Bihar चुनाव: ओवैसी की दस्तक, आगे क्या होगा?

ओवैसी की पार्टी AIMIM ने मुख्य रूप से बिहार के सीमांचल क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जैसे मुस्लिम बहुल जिले शामिल हैं।

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'वोट कटवा' का तमगा

AIMIM को अक्सर राजनीतिक गलियारों में "वोट कटवा" पार्टी कहा जाता है। खासकर उन राज्यों में जहां वह मुख्य रूप से मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश करती है।

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महागठबंधन को सीधा नुकसान

बिहार में मुस्लिम मतदाता सीधे तौर पर RJD और कांग्रेस के महागठबंधन का समर्थन करते रहे हैं। AIMIM इन वोटों में सेंध लगाकर महागठबंधन को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है।

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RJD की MY समीकरण पर चोट

RJD का सामाजिक आधार मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण पर टिका है। ओवैसी की एंट्री मुस्लिम (M) वोट बैंक को कमजोर करके RJD के आधार को हिलाने का काम कर सकती है।

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NDA को अप्रत्यक्ष लाभ

यदि मुस्लिम वोटर AIMIM और महागठबंधन के बीच बंटे, तो कम वोटों के साथ भी NDA के उम्मीदवार जीत सकते हैं। वोटों का यह विभाजन NDA के लिए जीत का रास्ता बन सकता है।

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ध्रुवीकरण की राजनीति

ओवैसी के आक्रामक भाषण अक्सर राजनीतिक ध्रुवीकरण, एक तरफ मुस्लिम वोटों को AIMIM की ओर खींचते हैं, वहीं दूसरी ओर बहुसंख्यक वोटर्स एकजुट होकर भाजपा के पक्ष में जाते हैं!

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युवा मुस्लिम नेतृत्व की चाहत

कुछ युवा मुस्लिम मतदाता RJD/कांग्रेस के मुकाबले ओवैसी में एक मजबूत और मुखर मुस्लिम नेता का चेहरा देखते हैं। यह नया रुझान AIMIM को बढ़त दिलाता है।

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2020 का प्रदर्शन

बिहार में 2020 के विस चुनाव में, AIMIM ने 5 सीटें जीती थीं, जिससे यह साफ हो गया था कि सीमांचल में ओवैसी 2025 में चुनौती पेश करेंगे।

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