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बरेली, वाईबीएन संवाददाता। शासन में 15 जून तक ट्रांसफर पॉलिसी लागू थी। चूंकि इस तारीख को रविवार था। इसलिए 16 जून तक बाबू, जेई और एई की ट्रांसफर सूची जारी की जाती रही। बरेली कृषि विभाग के अफसर, बाबू और अवर अभियंताओं ने मोटा लिफाफा देने के बदले अपनी मनचाही पोस्टिंग पा ली। कृषि निदेशालय में ट्रांसफर पोस्टिंग के नाम पर करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे हो गए। कृषि निदेशालय के डायरेक्टर डॉ जितेंद्र तोमर 30 जून को रिटायर होने वाले हैं। इसलिए, वह कृषि विभाग के बाबू, अवर अभियंता और अफसरों को मनचाही पोस्टिंग या पटल देने के लिए उन पर खासे मेहरबान रहे। कृषि विभाग में इस बात की चर्चा अब भी है कि इस बार ट्रांसफर पोस्टिंग में जिस तरह से बाबू, अवर अभियंता और अफसरों के खुलकर रेट तय करके उनसे मोटी रकम की वसूली की गई। उस तरह की वसूली उससे पहले कभी नहीं हुई।
बरेली में सबसे पहला ट्रांसफर ज्वाइंट डायरेक्टर कृषि डॉ राजेश कुमार का हुआ। उनको सहारनपुर में इसी पद पर नई तैनाती दी गई। सूत्रों के अनुसार डॉ राजेश कुमार का दिसंबर में प्रमोशन होना है। उनको बरेली से हटाने की उम्मीद न के बराबर थी। मगर, फिर भी वह अपना ट्रांसफर रुकवाने में नाकाम साबित हुए। जिला कृषि रक्षा अधिकारी अर्चना प्रकाश वर्मा का ट्रांसफर बुलंदशहर हो गया। हालांकि सूत्रों का कहना है कि पीपीओ ने कृषि निदेशालय में अपना ट्रांसफर फिरोजाबाद कराने के लिए लिफाफा पहुंचाया था। मगर, उस लिफाफे का वजन कम था। इसलिए, उनके लिफाफे को उतनी अहमियत नहीं मिली, जितनी कि मिलनी चाहिए थी। इसका रिजल्ट यह निकला कि अर्चना प्रकाश वर्मा को उनके मनचाहे जिले फिरोजाबाद न भेजकर बुलंदशहर भेज दिया गया। कृषि विभाग के सूत्रों के अनुसार अर्चना प्रकाश वर्मा के पति इटावा में डिप्टी डायरेक्टर भूमि संरक्षण के पद पर हैं। इसलिए, वह इटावा के पड़ोसी जनपद फिरोजाबाद या मैनपुरी में तैनाती पाना चाहती थीं। मगर, लिफाफे के कम वजन ने उनको मनचाही पोस्टिंग नहीं मिलने दी।
बांदा ट्रांसफर होने के बाद कोर्ट जाएंगे कार्यवाहक बीएसए
इसके बाद अगला नंबर था कार्यवाहक भूमि संरक्षण अधिकारी संजय सिंह का। शासन ने इनका ट्रांसफर बुंदेलखंड के बांदा जनपद में कर दिया। स्वयं को सत्तारुढ़ दल के बड़े नेताओं का करीबी बताकर स्टाफ पर धौंस जमाने वाले कार्यवाहक बीएसए संजय सिंह पहले तो बांदा ट्रांसफर हो जाने पर बहुत खुश थे। विभागीय सूत्रों का कहना है कि अपनी ऊंची पहुंच की शेखी बघारने के लिए दफ्तर में स्टाफ से बोले, हमने खुद ही अपना ट्रांसफर बांदा कराया है। जबकि हकीकत यह थी कि संजय सिंह कृषि निदेशालय में अपना ट्रांसफर रुकवाने के लिए पूरी सांठगांठ करके आए थे। मगर, उनकी यह सांठगांठ कुछ नेताओं के फोन कराने तक सीमित थी। बरेली में उनके एक सजातीय माननीय भी कार्यवाहक बीएसए को बचाने में लगे थे। मगर, ट्रांसफर में उनकी नहीं चली। चूंकि इनका लिफाफा लखनऊ पहुंचा नहीं था। इसलिए इनको बरेली से 650 किलोमीटर दूर बांदा भेजा गया। वैसे इनका घर उत्तराखंड के रुद्रपुर में है। सूत्रों का कहना है कि संजय सिंह ने अपने विभाग में पंडित दीनदयाल किसान समृदि्ध और डब्ल्यूडीसी योजना में करोड़ों के वारे-न्यारे कर लिए। उनके इस घपले की टीएसी जांच भी अंतिम दौर में है। उसमें संजय सिंह पर तगड़ी कार्रवाई तय मानी जा रही है। इसके चलते संजय सिंह किसी भी हाल में रुहेलखंड मंडल से बाहर नहीं जाना चाहते। वह अब अपने ट्रांसफर पर स्टे लेने के लेने के लिए कोर्ट जाने की तैयारी में हैं।
डीडी दफ्तर के बाबुओं का लिफाफा खूब काम आया
डिप्टी डायरेक्टर कृषि कार्यालय के दो बाबूओं का लिफाफा पूरी तरह से काम में आ गया। घपले-घोटाले में महारथ हासिल करने वाले बाबू बुलेट राजा ने एक बार फिर भी मोटी रकम देकर अपनी मनचाही पोस्टिंग पा ली। सूत्रों का कहना है कि बाबू बुलेट राजा मेरठ में पोस्टिंग पाने के लिए कृषि निदेशालय में लिफाफा देकर आए थे। मगर, उनके ही दफ्तर के दूसरे बाबू का लिफाफा उन पर भारी पड़ गया। स्थापना बाबू को मेरठ में पोस्टिंग मिल गई क्योंकि उनका लिफाफा वजनदार था। बुलेट राजा का लिफाफा थोड़ा हल्का था। इसलिए बुलेट राजा की पोस्टिंग मेरठ के पड़ोसी जिले बागपत में हाे गई। डीडी दफ्तर के मजनू टाइप के एक बाबू का तबादला बरेली मंडल से बाहर होना था। मगर, इनका लिफाफा टाइम से पहुंच गया था। उसका नतीजा यह निकला कि इनकी पोस्टिंग बरेली में ही जिला कृषि अधिकारी कार्यालय में हो गई। मजनू बाबू अपनी महिला मित्र को अकेले छोड़कर बरेली से बाहर नहीं जाना चाहते थे। लिफाफे ने इनकी यह इच्छा भी पूरी कर दी। बताते हैं कि बाबुओं में प्रदेश भर में सबसे भारी लिफाफा मजनू टाइम बाबू का ही था। वैसे सूत्रों का कहना है कि इन्होंने लखनऊ में अपने अलावा अपनी महिला मित्र का ट्रांसफर रुकवाने का लिफाफा भी देकर आए थे। इस तरह से इन्होंने दो लिफाफे दिए थे। मजनू टाइम बाबू की पत्नी भोजीपुरा के परिषदीय स्कूल में टीचर हैं। उनको अपने पति की हरकतों के बारे में पता नहीं है। जिला कृषि अधिकारी कार्यालय के एक चोटी वाले बाबू पहले मनचाहा पटल पाने के प्रयास करते रहे। मगर, जब नहीं मिला तो उन्होंने लखीमपुर खीरी अपना ट्रांसफर कराने में ही भलाई समझी।