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ब्रेकिंग न्यूज : पंचायत चुनाव से पहले सपा में गुटबाजी चरम पर पहुंची ... क्या आजम की रिहाई डालेगी असर

आगामी पंचायत चुनाव नजदीक हैं। यूपी की प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा के नेताओं की गुटबाजी परेशान कर रही है। दिग्गज नेता आजम खां की जेल से रिहाई का गुटबाजी पर क्या असर पड़ेगा

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Sudhakar Shukla
समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह

समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह

वाईबीएन संवाददाता बरेली।

साल 2027 में यूपी में अपनी सरकार का सपना संजोए बैठी समाजवादी पार्टी के अंदर नेताओं की आपसी गुटबाजी चरम पर है। लोकसभा चुनाव के बाद तो नेताओं ने एक दूसरे के गुटों से इतनी दूरी बना रखी है कि पीडीए पंचायत भी इससे अछूती नहीं रही। जिलाध्यक्ष का गुट अलग है तो महानगर अध्यक्ष ने कुछ जनप्रतिनिधियों को अपने पक्ष में मोड़कर उनको सीधी चुनौती दे रखी है। हालांकि सपा का एक धड़ा तो लंबे समय से जिलाध्यक्ष को हटाने की जोड़-तोड़ में लगा है। अध्यक्ष को हटने की तारीख पर तारीख दी जाती है। मगर,अब तक विरोधी धड़े को जिलाध्यक्ष हटवाने में सफलता नहीं मिली। सांसद और विधायक अपने समर्थकों के साथ अलग खिचड़ी पकाने में लगे हैं। हालांकि बरेली में सपा का एक गुट दिग्गज नेता आजम खां के भी नजदीक है। अब आजम खां सीतापुर से जेल से रिहा हो चुके हैं। उनकी जेल से रिहाई सपा की आपसी गुटबाजी पर क्या असर डालेगी? इसका अंदाजा भी कुछ दिन में होने वाला है। 

बीते लोकसभा चुनाव में सपा ने पीडीए, आरक्षण और संविधान बचाने का दांव चलकर भाजपा को तगड़ी चुनौती पेश की थी। रुहेलखंड की पांच सीटों में से पार्टी को आंवला और बदायूं सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों को जिताने में सफलता मिली थी। बाकी बची तीन सीटों में बरेली और शाहजहांपुर लोकसभा सीटों पर भी सपा के प्रत्याशियों ने भाजपा को जीतने में नाकों चने चबा दिए थे। पीलीभीत की सीट भाजपा ने जरुर आसानी से जीत ली थी। मगर, लोकसभा चुनाव के लगभग डेढ़ साल बाद वैसी स्थितियां न तो सपा के लिए रह गई हैं, न ही भाजपा के लिए। हालांकि इस बीच कुछ जगह भले ही सपा का जनाधार मजबूत होता दिख रहा है, लेकिन पार्टी के स्थानीय नेताओं की आपसी गुटबाजी पार्टी के लिए कठिन चुनौती पेश कर रही है। सूत्रों के अनुसार सपा का एक मजबूत धड़ा जिलाध्यक्ष शिवचरन कश्यप को हटाने की कोशिश में दिन-रात लगा है। सोशल मीडिया पर अक्सर यह कहकर इशारे किए जाते हैं कि बरेली सपा में कुछ बड़ा होने वाला है। या फिर कोई न कोई पोस्ट डालकर यह संकेत दिए जाते हैं कि जिलाध्यक्ष फलां तारीख को हट रहे हैं। अब तक 100 से ज्यादा तारीखें जिलाध्यक्ष को हटवाने में लग चुकी हैं। मगर, शीर्ष नेतृत्व ने जिलाध्यक्ष को हटाने के मसले को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी। ऐसा उन नेताजी का कहना है। आगे यह नेताजी साफ कहते हैं कि अगर उनके विरोधियों की गुटबाजी की वजह से उनको पद से हटाया गया तो फिर पीडीए का क्या मतलब रह जाएगा? पीडीए में समस्त जातियों का वोट मिलने से ही अखिलेश जी मुख्यमंत्री बनेंगे। एक या दो जातियों के वोट से तो भला नहीं होगा।   

दिनोंदिन बढ़ रही नाराज नेताओं की संख्या 

सूत्रों के अनुसार वहीं दूसरी ओर सपा के वर्तमान जिलाध्यक्ष से नाराज होने वाले नेताओं की संख्या में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है। अब तो महानगर अध्यक्ष के समर्थक भी अक्सर पार्टी कार्यालय पर नहीं दिखते। सपा के दोनों विधायकों की उदासीनता भी संगठन के प्रति साफ इशारा करती है। वहीं सांसद के समर्थकों की बात करें तो उनका रवैया भी जिलाध्यक्ष के प्रति बहुत सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। कुछ दिन पहले लखनऊ में सपा के बरेली नेताओं की मीटिंग बुलाई गई थी। उसमें संगठन के एक नेता के अंदर कमरे में बुलाकर पेंच भी कसे गए। पार्टी के एक नेता का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जी ने बरेली पार्टी संगठन के एक नेता को एकांत कमरे में बुलाकर खूब चूड़ी टाइट कीं। मगर, बाद में ये नेताजी अंदर से कॉलर ऊंचा करके ही निकले। बरेली में नेताजी ने कुछ पार्टी कार्यकर्ताओं के घर चाय पीनी शुरू की तो महानगर अध्यक्ष ने भी अपने समर्थकों के साथ चाय पीनी शुरू कर दी। इसके ठीक विपरीत बीते चुनाव में भाजपा की गुटबाजी से कामयाबी पाने वाले एक जनप्रतिनिधि भाजपा से सपा में आए एक ठेकेदार के खर्चे पर भ्रमण करके पार्टी को मजबूत करने में पहले से ही लगे हैं। बरेली में सपा का एक गुट दिग्गज पार्टी नेता आजम खां का भी नजदीकी है। मंगलवार को आजम खां सीतापुर जेल से रिहा भी हो चुके हैं। ऐसे में आजम खां की रिहाई से बरेली में सपा के एक धड़े पर क्या असर पड़ेगा? यह भी आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा। 

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