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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
बरेली। अभी वक्त ज्यादा नहीं हुआ है। कोई एक साल पहले की बात है। लोकसभा के चुनाव का दौर था। बरेली के एक दिग्गज भाजपा नेता का टिकट पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने काट दिया। उनकी ही बिरादरी के दूसरे नेताजी के हाथ में लोकसभा के टिकट की लॉटरी लग गई। हालांकि ये नेताजी उससे पहले अपनी विधानसभा का चुनाव तक सपा के हाथों हार चुके थे। मगर, किस्मत हो तो इन नेताजी जी के जैसी। विधायकी गई। सांसदी आ गई।
खैर, हम बात कर रहे थे लोकसभा चुनाव के समय की। तो बरेली के दिग्गज भाजपा नेता का बरेली लोकसभा सीट पर तीन दशक तक एकछत्र राज था। अचानक टिकट कटने की उम्मीद किसी को नहीं थी। मगर, जैसे ही टिकट कटा तो बड़ों की कौन कहे, छोटे-मोटे मेढक भी सिर उठाकर बात करने लगे। बसपा से उनके मुकाबले 2014 में चुनाव हारकर चौथे नंबर पर रहने वाले एक नेताजी (जो बाद में भाजपा में शामिल होकर शहर के अच्छे पद पर काबिज हो गए) ने किसी से मोबाइल पर बात करते हुए उन दिग्गज भाजपा नेता के बारे में घोषणा कर दी कि अभी तो टिकट ही कटा है। कुछ दिन और बीतने दो। फिर पटक पटक कर मारेंगे। उन नेताजी की इस बात का विरोध प्रत्येक सभ्य व्यक्ति ने किया। नगर निगम की राजनीति करने वाले उन नेताजी का यह ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही लोकसभा चुनाव के बीच में ही बरेली की राजनीति में भूचाल आ गया। दिग्गज नेता के साले ने उन नेताजी को खुलेआम चुनौती दे दी। हालांकि बाद में बात बिगड़ती देख उन नेताजी ने ऑडियो में अपनी आवाज होने से साफ मना कर दिया। जैसा कि आम तौर पर राजनीतिक नेता ऐसा करते हैं। मगर, तब तक बात बिगड़ चुकी थी।
लोकसभा चुनाव के समय बरेली भाजपा की राजनीति में दो बड़े नेताओं के बीच छिड़े अंदरूनी झगड़े को सुलझाने के लिए लखनऊ से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को आना पड़ा। उनके सामने भी जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगाए जाने लगे। दिग्गज भाजपा नेता के घर कम ऑफिस में उनके सजातीय भाई बंधुओं की भारी भीड़ जमा थी। उनके समाज के छूट भइया नेता तो जूते चप्पल निकालकर विरोधियों को सबक सिखाने के मूड में थे। प्रदेश अध्यक्ष के सामने भीड़ में कोई पिट न जाए। ऐसी स्थिति थी। मौके की नजाकत भांपकर भाजपा के तत्कालीन जिला और शहर संगठन के दो बड़े नेता अपनी टोपी जेब में रखकर पिछले गेट से चुपचाप खिसक लिए। प्रदेश अध्यक्ष भी जल्दी ही मौके से निकल गए।राजनीति में रुचि रखने वालों को यह पूरा वाकया याद होगा।
खैर, लोकसभा चुनाव निपटा। केंद्र में एनडीए की तीसरी बार सरकार बनी। मोदी जी पीएम। समय बदला। दिग्गज भाजपा नेता को एक राज्य का गवर्नर बनाने की घोषणा हो गई। जैसे ही रात में गवर्नरों की सूची जारी हुई और बरेली के दिग्गज भाजपा नेता का नाम सूची से बाहर निकला । वैसे ही, अवसरवादिता की पराकाष्ठा को पार करते हुए चापलूसों की भीड़ लग गई। पटककर मारने की बात करने वाले नेताजी फूलों का हार लेकर स्वागत में सबसे आगे खड़े थे। जिन दिग्गज भाजपा नेता को पटक पटक कर मारने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। उनके साथ दिग्गज नेता के धुर विरोधी शहर भाजपा संगठन के नेताजी भी ताल से ताल मिलाकर टंकी लगा रहे थे। राजनीति में चापलूसी और अवसरवादिता जो न कराए, सो थोड़ा। खास बात यह नहीं है कि लोकसभा चुनाव के समय दिग्गज भाजपा नेता (जो अब एक राज्य के गवर्नर हैं) के धुर विरोधी तीनों नेता अब उनकी चापलूसी करने में सबसे आगे निकलते हुए... पूरी तरह से गवर्नरम शरणम गच्छामि हो चुके हैं। खास बात यह भी है कि दिग्गज भाजपा नेता अपने तीनों विरोधियों की सब गालियां भी माफ कर चुके हैं। पता है क्यों? इसलिए, नहीं कि वह बहुत बड़े क्षमाशील हैं बल्कि इसलिए कि उनको आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी बेटी को किसी एक सीट से चुनाव लड़ाकर कहीं न कहीं सेट करना है। इसलिए वह किसी को नाराज नहीं करना चाहते। राजनीति तेरे अजब रंग... कब कौन किसका विरोधी और कब कौन किसके संग... कुछ नहीं कहा जा सकता....।
एक मशहूर व्यंग्यकार ने लिखा है...
जलती हुई मसाल बुझाता है इलेक्शन,
बुझती हुई मसाल जलाता है इलेक्शन,
रोम जल रहा हो जब हिंसा की आग में
तब नीरो की तरह बंसी बजाता है इलेक्शन।।
नोट: ( रविवार को शहरवासियों के मनोरंजन के लिए लिखी गई इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं। अगर कहानी के किसी पात्र का चरित्र वर्तमान में बरेली के किसी नेता से मिलता जुलता हो तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।)