Dev Deepawali पर लाखों दीपों और 3-D मैपिंग से जगमगाएगी काशी

वाराणसी में देव दीपावली पर 10 लाख दीपों से जगमगाएगी काशी कार्यक्रम की शुरुआत शंखनाद और डमरू की गूंज से होगी।

शुरुआत शंखनाद और डमरू की गूंज से

वाराणसी में देव दीपावली की शुरुआत शंखनाद और डमरू की गूंज से होगी। यह ध्वनि भगवान शिव की उपस्थिति और काशी की दिव्य ऊर्जा का प्रतीक बनेगी।

10 लाख दीपों से जगमगाएगी नगरी

गंगा घाटों, तालाबों और कुंडों तक 10 लाख से अधिक दीप जलाए जाएंगे। पर्यटन विभाग और वाराणसी महोत्सव समिति मिलकर इस भव्य आयोजन की तैयारी कर रहे हैं।

क्यों मनाई जाती है देव दीपावली?

भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। देवताओं ने काशी में गंगा तट पर दीये जलाकर उत्सव मनाया। इसी कारण इसे ‘देवताओं की दिवाली’, ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ या ‘त्रिपुरोत्सव’ कहा जाता है।

काशी का अलौकिक दृश्य

दिवाली के 15 दिन बाद मनाया जाने वाला यह पर्व काशी की पहचान है। 84 घाटों पर लाखों दीये जलाकर गंगा आरती की जाती है। अस्सी घाट से पंचगंगा घाट तक हर सीढ़ी, हर मंदिर दीपों से जगमगाता है।

आस्था और परंपरा

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान (कार्तिक स्नान) का विशेष महत्व। श्रद्धालु दीपदान कर अपने पूर्वजों की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। शाम को विशेष गंगा आरती का आयोजन होता है।

कार्तिक पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व

माना जाता है इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। दीपदान और व्रत करने से मिलता है अक्षय पुण्य। यह दिन भक्ति और दान-पुण्य के माह का समापन भी है।

काशी-कथा’ 3-D शो का आकर्षण

25 मिनट का ‘काशी-कथा’ 3-D मैपिंग शो दिखाएगा। जिसमे शिव-पार्वती विवाह, भगवान विष्णु के चक्र पुष्करिणी कुंड की कथा को दर्शाया जाएगा।

श्रद्धा, प्रकाश और दिव्यता का संगम

यह पर्व सिर्फ दीपों का नहीं, बल्कि आस्था और अध्यात्म का उत्सव है। काशी में जलते हर दीपक में बसता है श्रद्धालुओं का विश्वास। देव दीपावली हमें सिखाती है।