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इस शनिवार मार्गशीर्ष नवमी पर अद्भुत रवि योग: शनि-सूर्य उपासना का शुभ संयोग, बनेंगे नए काम

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सभी योगों में रवि योग बेहद ही शुभ और प्रभावशाली योग होता है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि शनिवार को पड़ रही है। इस दिन रवि योग का निर्माण हो रहा है।

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YBN News
RaviYogaShanidev

RaviYogaShanidev Photograph: (AI)

नई दिल्ली। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि इस बार शनिवार को पड़ रही है, जो एक अत्यंत शुभ संयोग है। इस दिन रवि योग का निर्माण हो रहा है, जिसे ज्योतिष में सभी अशुभ प्रभावों को नष्ट करने वाला माना जाता है। शनिवार का दिन भगवान शनिदेव को समर्पित है, और रवि योग के कारण इस दिन सूर्य देव (रवि) की पूजा का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस विशेष अवसर पर सूर्य और शनिदेव की एक साथ उपासना करने से सुख-समृद्धि, आरोग्य और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। भक्तों को इस शुभ योग में स्नान, दान और धार्मिक अनुष्ठान करने की सलाह दी जाती है।

कब बनता है योग

रवि योग तब बनता है, जब चंद्रमा का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से चौथे, छठे, नवें, दसवें और तेरहवें स्थान पर होता है। यह एक ऐसा समय होता है जिसमें निवेश, यात्रा, शिक्षा या व्यवसाय से संबंधित काम की शुरुआत करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, इस योग में किए गए कार्यों में विघ्न खत्म होते हैं और सफलता की संभावना बढ़ जाती है। इसका दीर्घकालिक सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है।

शुभ और प्रभावशाली योग

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सभी योगों में रवि योग बेहद ही शुभ और प्रभावशाली योग होता है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि शनिवार को पड़ रही है। इस दिन रवि योग का निर्माण हो रहा है। धार्मिक ग्रंथों में इस दिन जातकों के लिए कुछ विशेष उपाय भी बताए गए हैं। मान्यता है कि रवि योग में सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए सुबह पूजा के बाद अर्घ्य और 'ओम सूर्याय नमः' मंत्र का जाप जरूर करें। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में तेज, ऊर्जा और आत्मविश्वास बढ़ता है।

शनि की साढे़ साती और ढैय्या

नवमी तिथि पर शनिवार भी है। जिनके जीवन में शनि की साढे़ साती और ढैय्या चल रही है, वे शनिदेव की विधि-विधान से पूजा या व्रत रख सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र में मान्यता है कि शनि देव व्यक्ति को संघर्षपूर्ण जीवन देकर सोने की तरह चमकाते हैं। शनिवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार से शुरू कर सकते हैं। मान्यता है कि केवल 7 शनिवार व्रत रखने से छाया पुत्र शनिदेव के प्रकोप से बचा जा सकता है। साथ ही विशेष फल की प्राप्ति भी होती है।

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शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए

शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं, उन्हें गुड़, काले वस्त्र, काले तिल, काली उड़द की दाल और सरसों का तेल अर्पित करें और उनके सामने सरसों के तेल का दीया भी जलाएं, लेकिन ध्यान रहे ऐसा करते समय शनिदेव से आंखें न मिलाएं।

पीपल के पेड़ पर शनिदेव

मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर शनिदेव का वास होता है, जो जातक शनिदेव की पूजा या व्रत नहीं रख सकते, वे हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं और छाया दान करना (सरसों के तेल का दान) करें। इससे नकारात्मकता भी दूर होती है और शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

 (इनपुट-आईएएनएस)

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