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आयुर्वेद में औषधि लेने की सटीक टाइमिंग: दोष और रोग के अनुसार बदलता है नियम!

आयुर्वेद में दवा लेने का समय (काल) उसकी प्रभावशीलता को अधिकतम करने के लिए रोग और व्यक्ति के दोष पर निर्भर करता है। यह समय अलग-अलग हो सकता है।

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YBN News
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medicine Photograph: (ians)

नई दिल्ली। आयुर्वेद में दवा लेने का समय (काल) उसकी प्रभावशीलता को अधिकतम करने के लिए रोग और व्यक्ति के दोष पर निर्भर करता है। यह समय अलग-अलग हो सकता है। किसी भी परेशानी में समय पर दवा लेना काफी मायने रखता है। अगर सही समय पर दवा ली जाए तो आधा रोग वैसे ही खत्म हो जाता है। आयुर्वेद में दवा लेने की टाइमिंग को लेकर सटीक जानकारी दी गई है कि किस समय पर कौन सी दवा अच्छे से काम करती है और क्यों उसी समय दवा लेनी जरूरी है।

आयुर्वेद में दवा लेने के सिद्धांत को काल से जोड़ा गया है। काल मतलब समय। चरक संहिता के अनुसार, “कालो हि भेषजं,” यानी सही समय ही दवा का वास्तविक प्रभाव बढ़ाता है और ये तभी अच्छे से काम करती है, जब मनुष्य की शारीरिक प्रवृत्ति भी दवा के साथ मिलकर काम करे। आयुर्वेद में दवा लेने के सही समय को पांच भागों में बांटा गया है।

 खाली पेट (प्रातःकाल):

मुख्य रूप से कफ दोष से संबंधित विकारों (जैसे बलगम, मोटापा) और मजबूत रोगियों के लिए, ताकि औषधि तेजी से अवशोषित हो। पहला है सुबह खाली पेट दवा लेना। ये वो टाइमिंग होती है, जब शरीर किसी भी चीज का अवशोषण तेजी से करता है। इस समय ली गई दवा बहुत प्रभावी तरीके से काम करती है। आयुर्वेद में कमजोरी की दवा, मस्तिष्क की कमजोरी से जुड़ी दवा और ऑटोइम्यून बीमारी की दवा इसी समय दी जाती है।

भोजन से पहले:

दूसरा समय है दोपहर के लंच से पहले। पित्त दोष की समस्याओं के लिए यह समय अच्छा माना जाता है, क्योंकि भोजन के आने से पहले ही दवा अपना क्रियान्वयन शुरू कर देती है। इस समय शरीर में कफ की प्रवृत्ति बहुत ज्यादा होती है। ऐसे में इस वक्त कफ को कम करने वाली दवाओं का सेवन करने की सलाह दी जाती है। इस समय ली गई दवा कफ को कम करती है और जिन लोगों को भूख न लगने की परेशानी होती है, उन्हें भी खाने से पहले दवा लेने की सलाह दी जाती है। ये पाचन से जुड़ी परेशानियों के लिए दवा लेने का सही समय है।

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भोजन के बाद :

तीसरा समय है डिनर के बाद। व्यान वात (शरीर में संचरण) और उदान वात (वाणी, उत्साह) के विकारों में। साथ ही, वजन बढ़ाने के लिए भी भोजन के बाद का समय बेहतर है, क्योंकि यह कफ को बढ़ाता है। इस समय पित्त को शांत करने वाली दवा दी जाती है। आयुर्वेद के मुताबिक, इस समय शरीर का पित्त बढ़ा रहता है, और गैस, अल्सर, और पेट की गर्मी से जुड़ी दवा इसी समय दी जाती है। यह पेट की जलन को शांत करती है।

चौथा समय है डिनर के साथ दवा को लेना। यह समय औषधियों और दवाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। इस समय दवा शरीर को सीधा पोषण देती है और रक्त में घुल जाती है। इस समय शतावरी और अश्वगंधा लेना लाभकारी होता है।

शाम/रात को:

पांचवां समय है रात को सोने से पहले। वात दोष से जुड़े विकारों के लिए, क्योंकि वात का प्रभुत्व शाम के समय अधिक होता है। आयुर्वेद में इस समय को मरम्मत काल माना गया है। इस समय ली गई दवा शरीर पर गहरा प्रभाव डालती है। इस समय कब्ज और स्किन से जुड़ी दवाएं लेना सबसे ज्यादा लाभकारी होता है। दवा लेने की टाइमिंग औषधि और आयुर्वेद के समयानुसार निर्धारित की गई है। किसी भी दवा का सेवन चिकित्सक के परामर्श के बाद ही करें।

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विशेष नोट:

भोजन के बीच: कुछ विशेष औषधियों के लिए। गुग्गुल या तीव्र आसव-अरिष्ट जैसी गैस्ट्रिक जलन पैदा करने वाली दवाएं आमतौर पर भोजन के बाद दी जाती हैं। सही समय जानने के लिए हमेशा किसी योग्य आयुर्वेदिक वैद्य से परामर्श लें।

 (इनपुट-आईएएनएस)

Disclaimer: इस लेख में प्रदान की गई जानकारी केवल सामान्य जागरूकता के लिए है। इसे किसी भी रूप में व्यावसायिक चिकित्सकीय परामर्श के विकल्प के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। कोई भी नई स्वास्थ्य-संबंधी गतिविधि, व्यायाम, शुरू करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।"

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