महाराजा रणजीत सिंह — एक महान योद्धा और दयालु शासक। उनकी विरासत अमर रहे।

महाराजा रणजीत सिंह की पुण्यतिथि पर आज दुनिया उन्हें याद कर रही है। उनका जन्म 13 नवंबर 1780 को गुंजारवाल (अब पाकिस्तान में ) में हुआ था। गुजरांवाला, उस समय सिख मिसलों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, और अब यह आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में आता है।

शेर-ए-पंजाब का जन्म कहाँ हुआ था?

महाराजा रणजीत सिंह सुकर्चकिया मिसल के नेता महासिंह के पुत्र थे।

सिख साम्राज्य की स्थापना (1801)

रणजीत सिंह ने बिखरी हुई सिख मिसलों को एकजुट कर एक शक्तिशाली साम्राज्य खड़ा किया जिसकी राजधानी लाहौर थी।

हर धर्म का सम्मान

महाराजा ने बिखरे हुए सिख मिसलों को जोड़कर एक शक्तिशाली सिख साम्राज्य की नींव रखी।

हरमंदिर साहिब को स्वर्णमंदिर बनाया

महाराजा ने स्वर्ण मंदिर को सोने से मढ़वाया, जो आज भी उनकी आस्था का प्रतीक है।

कोहिनूर हीरा और उनकी समृद्ध विरासत

कोहिनूर हीरे पर अधिकार पाने के बाद, महाराजा रणजीत सिंह ने इसे अपनी निजी संपत्ति के रूप में रखने के बजाय, अपनी धार्मिक आस्था और भक्ति भाव को दर्शाते हुए पुरी के जगन्नाथ पुरी मंदिर को दान करने की इच्छा जताई थी।

महानायक का अंत

महाराजा रणजीत सिंह का निधन 27 जून 1839 को हुआ, और उनके साथ ही एक मजबूत, संगठित और धर्मनिरपेक्ष सिख साम्राज्य की नींव भी डगमगाने लगी। उनके बाद कोई भी उत्तराधिकारी उनकी तरह प्रभावशाली, दूरदर्शी या नेतृत्वकर्ता नहीं बन सका।

इतिहास में अमर नाम

वीरता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक के रूप में उन्हें आज भी याद किया जाता है। उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार और सम्मान का हक दिया। उनकी सेना में हिन्दू, मुस्लिम और यूरोपीय अधिकारी उच्च पदों पर आसीन थे। उन्होंने कभी धार्मिक भेदभाव नहीं किया। मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों की रक्षा की, और कई धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण भी कराया।