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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
बरेली। माननीय को ढूंढकर लाओ नगद पुरस्कार पाओ...। सपाइयों ने तो होली के हुडदंग में यही नारे लगाकर जब एक दूसरे पर रंग डाला तो चारो तरफ हो गया जोगीरा सारा रा....।
आधे से ज्यादा दिन बीत चुका था। हकीम लुक्का राजनीति से जुड़े किसी भी व्यक्ति को रंग नही लगा पाए थे। भाजपा के घाघ नेताओं को रंग लगाने की उनकी हिम्मत नहीं पड़ी। घर में कुछ देर शांत रहने के बाद लुक्का ने निश्चय किया कि वह अबकी बार होली पर किसी न किसी नेता को रंग लगाकर ही लौटेंगे। यह तय करने के बाद हकीम लुक्का ने फिर से बड़ी सी पिचकारी पीठ पर लादी और रंग से भरी बाल्टी उठाई और एक बार फिर निकल पड़े वीवीआईपी को होली के रंग से सराबोर करने। मगर, माननीय तो जनता को मूर्ख बनाने के बाद चंद समर्थकों के साथ होली की मस्ती ले रहे थे।
इस बार हकीम लुक्का ने सोचा कि सत्ता में होने की वजह से भाजपा के नेता तो भाव नहीं दे रहे हैं तो सपा और कांग्रेस नेताओं को ही रंग लगाया जाए। यह सोचकर लुक्का उन पूर्व माननीय के घर पहुंचे, जो तीन साल पहले कॉन्ग्रेस छोड़कर साईकिल पर सवार हो गए थे। इनका मकसद था अपनी मैडम साइकिल पर बिठाकर लखनऊ पहुंचाना। ट्रेन, बस, कार या फ्लाइट के युग में मैडम 2022 के चुनाव में साईकिल से लखनऊ नही पहुंच सकी। तो सपा को भी झटका लगा। पूर्व माननीय भी बरेली से सिर्फ एक बार ही तुक्के से जीत पाए। उसके बाद 11 साल से अब तक फिलहाल पूर्व ही हैं। हकीम लुक्का जब पिचकारी पीठ लादे हुए उनके सिविल लाइंस स्थित घर के गेट पर पहुंचे तो दरबान ने फौरन रोक लिया। बोले, किससे मिलना है। लुक्का का जबाव था माननीय से। दरबान बोला, बिना फ़ोन किए क्यों आ गए। साहब तो घर में नही हैं। लुक्का बोले, कहां गए हैं। दरबान बोला, विदेश यात्रा पर। 15 दिन में लौटेंगे। लुक्का बोले, साहब कब बरेली रहते हैं और कब विदेश में। पहले यह स्पष्ट कर दो। हमे साहब ने तीन चार नंबर दे रखे हैं। वह तबसे नही लग रहे थे, जबसे वह माननीय बने। फिर बाद मे भूतपूर्व भी हो गए। दरबान बोला, साहब सिर्फ चुनाव तक बरेली में रहते हैं। उसके बाद चाहे चुनाव हारे या जीते। तुरंत विदेश निकल जाते हैं। फिर 5 साल बाद तभी लौटते हैं, जब दोबारा चुनाव आते हैं। इसी बीच पूर्व माननीय के घर के अंदर से ही उनकी ही आवाज सुनाई दी। पूर्व माननीय अपने कर्मचारी को डांट रहे थे कि अबे गधों, टाइम निकला जा रहा है। होली कब खेलोगे। हकीम लुक्का ने दरबान से पूछा कि आप तो माननीय के विदेश में होने की बात कह रहे थे। माननीय तो यही घर पर हैं। दरबान बोला, साहब का रंग खेलने का मूड नहीं है। इसलिए उन्होनें सभी कर्मचारियों को बोल रखा है कि जो भी रंग खेलने आए, उससे कह देना कि वह विदेश गए हैं। हकीम लुक्का माननीय को अपने सामने जिंदा झूठ बुलवाते हुए देखकर हैरान था।
भाभी जी घर पर हैं.... बहुत सही पकड़े हैं...
