आस्था का महापर्व-जगन्नाथ रथ यात्रा

हर साल पुरी में निकलने वाली रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की भक्ति का अनुपम उत्सव है, जब भगवान स्वयं चल पड़ते हैं, यही है इस यात्रा का दिव्य चमत्कार।

रथ यात्रा का महत्व

यह रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की अनुपम परंपरा है, जिसमें वे स्वयं रथ पर सवार होकर करते हैं। यह आस्था और श्रद्धा का पर्व है, जो समाज में यह गहरी अनुभूति जगाता है कि ईश्वर सच्चे रूप में अपने भक्तों के साथ जुड़े हैं।

कहाँ होती है रथ यात्रा?

रथ यात्रा ओडिशा के पुरी शहर में होती है। यह भारत के चार प्रमुख धामों में से एक है और भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ जी को समर्पित है।

तीन रथ, तीन स्वरूप

भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए तीन विशाल लकड़ी के रथ बनाए जाते हैं जो हर साल नए बनाए जाते हैं।

भक्तों के हाथों चलती है भक्ति की गाड़ी

हजारों श्रद्धालु इन रथों को रस्सियों से खींचते हैं। मान्यता है कि रथ खींचने से पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गुंडिचा मंदिर की यात्रा

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जिसे उनकी मौसी का घर माना जाता है। वहाँ 7 दिन रुककर फिर वापसी करते हैं।

हज़ारों साल पुरानी परंपरा

यह उत्सव सिर्फ धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक रूप से भी बेहद समृद्ध है — लोक कला, संगीत और भक्तों का जनसैलाब इसे विश्वविख्यात बनाते हैं।

श्रद्धा और समर्पण का पर्व

यह यात्रा हमें सिखाती है कि ईश्वर दूर नहीं, हमारे बीच हैं। हर साल यह आयोजन करोड़ों लोगों को भक्ति, प्रेम और समर्पण का अनुभव कराता है।