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जातिगत जनगणना : रुहेलखंड की राजनीति में कुर्मी, मौर्य, जाटव, यादव और ब्राम्हणों का दबदबा.... बाकी जातियों की भागेदारी न के बराबर

मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने की घोषणा कर दी है। इसके चलते अब राजनीति में किस जाति की कितनी भागेदारी है, कौन सी जातियां उपेक्षित हैं। इस पर मंथन शुरू हो गया है।

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Sudhakar Shukla
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पीएम मोदी
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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लोकसभा चुनाव 2024 में इंडिया गठबंधन ने जातिगत जनगणना को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया था। उसमें इंडिया गठबंधन ने तत्कालीन पीएम मोदी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को करारी टक्कर दी थी। हालांकि चुनाव में एनडीए को लोकसभा में बहुमत भले ही मिल गया था, लेकिन भाजपा बहुमत के आंकड़े से 32 सीटें कम पर सिमट गई थी। दलित, पिछड़ी जातियों की गोलबंदी के दबाव में मोदी-3 सरकार ने देश भर में जातिगत जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के तमाम नेताओं का मानना है कि जातिगत जनगणना कराने से उपेक्षित जातियों को पर्याप्त भागेदारी मिल पाएगी। हालांकि यह तो वक्त ही बताएगा कि राजनीति, प्रशासन, व्यापार समेत अन्य क्षेत्रों में किस जाति को कितनी भागेदारी मिलेगी। मगर, हम वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक की राजनीति में किस जाति की राजनीति में कितनी भागेदारी है, इस पर मंथन करके उसे जनता के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। बाकी यंग भारत के पाठक राजनीतिक विश्लेषण पर अपनी राय स्वयं बनाकर खुद भी किसी तरह के निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं। 

रुहेलखंड के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर अगर नजर डालें तो इस मंडल में पांच लोकसभा सीटें और 25 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 2024 के चुनाव में चुने गए लोकसभा सदस्यों में से बरेली से कुर्मी बिरादरी से भाजपा के छत्रपाल सिंह गंगवार, आंवला में मौर्य बिरादरी से समाजवादी पार्टी से नीरज मौर्य, पीलीभीत से ब्राम्हण बिरादरी से भाजपा से जितिन प्रसाद, शाहजहांपुर से अनुसूचित जाति की जाटव बिरादरी से भाजपा के टिकट पर अरुण कुमार और बदायूं से पिछड़े वर्ग से समाजवादी पार्टी के टिकट पर आदित्य यादव शामिल हैं। इस हिसाब से मंडल की पांच लोकसभा सीटों में पिछड़ा वर्ग के तीन  (इन में भी यादव, मौर्य और कुर्मी) दलित वर्ग में जाटव और सवर्णों में ब्राम्हण समुदाय की भागेदारी हुई। बाकी जातियों का प्रतिनिधित्व लोकसभा में नहीं मिल पाया। 

भाजपा में चंद जातियों का दबदबा, बाकी उपेक्षित 

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वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बरेली की नौ विधानसभा सीटों में सात पर और सपा ने दो सीटों पर कब्जा जमाया था। भाजपा की सात विधानसभा सीटों में से सवर्ण समुदाय से एक-एक पर ब्राम्हण, वैश्य और कायस्थ, पिछड़े वर्ग में कुर्मी समुदाय से बहेड़ी और नवाबगंज की दो सीटों पर, लोध-राजपूत समुदाय से मीरगंज और आंवला की दो विधानसभा सीटों के अलावा अनुसूचित जनजाति से फरीदपुर विधानसभा सीट और भोजीपुरा विधानसभा सीट से पिछड़े वर्ग में मौर्य समुदाय से प्रत्याशी बनाया था। भाजपा के बहेड़ी से छत्रपाल गंगवार और भोजीपुरा से बहोरनलाल मौर्य सपा के हाथों चुनाव में पराजित हो गए। बाद में छत्रपाल गंगवार बरेली से भाजपा के टिकट पर सांसद बन गए और पूर्व विधायक बहोरनलाल मौर्य को भाजपा ने एमएलसी बनाकर विधान परिषद भेज दिया। क्षत्रिय समुदाय से महाराज सिंह को एमएलसी बना दिया गया। वर्तमान में भाजपा के पास सात विधानसभा की सीटें हैं। इन पर सवर्ण समुदाय से कायस्थ, वैश्य, ब्राम्हण एक-एक, पिछड़े वर्ग से कुर्मी-एक, लोध-राजपूत-दो और अनुसूचित जनजाति से एक विधायक है। इन जातियों को छोड़कर बाकी जातियां विधानसभा की राजनीति में उपेक्षित हैं।

सपा में मुस्लिम समुदाय की सिर्फ दो जातियां हावी  

वहीं सपा की तरफ से विभिन्न जातियों की भागेदारी पर गौर करें तो पार्टी के भोजीपुरा से मुस्लिम समुदाय में अंसारी बिरादरी से शहजिल इस्लाम और बहेड़ी से मुस्लिम समुदाय में बंजारा बिरादरी से अताउर्रहमान विधायक हैं। समाजवादी पार्टी में रुहेलखंड मंडल में सवर्ण समुदाय की भागेदारी लगभग न के बराबर है। यही हाल कांग्रेस और बसपा का है। कांग्रेस में अगर जाति के हिसाब से देखें तो बरेली संगठन में ब्राम्हण समुदाय की लगभग छुट्टी हो चुकी है। बाकी जिलों में इक्का-दुक्का पदाधिकारी काम कर रहे हैं। कांग्रेस में दलित और पिछड़े वर्ग की भागेदारी भी नगण्य है। वहीं बसपा में कमजोर संगठन के चलते अभी जातिगत भागेदारी के बारे में ज्यादा कुछ कहना जल्दबाजी है।     

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(जातिगत जनगणना को देखते हुए रुहेलखंड मंडल और बरेली में राजनीति, प्रमुख दलों के संगठन, जिला पंचायत, नगरपालिका, नगर पंचायत, ब्लॉक प्रमुख, प्रधान, बीडीसी के अलावा प्रशासनिक अधिकारियों में जातिगत भागेदारी पर यंग भारत की सीरीज के पहले समाचार प्रकाशन के बाद आगे भी विभिन्न समुदाय और जातियों की हिस्सेदारी पर रिपोर्ट किस्तों में प्रकाशित होती रहेगी )

Caste Census Controversy
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