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ब्रम्हपुरी रामलीला: रामराज बैठे त्रिलोका, हर्षित भए गए सब सोका...

ब्रह्मपुरी में चल रही विश्व प्रसिद्ध 165 वीं रामलीला के अंतिम दिवस श्री रामजी के राजतिलक की लीला का मंचन किया गया। रामायण के अनुसार राजमहल पहुँचने पर मुनि वशिष्ठ ने कहा कि राम का राज्याभिषेक होगा।

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Shivang Saraswat
Brahmapuri Ramleela
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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रामराज बैठे त्रिलोका, हर्षित भए गए सब सोका...। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण को मारने के बाद वहां का राज विभीषण को सौंप दिया। उसके बाद भगवान राम लक्ष्मण और सीता पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आए। यहां धूमधाम से राजा रामचंद्र जी का राजतिलक किया गया।

ब्रह्मपुरी में चल रही विश्व प्रसिद्ध 165 वीं रामलीला के अंतिम दिवस श्री रामजी के राजतिलक की लीला का मंचन किया गया। रामायण के अनुसार राजमहल पहुँचने पर मुनि वशिष्ठ ने कहा कि राम का राज्याभिषेक होगा। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा के बाद अयोध्या नगर को दुल्हन की तरह सजाया गया। सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न ने राज्याभिषेक की सब तैयारियाँ पहले से ही कर दी थीं। रात के समय समस्त नगर में दीपोत्सव मनाया गया। मुनि वशिष्ठ ने राम का राजतिलक किया। राम और सीता सोने के रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न उनके पास खड़े थे। हनुमान जी राम के चरणों में सिंहासन के नीचे बैठ गए। माताओं ने तीनों की आरती उतारी। सबको उपहार दिए गए। रामजी माता सीता के साथ सिंहासन पर विराज हुए। अयोध्या में सब ओर हर्षोल्लास उमंग और उत्साह था। पर न मालूम क्यों, भगवान के मुखमंडल पर प्रतीक्षा का भाव है। 

निषाद राज केवट की प्रतीक्षा में नाम हुई राम की आंखें 

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आँखें हर एक आने वाले की ओर उठती हैं। बार बार निराश होकर झुक जाती हैं। हनुमानजी को चिंता लगी। भगवान राम से पूछने लगे- प्रभु! आप किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं? भगवान की आँखों की कोर में नमी स्पष्ट थी। भगवान ने कहा- हनुमान! केवट नहीं आए। सद्गुरू ही केवट हैं। वही नाम रूपी नाव और नियम रूपी चप्पू द्वारा सबको भव सागर पार कराते हैं। उन्होंने मुझे पार लगाया। मैं उनकी कोई सेवा नहीं कर पाया। वे नहीं आए। हनुमानजी ने चारों ओर नजर दौड़ाई तो उन्हें एक बात का बड़ा आश्चर्य हुआ। केवट तो वहाँ थे ही नहीं।  भरत लाल भी नहीं थे। विस्मित स्वर से हनुमानजी भगवान से पूछते हैं- प्रभु! यहाँ तो भरतजी भी नजर नहीं आ रहे हैं। आपको उनका खयाल नहीं है? वे कहाँ हैं? भगवान ने कहा- हनुमान! जिस सिंहासन पर मेरा राज्याभिषेक होने जा रहा है। इस पर लगा यह छत्र देख रहे हो? जिस छत्र की छत्रछाया में मैं बैठा हूँ। भरतजी इसी छत्र का दण्ड पकड़ कर सिंहासन के पीछे खड़े हैं। हनुमानजी ने पीछे जाकर देखा तो भरतजी वहीं थे और रो रहे थे।

हनुमानजी ने भगवान से कहा- प्रभु! भरतजी तो रो रहे हैं। भगवान! जब आप जानते हैं कि भरतजी पीछे खड़े हैं तो आपको नहीं चाहिए कि उनको आगे बुला लें। जिनकी आँखें आपके राज्याभिषेक को देखने को तरस रही थीं, वे इस दृश्य से वंचित क्यों रहे? भगवान ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही। बोले- हनुमान! भरतजी अगर आगे आ जाएँगे तो इस छत्र का दण्ड कौन पकड़ेगा? हनुमानजी ने कहा- उसे तो कोई भी पकड़ लेगा प्रभु। भगवान ने कहा- भरत यदि उस दण्ड को छोड़ देंगे तो मेरा राज्याभिषेक आज भी टल जाएगा। भगवान कहते हैं- मैं संसार को बताना चाहता हूँ कि यदि अपने हृदय के राजसिंहासन पर मुझ परमात्मा राम का राज्याभिषेक कराना चाहते हो तो यह बात ध्यान रखना कि उसी के हृदय रूपी राजसिंहासन पर मेरा राज्याभिषेक होना संभव है, जिसके हृदय पर भरत जैसे किसी संत की छत्रछाया हो। सीता ने अपने गले का हार हनुमान को दिया। धीरे-धीरे सभी अतिथि विदा हो गए। ऋषि-मुनि अपने आश्रमों में चले गए। हनुमान राम की सेवा में ही रहे। राम ने लंबे समय तक राज्य किया। उनके राज्य में किसी को कष्ट नहीं हुआ।

जा पर कृपा राम की होई। ता पर कृपा करहिं सब कोई॥ जिनके कपट, दम्भ नहिं माया। तिनके ह्रदय बसहु रघुराया।

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राम दरबार मे संरक्षक सर्वेश रस्तोगी और अध्यक्ष राजू मिश्रा ने परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से सेवा करने वाले, सहयोगीगण, गणमान्य अतिथियों, दर्शकों इत्यादि का आभार व्यक्त किया। अगले साल रामलीला को अधिक भव्य बनाने का संकल्प लिया।

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