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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
एक समय था जब शिक्षा के क्षेत्र में रुहेलखंड मंडल में बरेली कॉलेज की अलग प्रतिष्ठा थी। बरेली कॉलेज से पढ़कर न जाने कितने छात्र आईएएस, पीसीएस और राजनेता बनकर उच्च पदों पर आसीन हुए। मगर, आज कॉलेज की बदहाली किसी से छुपी नहीं है। अप अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही इस प्रतिष्ठित संस्था की इमारतें जर्जर हो चुकी हैं। छात्रावास बंद हैं। इसके लिए कॉलेज के अस्थाई कर्मचारियों ने आंदोलन की चेतावनी दी है।
वर्षों से कार्यरत अस्थाई कर्मचारी सेवा समिति के अध्यक्ष जितेंद्र मिश्रा ने बताया कि बरेली कॉलेज के छात्रावास वर्षों से बंद पड़े हैं। इन छात्रावासों को कॉलेज प्रशासन ने बिना किसी ठोस कारण के निष्क्रिय कर दिया है। बजट का गोलमाल कर लिया गया। छात्रावास की इमारत की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। छात्र-छात्राएं आवासीय सुविधाओं के अभाव में निजी हॉस्टलों में रहने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
कॉलेज में बरसों से कार्यरत अस्थायी कर्मचारी आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जूझ रहे हैं। इनके नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई, न ही वेतन-भत्तों में बढ़ोत्तरी हुई। कर्मचारी कल्याण सेवा समिति के अध्यक्ष ने कहा, "सरकार और कॉलेज की मैनेजमेंट कमेटी और कॉलेज प्रशासन की अनदेखी की वजह से शिक्षा गुणवत्ता और कॉलेज की गरिमा लगातार गिरती जा रही है। अब वक्त आ गया है कि बरेली कॉलेज को उसका हक मिले।"
बरेली कॉलेज के अस्थाई कर्मचारियों ने कहा कि अपनी ऐतिहासिक, शैक्षणिक और भौगोलिक दृष्टि के हिसाब से बरेली कॉलेज को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलना चाहिए। यह कॉलेज केवल बरेली नहीं, बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विख्यात शैक्षणिक संस्था है। प्रशासनिक और मैनेजमेंट के स्तर पर लगातार उपेक्षा के कारण काॅलेज की प्रतिष्ठा दिन पर दिन कम हुई है। कर्मचारी संगठनों ने एक स्वर में सरकार से मांग की है कि बरेली कॉलेज की साख को देखते हुए पुरानी इमारतों का शीघ्र जीर्णोद्धार कराया जाए। वर्षोँ से बंद छात्रावासों को पुनः खोला जाए और बरेली कॉलेज को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाए। ताकि यह संस्थान फिर से अपनी खोई हुई गरिमा प्राप्त कर सके।