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बेलआउट पैकेज का विरोध : उपभोक्ता परिषद ने कहा- यूपी में बिजली निजीकरण की नई चाल, कानूनी लड़ाई का ऐलान

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने केन्द्रीय बेलआउट पैकेज को ब्लैकमेलिंग बेल आउट पैकेज करार दिया है। परिषद ने आरोप लगाया कि औद्योगिक समूहों के फायदे के लिए यह योजना लाई जा रही है।

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Deepak Yadav
Electricity Privatisation

बेलआउट पैकेज का विरोध Photograph: (Google)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। राज्य की बिजली कंपनियों के लिए तैयार किए जा रहे केन्द्रीय बेलआउट पैकेज का विरोध शुरू हो गया है। केन्द्र सरकार इस पैकेज के जरिए लंबे समय से घटे में चल रहे ऊर्जा निगमों को उबारने का दावा कर रही है। जबकि इस योजना में निजीकरण के बाद ही वित्तीय सहायता देने की शर्त रखी गई है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इस योजना पर सवाल उठाते हुए इसे ब्लैकमेलिंग बेल आउट पैकेज करार दिया है। परिषद ने आरोप लगाया कि औद्योगिक समूहों के फायदे के लिए यह योजना लाई जा रही है। इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लडी जाएगी। 

पैकेज में निजीकरण की शर्त पर आपत्ति 

परिषद के अनुसार, केंद्र सरकार की प्रस्तावित नई बिजली वितरण सुधार योजना में राज्यों को राजकोषीय उत्तरदायित्व बजट प्रबंधन सीमा से अधिक उधारी की अनुमति देकर पुराने पीएफसी और आरईसी कर्ज को चुकाने की छूट दी जा रही है। वास्तव में यह सुधार नहीं बल्कि एक और वित्तीय पुनरावृत्ति बेल आउट है। योजना की पहली और सबसे बड़ी शर्त हर हाल में निजीकरण और बिजली दरों में बढ़ोतरी होगी। 

केंद्र के इशारे यूपी में हो रहा निजीकरण

संगठन ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के इशारे उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किया जा है। लेकिन परिषद के कड़े विरोध के चलते वह सफल नहीं हो सकी। अब वित्तीय सहायता के नाम केन्द्र ने दोनों डिस्कॉम को निजी हाथों में सौंपने की नई चाल चली है। इससे पहले भी जब विदेशी कोयला खरीदने का केन्द्र ने दबाव बनाया था, तब परिषद के विरोध के चलते सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा था। प्रदेश में विदेशी कोयला नहीं खरीदा गया था। 

सुधार सिर्फ कागजों पर सुधार

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि यह योजना भी एपीडीआरपी, आर-एपीडीआरपी, एफआरपी, उदय और आरडीएसएस की तरह केवल कागजी सुधार साबित होगी। हर पांच साल में नई योजना आती है। कर्ज पुनर्गठन होता है, लेकिन वास्तविक सुधार जैसे बिजली वितरण दक्षता, घाटा नियंत्रण, समय पर सब्सिडी भुगतान और जवाबदेही अब भी दूर की कौड़ी है। 

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वितरण हानियों और उपभोक्ता सेवा में सुधार नहीं

वर्मा ने कहा कि अब तक की सभी योजनाएं केवल कर्ज मुक्ति या बैलेंस शीट सुधार तक सीमित रहीं। जमीनी स्तर पर न तो वितरण हानियों में कमी आई, न ही उपभोक्ता सेवा सुधरी। केंद्र अब राज्यों को राजकोषीय उत्तरदायित्व बजट प्रावधान सीमा से बाहर जाकर पुराने कर्ज चुकाने की छूट दे रहा है, जिससे ऋण का वास्तविक भुगतान नहीं, केवल रंग रोगन यानी पुराने कर्ज को नए से ढकना हो रहा है।

निजी कंपनियां कमा रहीं मोटा मुनाफा

केंद्र सरकार दावा कर रही कि निजी कंपनियां दक्षता लाएंगी, लेकिन हकीकत यह है कि पूरे देश में केवल कुछ ही निजी कंपनियां (रिलायंस, टाटा, अदाणी, टॉरेंट, सीईएससी) बिजली वितरण में मोटा मुनाफा कमा रही हैं। जबकि उपभोक्ता को कोई सुविधा नहीं दे रही हैं। वर्मा ने कहा कि बिजली क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या तकनीकी नहीं, राजनीतिक है। मुफ्त बिजली, अनुदान में देरी और घाटे को छिपाना ये सब चुनावी राजनीति का हिस्सा बन चुके हैं। जब तक इन पर लगाम नहीं लगेगी, कोई भी योजना टिकाऊ नहीं हो सकती।

वास्तविक सुधार के लिए जरूरी कदम

  • प्रत्येक फीडर व ट्रांसफॉर्मर की पारदर्शी ऊर्जा लेखा प्रणाली एनर्जी अकाउंटिंग और उसका सार्वजनिक खुलासा।
  • केंद्र से मिलने वाले धन को प्रदर्शन से जोड़ना- केवल कागजी अनुपालन पर नहीं।
  • स्वतंत्र और सशक्त नियामक आयोग (SERCs) जो समय पर टैरिफ संशोधन व सब्सिडी भुगतान सुनिश्चित कर सकें।
  • बिजली कंपनियों मे उच्च प्रबंधन में केवल तकनीकि दक्ष अभियंता की ही तैनाती की जाएं।
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