इसी बीच भाभी जी अंदर से निकली। लुक्का की पिचकारी देखते ही बोली, ए लुक्का। रंग मत लगाना। हमे सुबह से बहुत लोग रंग लगा चुके हैं। हमने पहले कांग्रेसियों के साथ होली खेली। अब सपा नेताओं के साथ होली खेले रही हूं। 2027 तक तीसरे किसी के साथ होली खोलने की गुंजाइश नहीं है। हकीम लुक्का भाभीजी की बात सुनकर पलट कर वापस चलने लगे। तो भाभी जी बोली, चलो, कोई बात नहीं। जब बहुत से लोग रंग लगा चुके हैं तो तुम भी थोड़ा सा रंग लगा लो। लुक्का ने पिचकारी सीधी की ओर रंगों की बौछार कर दी। तभी गाना बजने लगा कि रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे...।
मेरे दोस्त भले ही विरोधी दल से हैं मगर ,व्यापार साझे में..
अब हकीम लुक्का आवास विकास कालोनी निवासी एक माननीय के घर पर दस्तक दी। माननीय, बाहर निकले। बोले, बहेड़ी से आए हो। क्या समस्या है। लुक्का ने रंग डालने की इच्छा जताई तो माननीय ने कहा कि हमारे मजहब में रंग खेलना मना है। वैसे, भी रमजान चल रहे हैं। तुम मिठाई खाओ और किसी और को जाकर रंग लगाओ। हकीम लुक्का बोले, रंग तो खेलना पड़ेगा साहब। आपको बिना रंगे नही छोड़ेंगे। माननीय बोले, लुक्का, हम बहेड़ी में सर्फ अपने पुराने विरोधी दोस्त के साथ ही रंग खेलते हैं। दिखने में भले ही विरोधी हैं लेकिन व्यवसाय साझे में ही हैं। रंग भी उनसे ही लगवाएंगे। लुक्का वापस लौट आए।
दुनिया ढूंढे सोना चांदी, जनता ढूंढे सांसद को...
अब बारी थी पीलीभीत बाईपास रोड की मौर्या कॉलोनी में रहने वाले एक माननीय की। यहां पहुंचते ही लुक्का ने जो नजारा देखा तो दंग रह गया। आंवला से कुछ सपा समर्थक सांसद आवास के बाहर होर्डिंग बैनर पोस्टर लेकर खड़े थे। लुक्का ने उनसे पूछा कि क्या बात है। आप माननीय के घर के बाहर क्यों खड़े है। सपाइयों ने बताया कि हम सबने मोदी लहर में जी जान से लगकर लोकसभा में पहुंचाया। अब माननीय न हमारी सुन रहे हैं, न जनता को दिखाई दे रहे हैं। और तो और, जनता से मिलना भी पसंद नहीं कर रहे हैं। कभी लखनऊ, कभी जलालाबाद तो कभी दिल्ली। यही सुनने को मिलता है। चुनाव जीतने के बाद फोन भी बंद मिलता है। आंवला की जनता उनसे पूछ रही है कि माननीय को ढूंढकर लाओ तो 5000 रुपए का नगद पुरस्कार मिलेगा। हकीम लुक्का परेशान हो गए। मन ही मन बोले कि जब माननीय चुनाव जीतने वाली जनता को ही ढूंढ नहीं मिल रहे हैं तो फिर उनका रंग खेलने के लिए कैसे मिलेंगे। तभी माननीय के घर से एक दाढ़ी वाले सज्जन बाहर निकले, बोले, क्या बात है। हकीम लुक्का बोले, मुझे माननीय के साथ होली खेली है। दाढ़ी वाले सज्जन का जबाव था,
माननीय तो बीते साल आंवला की जनता के साथ होली खेल चुके हैं। अब अगली होली किस क्षेत्र की जनता के साथ खेलेंगे, यह बाद में तय करेंगे। जोगीरा सारा रा...।
तब तो लुक्का ने भी सज्जन को जबाव दिया कि
बुझती हुई मसाल जलाता है इलेक्शन
जलती हुई मसाल बुझाता है इलेक्शन
जब रोम जल रहा हो हिंसा की आग में
तो नीरो की तरह बंशी बजाता है इलेक्शन।
अब सांसद प्रतिनिधि भी कहां चूकने वाले थे, बोले
नारे को घड़े से फोड़कर खुन्नस न निकालो,
जो कुछ हराम का मिले, उसे मिल बांटकर खा लो
चुनाव बाद माननीय जी कह रहे हैं जनता से
पानी नहीं नसीब तो विहस्की से काम चला लो... जोगीरा सारा रा..
जोगीरा सारा रा...
बुरा न मानो होली है...