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दक्षिण भारत के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक श्रीकालहस्ती है, जो भक्त की सच्ची भक्ति को दर्शाता है। यह मंदिर कई मायनों में खास है। मंदिर की बनावट से लेकर इसका इतिहास और मान्यता तक इसे भक्तों के बीच लोकप्रिय बनाती है। दूर-दूर से भक्ति मोक्ष की प्राप्ति और राहु-केतु के दोषों से छुटकारा पाने के लिए मंदिर में आते हैं। यहां नवविवाहित जोड़ों का आना भी अनिवार्य माना जाता है।
स्वर्णमुखी नदी के तट पर बना है मंदिर
श्रीकालहस्ती मंदिर तिरुपति के पास स्वर्णमुखी नदी के तट पर बना है। यह मंदिर भगवान शिव के कालहस्तीश्वर रूप को समर्पित है। मंदिर में भगवान शिव की वायु लिंगम (वायु तत्व) के रूप में पूजा की जाती है। यह मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि इसे दक्षिण कैलाशम (दक्षिण का कैलाश) माना जाता है, जहां भगवान शिव स्वयं आज भी विराजमान हैं।
देवी पार्वती की मां अंबिका के रूप में होती है पूजा
मंदिर के मूल गर्भगृह में देवी पार्वती की मां अंबिका के रूप में पूजा की जाती है। दक्षिण का कैलाश होने की वजह से इस मंदिर को मोक्षधाम माना जाता है। दक्षिणामूर्ति के रूप में विराजमान भगवान शिव मोक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं और मां अंबिका भक्तों की धन की कामना को पूरी करती हैं।
राहु-केतु के प्रभावों से बचने के लिए आते है भक्त
इसके अलावा, यह राहु-केतु के प्रभावों से बचने के लिए देश के सबसे प्रसिद्ध मंदिर में आता है। यहां राहु-केतु पूजा राहु काल के समय की जाती है। अलग-अलग राज्यों से भक्त आकर मंदिर में पूजा करते हैं। मंदिर को लेकर एक और मान्यता है कि हर नवविवाहित जोड़े को शादी के तीन महीने के अंदर मंदिर में दर्शन करने के लिए आना चाहिए। माना जाता है कि यहां आकर आशीर्वाद लेने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं, रिश्ता मजबूत होता है और वैवाहिक जीवन शांतिपूर्ण रहता है।
मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं
मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन सबसे ज्यादा भक्त 'कन्नप्पा नयनार' की कथा प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जंगल में कन्नप्पा रोजाना शिकार करके अपना पेट भरता था। एक दिन उसे अद्भुत पत्थर के दर्शन हुए, जिस पर फूल और मिठाई रखी थी। वह पत्थर शिवलिंग था, जिसकी पूजा गांव के ही एक पुजारी करते थे। कन्नप्पा ने पत्थर को भगवान मानकर पूजना शुरू कर दिया और रोज शाम को ताजा मांस चढ़ाने लगा। पुजारी शिवलिंग पर कच्चा मांस देखकर परेशान होता। उसने मांस का रहस्य पता लगाने के लिए रात के वक्त जंगल में ही इंतजार किया और कन्नप्पा को पूजा करते देखा, जो कभी शिवलिंग पर भाला मार रहा था तो कभी अपने पैर रख रहा था।
शिवलिंग की बाईं आंख से खून निकाला
पुजारी ने कन्नप्पा को रोकने की कोशिश की, लेकिन उससे पहले आकर भगवान शिव ने पुजारी को सब कुछ दूर से देखने का आदेश दिया। कन्नप्पा की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने शिवलिंग की बाईं आंख से खून निकाला। ये देखकर कन्नप्पा बहुत दुखी हुआ और बिना एक पल गवाए अपनी आंख निकालकर शिवलिंग पर लगा दी, जिसके बाद दाईं आंख से खून बहना शुरू हो गया। अब कन्नप्पा ने दूसरी आंख भी शिवलिंग पर लगा दी। कन्नप्पा की भक्ति से खुश होकर भगवान शिव ने जीवन दान दिया और मोक्ष भी प्रदान किया। आईएएनएस
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