदिरों में दर्शन के लिए जाते हैं।
हर मुराद होती पूरी
मध्य प्रदेश के चित्रकूट में भगवान हनुमान का मंदिर है, जिसका संबंध रामायण से है। मंदिर को लेकर मान्यता है कि इसी जगह पर हनुमान ने अपनी पूंछ में लगी आग की जलन को शांत किया था। हनुमान धारा मंदिर मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित चित्रकूट धाम के पास है, जो सीतापुर से आठ किलोमीटर दूर करवी में पड़ता है। ये मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। माना जाता है कि विंध्य पर्वत शृंखला के पास मौजूद पहाड़ी पर एक शीतल जल धारा बहती है, जो कहां से निकलती है और कहां विलुप्त हो जाती है, पता नहीं चलता। ये शीतल जलधारा हनुमान जी की पूंछ और कंधे पर गिरती है। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में भगवान हनुमान के सामने मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
कई कथाएं प्रचलित
कई कथाएं मंदिर को लेकर प्रचलित हैं। माना जाता है कि रावण की लंका को जलाने के बाद हनुमान के शरीर में गर्मी और जलन का स्तर बढ़ गया था और उन्होंने अपनी परेशानी को श्रीराम जी के सामने रखा। श्रीराम ने हनुमान को चित्रकूट की विंध्य पर्वत शृंखला के पास बहती शीतल धारा के बारे में बताया और कहा कि ये धारा अपनी शीतलता के लिए प्रसिद्ध है, वहां जाकर तुम्हारी समस्याओं का निदान होगा। फिर क्या, इसी शीतल धारा में हनुमान ने अपनी पूंछ की जलन को शांत किया और वहां रहकर तपस्या भी की।
इसी के बाद मंदिर का नाम हनुमान धारा पड़ा। इसी मंदिर से थोड़ा आगे मां सीता की रसोई भी है, जहां आज भी पुराने बर्तन रखे हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी जगह पर मां सीता ने ऋषियों को अपने हाथों से भोजन पका कर ग्रहण करवाया था।
मंदिर बहुत प्राचीन है और भगवान हनुमान के दर्शन करने के लिए भक्तों को खड़ी सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है। हालांकि अब मंदिर के पास रोप-वे की सुविधा हो चुकी है। मंदिर में भगवान हनुमान की कई छोटी-छोटी मूर्तियां मौजूद हैं और एक मूर्ति पहाड़ पर बनाई गई है, जो काफी विशाल है। कहा जाता है कि विज्ञान भी इस बात का पता नहीं लगा पाया है कि शीतल जलधारा का उद्गम कहां से होता है और धारा कहां जाकर मिल जाती है। ये बात आज तक रहस्य बनी हुई है।
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