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कृषि विभाग : डीडी भूमि संरक्षण नीरजा सिंह को जांच में क्लीनचिट देने का भुगतना पड़ सकता है खामियाजा

कृषि और भूमि संरक्षण की विभागीय जांच में डीडी भूमि संरक्षण नीरजा सिंह ने घोटालेबाजों को पूरी तरह से क्लीनचिट देकर बचा दिया था। मगर, अब उनको इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

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Sudhakar Shukla
कृषि विभाग का दफ्तर नैनीताल रोड बिलवा बरेली

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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन के आदेश पर बीते साल हुई कृषि और भूमि संरक्षण विभाग की विभागीय जांच में डीडी स्वायल नीरजा सिंह ने पूर्व बीएसए संजय सिंह समेत सभी बाबू, पूर्व जिला कृषि अधिकारी, जिला योजना सलाहकार, राजकीय गोदाम प्रभारियों को करोड़ों के घोटाले में क्लीनचिट दे दी थी। बाद में जब इस घोटाले की टीएसी जांच हुई तो उसमें बड़े पैमाने पर अनियमितताएं पाई गईं। अब दोनों जांच रिपोर्ट शासन के पास हैं। डिप्टी डायरेक्टर भूमि संरक्षण नीरजा सिंह को इतने बड़े घोटाले के गुनाहगारों को क्लीनचिट देने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। शासन उनकी जांच पर सवाल उठाएगा तो उनको अपनी जांच के प्रत्येक बिंदु का जवाब देना पड़ेगा। 

मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन ने फरवरी 2024 में कृषि और भूमि संरक्षण विभाग के घोटालों की जांच के आदेश दिए थे। उसके बाद जांच की प्रगति बहुत धीमी गति से चलती रही। कृषि विभाग के एक अनुभाग अधिकारी ने (जो अक्सर बरेली कृषि विभाग के बाबू और अफसरों के खर्चे पर ही नैनीताल घूमने जाते थे ) घोटालेबाजों के साथ मिलकर जांच की फाइल दबा दी। 11 जुलाई 2024 से फरवरी 2025 तक उन्होंने मुख्य सचिव की जांच पर शासन से बरेली कृषि विभाग को कोई रिमाइंडर ही नहीं भेजा। इसके चलते यह जांच लंबे समय तक दबी पड़ी रही। मगर, जब उनका पटल बदल गया तो जांच की फाइल ने एक बार फिर से तेजी पकड़ी। मगर, इस बार कृषि निदेशालय में एक बड़े अफसर ने, जो कि अब रिटायर हो चुके हैं, अपने सजातीय जिला कृषि अधिकारी को बचाने के लिए जांच आगे नहीं बढ़ने दी। बरेली से लेकर लखनऊ तक घपलेबाजों का इतना तगड़ा गैंग बना कि इसके आगे अधिकांश अधिकारियों को नतमस्तक होना पड़ा। इसके बाद सबसे पहले यह जांच डिप्टी डायरेक्टर नीरजा सिंह को दी गई। उन्होंने न तो मौके पर जाकर किसान समृद्धि और डब्ल्यूडीसी से काम देखे। न ही तकनीकी स्तर पर उनका परीक्षण किया। चूंकि पूर्व बीएसए संजय सिंह और डिप्टी डायरेक्टर नीरजा सिंह सजातीय होने के साथ ही अपने घर रुद्रपुर एक ही साथ आवागमन करते थे। इसलिए, उस जांच की कागजी खानापूरी करके उन्होंने सबको क्लीनचिट दे दी। मगर, टीएसी जांच के बाद डिप्टी डायरेक्टर भूमि संरक्षण को इतने बड़े घोटाले में विभागीय अफसर, बाबू, जिला योजना सलाहकार और राजकीय बीज गोदाम प्रभारियों को क्लीनचिट देना महंगा पड़ सकता है।     

जांच टीम को नहीं दिए थे पूरे अभिलेख 

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पूर्व बीएसए संजय सिंह ने मंडलायुक्त द्वारा गठित जांच टीम को किसान समृद्धि और डब्ल्यूडीसी योजना में अब तक खर्च हुई धनराशि के पूरे अभिलेख नहीं दिए। जांच टीम ने कई बार तत्कालीन जेडीए एग्रीकल्चर को इस संबंध में लगातार पत्राचार भी किया। आधे-अधूरे अभिलेख मिलने के चलते टीएसी जांच ठीक तरह से नहीं हो पाई। इतना ही नहीं, पूर्व बीएसए संजय सिंह ने जांच टीम के साथ सहयोग न करके उनके कार्यालय जाकर अभद्रता की। हद तो यहां तक हो गई कि अपनी ऊंची पहुंच का डर दिखाकर पूर्व बीएसए ने टीएसी जांच को प्रभावित करने का पूरा प्रयास किया। मगर, टीएसी टीम ने आधे-अधूरे अभिलेखों से जांच करके शासन को अपनी रिपोर्ट भेज दी। सूत्रों से पता चला है कि टीएसी जांच रिपोर्ट के आधार पर अब शासन स्तर से सरकारी धन के 15 करोड़ से ज्यादा के गबन की निष्पक्ष जांच के लिए अलग से एसआईटी गठित की गई है। इसकी मानीटिंग शासन स्तर से एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी कर रहे हैं। इसलिए, सरकारी धन के गबन में शामिल कृषि और भूमि संरक्षण विभाग का कोई भी अफसर, बाबू, जिला योजना का सलाहकार या राजकीय बीज गोदाम प्रभारी बच नहीं पाएगा।   

सीडीओ ने निलंबन को लिखा, विशेष टीम ने दोष मुक्त कर दिया 

तत्कालीन सीडीओ जगप्रवेश ने पेड बाई मी की रकम व्यक्तिगत खाते में ट्रांसफर करने के लिए उस समय के जिला कृषि अधिकारी धीरेंद्र सिंह चौधरी, जिला कृषि रक्षा अधिकारी अर्चना प्रकाश वर्मा समेत जिला योजना सलाहकार अमित कुमार संधू, विभागीय बाबू और सात राजकीय बीज गोदाम प्रभारियों को दोषी ठहराते हुए कृषि निदेशालय को इन पर निलंबन की कार्रवाई के लिए लिखा था। उसी जांच को तत्कालीन डायरेक्टर कृषि डाॅ जितेंद्र तोमर ने सही न मानते हुए अपनी अलग से जांच टीम बनवाकर तत्कालीन जिला कृषि अधिकारी धीरेंद्र चौधरी को उसमें क्लीनचिट दिलवा दी। तत्कालीन जिला कृषि अधिकारी धीरेंद्र चौधरी की लखनऊ कृषि निदेशालय से इतनी तगड़ी सांठगांठ थी कि उनके निलंबन की रिपोर्ट भी डेढ़ साल से ज्यादा समय तक दबी रही। उसके बाद लखनऊ से अलग जांच टीम बनकर दोबारा जांच होने के बाद उसी मामले में उनको क्लीनचिट भी मिल गई। वर्तमान में धीरेंद्र चौधरी मथुरा के जिला कृषि अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। 

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