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डिप्टी डायरेक्टर कृषि कार्यालय नैनीताल रोड बरेली
बरेली,वाईबी एनसंवाददाता।
जाएं तो जाएं कहां ... समझेगा कौन यहां ... बुझे दिल की दास्तां ...। यह पुराना फिल्मी गीत डिप्टी डायरेक्टर (कृषि) कार्यालय के एक मजनूं बाबू पर पूरी तरह फिट बैठता है। बाबूजी का पुराने दफ्तर में सब कुछ अच्छा चल रहा था। मलाईदार पटल देखकर ऊपरी कमाई भी कर रहे थे। ऑफिस की सहकर्मी से दोस्ती करके बीच में चूकाबीच और नैनीताल घूमने भी चले जाते थे। मगर, अब अचानक तबादले की ऐसी गाज गिरी कि ऊपरी कमाई भी बंद। दोस्ती टूटने का खतरा भी बढ़ गया। तबादला होने के बाद अब कार्यवाहक डिप्टी डायरेक्टर (कृषि) ने उनको अपने कार्यालय से रिलीव भी कर दिया। मगर, नए दफ्तर में जिला कृषि अधिकारी ने बाबूजी को ज्वाइन नहीं कराया। यानी कि आसमान से गिरे तो खजूर में लटक गए। दोबारा पुराने दफ्तर में लौटकर गए और डीडी (कृषि) से गुहार लगाई कि वापस ले लो। मगर, उन्होंने शासन के नियमों का हवाला देकर मना कर दिया। अब बेचारे दुखी हैं कि जाएं तो जाएं कहां ...।
दरअसल, डिप्टी डायरेक्टर (कृषि) कार्यालय में लंबे समय से कार्यरत एक बाबूजी को उनके ऑफिस में प्यार से मजनूं बाबू कहकर बुलाते हैं। यह बाबूजी अपने दफ्तर में कनिष्ठ सहायक पद पर कार्यरत थे। उसमें ऊपरी कमाई वाले मलाईदार पटल मिलेट्स योजना,एनएफएसएम योजना, किसान पाठशाला, जनसूचना अधिकार मिनीकिट योजना के काम देखते थे। पुराने वाले डिप्टी डायरेक्टर से अच्छी सेटिंग थी। इसलिए, तमाम शिकायतें होने और जांच के बाद भी उन्होंने बाबूजी पर कोई एक्शन नहीं लिया। यहां तक कि पुराने वाले डीडी बाबूजी के चक्कर में खुद निपट गए। मगर, बाबूजी को अंत समय तक बचाए रखा। मगर, बाबूजी के विरोधियों ने उनका पीछा बाद में नहीं छोड़ा। 15 जून को ट्रांसफर होने के बाद बाबूजी तीन तिकड़म करके नए कार्यालय के लिए अपनी रिलीविंग रोके हुए थे। मगर, वह रुकी नहीं। डीडी (कृषि) ने सीएम पोर्टल पर शिकायत के बाद मजनूं बाबू को अपने दफ्तर से कुछ दिन पहले रिलीव कर दिया। मगर, बाबूजी की हरकतों को देखते हुए जिला कृषि अधिकारी ने भी अपने कार्यालय में ज्वाइन नहीं कराया। उन्होंने कह दिया कि मजनूं बाबू का जो कनिष्ठ सहायक का पद है, वह उनके यहां खाली नहीं है। अब बाबूजी, बेचारे आसमान से गिरे और खजूर में लटक गए। न इधर के रहे, न उधर के। ज्वाइनिंग से मना होने के बाद फिर से दौड़कर डीडी (कृषि) के पास गए। वहां उन्होंने कह दिया कि अब हम तो रिलीव कर चुके। दोबारा नहीं ले सकते। बाबूजी लखनऊ मुख्यालय से अटैच होने के कगार पर पहुंच गए हैं। न तो ऊपरी कमाई बची। न ही अपने ऑफिस की पुरानी दोस्त। सब कुछ एक ही पल में चकनाचूर हो गया। बाबूजी, दुखी हैं कि अब आखिर जाएं तो जाएं कहां ...
भोजीपुरा के एक स्कूल में टीचर हैं बाबू जी की पत्नी
मजनूं बाबू अपने पुराने कार्यालय में काम से ज्यादा महिला सहकर्मी से दोस्ती की वजह से चर्चा में अधिक थे। सूत्र बताते हैं कि बाबू ने अपनी दोस्त की कुर्सी अपने सामने ही डलवा रखी थी। वह उनको देखे बिना एक भी पल नहीं रह सकते थे। दिन भर उनसे बिना मतलब की बातें करते रहते थे। ऑफिस के अंदर चाय भी एक साथ ही पीते थे। जब ऑफिस में कानाफूसी होने लगी तो दोनों दोस्त बाहर रेस्टोरेंट पर आकर चाय पीने लगे। इनकी हरकतों से परेशान होकर पुराने डिप्टी डायरेक्टर को नया आदेश जारी करना पड़ा। उस आदेश में तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर ने साफ शब्दों में लिख दिया कि पुरुष कर्मचारियों की हरकत की वजह से उनके ऑफिस में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। वह सूर्यास्त से पहले ऑफिस छोड़कर अपने घर चली जाएं। डिप्टी डायरेक्टर के इस आदेश का हालांकि बाबूजी और उनकी सहकर्मी दोस्त पर कोई असर नहीं पड़ा। उनकी गतिविधियां पहले की तरह रिलीव होने से पहले तक जारी रहीं। खास बात यह है कि बाबूजी की पत्नी भोजीपुरा के एक स्कूल में टीचर हैं। उनको बाबूजी की इस दोस्ती की भनक तक नहीं लगी। बहरहाल, तबादला होने के बाद उनकी दोस्त को पुराने कार्यालय में बाबूजी की कमी बहुत खल रही है।