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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 27 भारतीय नागरिकों की निर्मम हत्या के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। इसके बीच में केंद्र सरकार के अचानक जातिगत जनगणना कराने के निर्णय ने राजनीतिक दलों के अलावा आम जनता को भी चौंका दिया है। केंद्र सरकार का यह फैसला एक सोची समझी प्लानिंग का हिस्सा ही है, जो उसने लंबे समय से कर रखी थी। मगर, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केंद्र सरकार के जातिगत जनगणना कराने के निर्णय से वर्ष 1989 में मंडल-कमंडल की राजनीति वाला युग एक बार फिर से लौट सकता है। मगर, इस बार कमंडल की राजनीति का केंद्र भाजपा बनाम इंडिया गठबंधन रहेगा। इसकी वजह यह है कि केंद्र सरकार का इरादा केवल हिंदुओं की ही नहीं, बल्कि मुसलमानों की जातियों की भी जनगणना कराने का है। ताकि हिंदू और मुस्लिम दोनों के जातिवार आंकड़े इकट्ठा करके चुनावी गुणा-भाग करके उसका फायदा उठाया जा सके। इस कड़ी में रुहेलखंड मंडल में हिंदुओं के साथ ही मुस्लिम भी एक बार फिर से मंडल कमंडल की राजनीति के केंद्र में होंगे। 2027 के चुनाव में भाजपा जातिगत जनगणना के जरिए हिंदू जातियों की गोलबंदी करके उनका वोट को इकट्ठा करने की रणनीति पर काम करेगी वहीं विपक्षी दल सपा, कांग्रेस, बसपा और रालोद जैसे दल मुस्लिम वोटरों के सौदागर बनेंगे। फिलहाल, जातिगत जनगणना का असर आने वाले समय में रुहेलखंड की मुस्लिम राजनीति पर भी पड़ना तय है।
क्या जातिगत जनगणना के बाद रुहेलखंड में बदलेंगे राजनीतिक मुद्दे
रुहेलखंड मंडल में चार प्रमुख जिले और पांच लोकसभा सीटें हैं। एक अनुमान के अनुसार बरेली, शाहजहांपुर, पीलीभीत और बदायूं जिलों की कुल जनसंख्या में मुस्लिमों की आबादी 25 से 35 फीसदी के आस-पास है। बरेली और शाहजहांपुर जैसे महानगरों में जहां मुस्लिमों की जनसंख्या 35 से 40 से फीसदी तक है। वहीं नगरपालिका, नगर पंचायतों और ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 15 से 20 फीसदी तक बैठता है। लोकसभा, विधानसभा, जिला पंचायत, ब्लॉक प्रमुख, ग्राम प्रधान समेत जितने भी चुनाव होते हैं। उसमें भाजपा को छोड़कर बाकी राजनीतिक दलों की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर रहती है। अब तक मुसलमान वोट भाजपा के विरुद्ध उस राजनीतक दल के पक्ष में एकजुट होता रहा है, जो भगवा दल को चुनाव में हरा सके। मगर, जातिगत जनगणना के बाद यह पहले की तरह भाजपा के विरोध में एकजुट रहकर मतदान करेगा, यह देखने वाली बात होगी। इसके विपरीत अब तक भाजपा मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे जैसे राम मंदिर, कृष्ण जन्म भूमि, ज्ञानवापी, लव जेहाद, धर्मांतरण, तीन तलाक, हलाला आदि के जरिए हिंदू जातियों को इकट्ठा करने पर फोकस करती रही है। अपनी इस रणनीति में वह काफी हद तक सफल भी है। इसके उलट समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बसपा और चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी की राजनीति के केंद्र में मुस्लिम हैं। मगर, जातिगत जनगणना के बाद भाजपा और सपा अपने वोट बैंक को एक ही झंडे के नीचे रख पाएंगे। इस पर राजनीतिक पंडितों का मंथन जारी है।
पश्चिमी यूपी के मुस्लिमों पर बरेलवी-देवबंदी मसलकों का प्रभाव
