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समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह
वाईबीएन संवाददाता बरेली।
साल 2027 में यूपी में अपनी सरकार बनाने का सपना संजोए समाजवादी पार्टी के अंदर नेताओं की आपसी गुटबाजी चरम पर पहुंच चुकी है। लोकसभा चुनाव के बाद सपा नेताओं ने एक दूसरे से इतनी दूरी बना रखी है कि पीडीए पंचायत भी इससे अछूती नहीं रही। पार्टी में जिलाध्यक्ष का गुट अलग है। वहीं महानगर अध्यक्ष ने पार्टी के कुछ जनप्रतिनिधियों को अपने पक्ष में मोड़कर उनको सीधी चुनौती दे रखी है। हालांकि सपा का एक धड़ा लंबे समय से जिलाध्यक्ष को हटाने की जोड़-तोड़ में लगा है। अध्यक्ष को हटने की तमाम तारीखें दी, मगर,अब तक विरोधी धड़े को अपना जिलाध्यक्ष हटवाने में सफलता नहीं मिली। सांसद और विधायक अपने समर्थकों के साथ पार्टी के अंदर अलग खिचड़ी पकाने में लगे हैं। हालांकि बरेली में सपा का एक गुट दिग्गज नेता आजम खां के भी नजदीक है। अब आजम खां सीतापुर से जेल से रिहा हो चुके हैं। उनकी जेल से रिहाई सपा की आपसी गुटबाजी पर क्या असर डालेगी? इसका पता भी कुछ दिनों में चलेगा।
बीते लोकसभा चुनाव में सपा ने पीडीए, आरक्षण और संविधान बचाने का दांव चलकर भाजपा को तगड़ी चुनौती पेश की थी। रुहेलखंड की पांच सीटों में से पार्टी को आंवला और बदायूं में अपने प्रत्याशियों को जिताने में सफलता मिली थी। बाकी बची तीन सीटों में से बरेली और शाहजहांपुर में पार्टी प्रत्याशियों ने भाजपा को जीतने में नाकों चने चबा दिए थे। पीलीभीत की सीट भाजपा ने जरुर आसानी से जीत ली थी।
लोकसभा चुनाव के लगभग डेढ़ साल बाद वैसी स्थितियां न तो सपा के लिए रह गई हैं, न ही भाजपा के लिए। हालांकि इस बीच कुछ जगह भले ही सपा का जनाधार मजबूत होता दिख रहा है, लेकिन पार्टी के स्थानीय नेताओं की गुटबाजी पार्टी के लिए कठिन चुनौती पेश कर रही है। सूत्रों के अनुसार बरेली में सपा का एक मजबूत धड़ा जिलाध्यक्ष शिवचरन कश्यप को हटाने की कोशिश में दिन-रात एक किए हुए है। लखनऊ में शर्मा जी चाय वाले की दुकान से सेल्फी डालकर सोशल मीडिया पर अक्सर यह इशारे किए जाते हैं कि बरेली सपा में कुछ बड़ा होने वाला है। या फिर सोशल मीडिया पर कोई न कोई पोस्ट डालकर यह संकेत दिए जाते हैं कि जिलाध्यक्ष फलां तारीख को हट रहे हैं। अब तक 100 से ज्यादा तारीखें जिलाध्यक्ष को हटवाने में लग चुकी हैं। मगर, शीर्ष नेतृत्व ने जिलाध्यक्ष को हटाने के मसले पर चुप्पी साध रखी है। सपा संगठन के आगे नेताजी साफ कहते हैं कि अगर विरोधियों की गुटबाजी की वजह से उनको पद से हटाया गया तो फिर बरेली में पीडीए का फार्मूला फेल होने का खतरा बढ़ जाएगा? पीडीए में समस्त जातियों का वोट मिलने से ही अखिलेश जी मुख्यमंत्री बनेंगे। एक या दो जातियों के वोट से तो सरकार नहीं बनेगी।
सपा में दिनों दिन बढ़ रही नाराज नेताओं की संख्या
सूत्रों के अनुसार वहीं दूसरी ओर सपा के वर्तमान जिलाध्यक्ष से नाराज होने वाले नेताओं की संख्या में दिनों दिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है। अब तो महानगर अध्यक्ष के समर्थक भी अक्सर पार्टी कार्यालय पर नहीं दिखते। सपा के दोनों विधायकों की उदासीनता भी संगठन के प्रति साफ इशारा करती है। वहीं सांसद के समर्थकों की बात करें तो उनका रवैया भी जिलाध्यक्ष के प्रति बहुत सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। कुछ दिन पहले लखनऊ में बरेली के नेताओं की मीटिंग बुलाई गई थी। उसमें संगठन के एक नेता के अंदर कमरे में बुलाकर पेंच भी कसे गए। पार्टी के एक नेता का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जी ने बरेली के पार्टी संगठन के नेताजी को एकांत कमरे में बुलाकर खूब चूड़ी टाइट कीं। मगर, बाद में ये नेताजी अंदर से कॉलर ऊंचा करके निकले और विरोधियों को फिर चुनौती दे दी। उसके बाद खतरा भांपकर नेताजी ने पार्टी के चुनिंदा कार्यकर्ताओं के घर चाय पीनी शुरू कर दी। उसके बाद महानगर अध्यक्ष ने भी अपने समर्थकों के साथ गली कूचों में जाकर घरों में चाय पीनी शुरू कर दी। इसके ठीक विपरीत बीते चुनाव में भाजपा की गुटबाजी से कामयाबी पाने वाले एक जनप्रतिनिधि भाजपा से सपा में आए एक ठेकेदार के खर्चे पर भ्रमण करके पार्टी को मजबूत करने में पहले से ही लगे हैं। बरेली में सपा का एक गुट दिग्गज पार्टी नेता आजम खां का भी नजदीकी है। मंगलवार को आजम खां सीतापुर जेल से रिहा भी हो चुके हैं। आजम खां की रिहाई से बरेली में सपा के एक धड़े पर क्या असर पड़ेगा? यह भी बरेली की राजनीति में आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।
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