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Photograph: (AI)
बरेली, वाईबीएन संवाददाता
बरेली के फरीदपुर में हाल ही में एक संविदा कर्मी के घर से 98 बिजली मीटर बरामद हुए थे, अब पावर कारपोरेशन में सक्रिय एक गिरोह ने बरेली में चेक के जरिये बिल जमा कर लाखों का घोटाला किया है। फर्जीवाड़ा पकड़ में आने के बाद पावर कारपोरेशन के अधिशासी अभियंता हरीश कुमार की ओर से कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।
पावर कारपोरेशन में सक्रिय यह गिरोह उपभोक्ताओं से नकद रकम लेकर अपने चेक से बिल जमा करता था। बिल जमा होने के बाद उपभोक्ता को रसीद भी दे देता था लेकिन चेक क्लियर नहीं होता था। लंबे समय से चल रहा यह खेल तब पकड़ में आया जब बैंक से चेक बाउंस होने की रिपोर्ट आई। जिन बिलों में फर्जीवाड़ा किया गया है वे विद्युत वितरण खंड ग्रामीण द्वितीय के हैं और इन बिलों को जमा विद्युत वितरण खंड नगरीय द्वितीय के यहां किया गया है।
फर्जीवाड़े में कर्मचारियों के शामिल होने का भी शक
फर्जीवाड़ा करने वाला गिरोह उपभोक्ताओं से नकद रुपया लेकर किसी अन्य के खाते का चेक लगाकर बिल जमा कर देता था, इसके बाद यह चेक खाते में पैसा न होने कारण बाउंस हो जाते थे। ऐसे करीब 36 चेक पकड़ में आए हैं, इनमें दो चेक ऐसे भी हैं, जिन पर साइन तक नहीं हैं फिर कैशियर ने उन्हें स्वीकार कर लिया। ये चेक अनहर हुसैन, हिमांशु रंजन, ज्ञानेस्वरी देवी यागनिक, लव कुमार गौत, कार्तिक इंटरप्राइजेज के अमित शर्मा के नाम से जारी किए गए हैं, जो कनेक्शनधारक के नाम से अलग हैं।
अफसर कई दिनों से दबाए हुए थे मामला
सूत्रों के मुताबिक अफसरों को इस फर्जीवाड़े की खबर गई दिन पहले लग गई थी लेकिन वे इस मामले को कई दिनों से दबाए हुए थे। इसके पीछे वजह पावर कारपोरेशन का दौरा बताई जा रही थी। अफसर नहीं चाहते थे कि चेयरमैन के सामने यह मामला पहुंचे। बाद में बाद में अफसरों के दखल पर अधिशासी अभियंता ग्रामीण द्वितीय हरीश कुमार की ओर से कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई गई।
फर्जीवाड़ें में अधिकारियों की भी भूमिका संदिग्ध
इस फर्जीवाड़ें में कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक की भूमिका संदिग्ध प्रतीत हो रही है। पावर कारपोरेशन में बिलजी बिलों में धांधली का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले एक अधिशासी अभियंता बिजली चोरी के मामलों में राजस्व निर्धारण में भी सुर्खियों में रहे थे। उन्होंने बिना वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति के राजस्व निर्धारण का संशोधन कर दिया था। संशोधन किए गए पत्र 15 दिन बाद बाबू ने डिस्पैच किए थे। यह मामला उछला तो बाबू को यह तर्क देकर बचा लिया गया कि डाक टिकट न होने की वजह से रजिस्ट्री नहीं हो पाई थी।
अफसरों की शह के कारण बच जाते हैं घपलेबाज
बिजली चोरी के मामलों में राजस्व निर्धारण का पटल देखने वाला बाबू, कैशियर और एक अधिशासी अभियंता का कंप्यूटर ऑपरेटर इस खेल के बड़े खिलाड़ी बताए जाते हैं। संविदा पर तैनात कंप्यूटर ऑपरेटर की पावर कारपोरेशन में ठेके पर गाड़ियां भी चल रही है, इनमें से एक पर एसडीओ चलते हैं। यही नहीं अंदरखाने निगम में उसकी ठेकेदारी भी चल रही है। बतातें है कि इन कर्मचारियों के हाथ में अधिशासी अभियंता की ऐसी नस है, जिसके दबाते ही वह हर कार्रवाई से बच जाते हैं। अधिशासी अभियंता भी पावर कारपोरेशन के एक बड़े साहब के गुरुजी के सबसे प्रिय हैं इसलिए उनकी गलतियां भी अफसर नजरअंदाज कर देते हैं।
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