अब तक पश्चिमी यूपी में बरेलवी और देवबंदी मसलकों का मुस्लिम समुदाय पर प्रभाव रहा है। बरेलवी मसलक का प्रभाव रुहेलखंड मंडल के शाहजहांपुर, पीलीभीत, बदायूं के अलावा इसके बाहर कासगंज, रामपुर, मुरादाबाद और उसके आगे के जनपदों तक है। वहीं उसके बाद वाले पश्चिमी जिलों जैसे सहारनपुर, मेरठ, बिजनौर, अमरोहा, गौतमबुद्ध नगर में देवबंदी मसलक का असर मुस्लिम समुदाय में दिखता है। हालांकि अब तक सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति-जनजाति के नाम पर जातियों के विभाजन का असर सिर्फ हिंदू समुदाय में है। किसी भी चुनाव की मुस्लिम राजनीति में जातियों का असर बहुत ज्यादा नहीं दिखता है। मगर, जातिगत जनगणना के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों में मुस्लिमों में भी जातिगत समीकरणों का उभार आने का अनुमान है। बरेली में आला हजरत दरगाह से चुनाव के वक्त मुस्लिम समुदाय के लिए पहले फतवे भी जारी होते थे। उन फतवों का असर मुस्लिम समुदाय पर चुनाव के वक्त बहुत रहता था।
धीरे-धीरे कम होता गया फतवों का असर
बीते कई वर्षों से दरगाह आला हजरत से फतवों का जारी होना कम हो चुका है। क्योंकि मुस्लिम समुदाय पर असका असर भी कम हो चुका है। करीब तीन दशक पहले आला हजरत खानदान से ताल्लुक रखने वाले मौलाना तौकीर रजा खां ने अपना अलग राजनीतक दल भी बना लिया था। उस दल का नाम इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल (आईएमसी) है। एक समय था, जब इस उनके दल का प्रभाव बरेली और आस-पास इलाके में था। मगर, देश में मोदी-शाह के उभार के बाद रुहेलखंड मंडल में इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल का प्रभाव मुस्लिम समुदाय के बीच में घटा है। मगर, मुस्लिम समुदाय से जुड़े मसलों में जब भी कोई व्यक्ति दरगाह आला हजरत के मौलानाओं से सवाल-जवाब करता है और उसका जो भी जवाब मौलाना देते हैं तो उनका असर समुदाय पर अब भी दिखता है। मुस्लिमों की ज्यादातर बिरादरियां बरेलवी मसलक की बातों पर पूरी तरह से अमल करती हैं। जातिगत जनगणना के निर्णय से मुस्लिम समुदाय और बरेलवी मसलक भी प्रभावित होगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।
क्या कहते हैं सपा से जुड़े बरेली के मुस्लिम नेता
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समाजवादी पार्टी के बहेड़ी विधायक और पूर्व मंत्री अताउर्रहमान का कहना है कि जातिगत जनगणना में केंद्र सरकार ने मुस्लिमों की विभिन्न जातियों की जनगणना कराने की बात करके बांटो और राज करो की अंग्रेजों की नीति अपनाने का फैसला किया है। मगर, इससे भाजपा को कोई फायदा नहीं होने वाला है। मुसलमानों में जातियां तो हैं लेकिन हम लोग जब मस्जिद में जब इबादत करने जाते हैं तो वहां कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता। किसी भी जाति का इमाम हो सकता है, बेशर्ते कि वह पढ़ा लिखा हो। जातिगत आरक्षण की मांग सबसे पहले नेताजी मुलायम सिंह यादव ने ही उठाई थी। केंद्र ने हमारे दबाव में आकर ही यह मांग मानी है। अब इस मांग को लागू करने की घोषणा करें।
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न कोई बंदा रहा, न कोई बंदा नमाज : शमीम खां सुल्तानी
सपा के महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी ने कहा कि वैसे मुसलमानों में जातियां खोजना भाजपा का छोड़ा हुआ शोशा है। हमारे यहां तो कहावत है कि एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद और अयाज, न कोई बंदा रहा, न कोई बंदा नमाज। मस्जिद में जब नमाज पढ़ने जाते हैं तो वहां किसी भी जाति का नमाजी अगर पहली सफ में आकर खड़ा हो गया तो फिर बाद में कोई कितना ही ऊंचा शख्स आए। उसे पीछे वाली लाइन में ही लगकर नमाज पढ़नी पड़ेगी। हमारे यहां कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। भाजपा ने जातिगत जनगणना के नाम पर जो भी तीर छोड़ा है, उससे उसे मुसलमानों का वोट तो नहीं मिलने वाला है। मगर, हम यही कहेंगे कि देर आए, दुरुस्त आए। जातिगत जनगणना कराने का निर्णय सरकार ने करके इंडिया गठबंधन की बात मान ली।