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एसआरएमएस में सजी मुशायरों की महफिल
बरेली,वाईबीएन संवाददाता।
उभरते शायरों ने इश्क-मुहब्बत के साथ मानवीय पहलुओं पर पढ़े अपने कलाम
श्रीराम मूर्ति स्मारक रिद्धिमा में चतुर्थ मुशायरे की शाम बज्म ए सुखन का आयोजन हुआ। इसमें शायर अभिनव अतीक (दिल्ली), अली अब्बास जैदी 'हानी बरेलवी' (बरेली), सैय्यद सज्जाद हैदर नकवी (बरेली), सुल्तान जहां पूरनपुरी (पीलीभीत), जीशान हैदर (बरेली), अभिषेक अग्निहोत्री (बरेली), बिलाल खान बरेलवी (बरेली) ने अपने कलाम से इश्क और मुहब्बत का तो जिक्र किया ही। साथ ही अपने शेर में मां-बाप की व्यथा के साथ ही सामाजिक व्यवस्था को भी उजागर किया।
बिलाल राज ने 'फायदे खामोशी के देखते हैं, अपने होठों को सीके देखते हैं, दुश्मनी भी है जिससे शर्मिंदा, हाल वो दोस्ती के देखते हैं, जो गुलामी के भी नहीं काबिल, ख्वाब वो सरवरी के देखते हैं' और 'पीठ पर होते हुए वार से डर लगता है, अब तो दोस्त से नहीं यार से डर लगता है' से बज्म से सुखन का आगाज किया। सुल्तान जहां पूरनपुरी ने 'खुद को बेजार करके देखूं क्या, उसपे ऐतबार करके देखूं क्या, 'इश्क़ करने से है गुरेज़ा है, फिर भी इजहार करके देखूं क्या' से मुहब्बत की दास्तां का जिक्र किया। अभिषेक अग्निहोत्री ने अपने कलाम 'सब कुछ करना अपनी ही मनमानी से, बात बिगड़ जाती है इस नादानी से', 'यार निभाने में मुश्किल आ सकती है, वादे तो कर देते हो आसानी से', 'खुशी के सारे सबब लग गए ठिकाने से, रहा ना गम का ठिकाना तुम्हारे जाने से' दुनियादारी का संदेश दिया। हानी बरेलवी ने अपने कलाम 'जंग करता है ज़माने से अकेला हानी, तुम अगर साथ निभा दो तो मज़ा आ जाए', मेरी आवाज अकेली भी है मद्धम भी है', तुम जो आवाज मिला तो मज़ा आ जाए', यक़ीनन रास्ता हक़ पर नहीं है, कोई पत्थर कोई ठोकर नहीं है', ताल्लुक टूट जाने का है खतरा, दीवार में दर नहीं है' मुहब्बत की दास्तां का जिक्र किया। मंच संचालक जीशान हैदर ने 'मेरे कपड़ों पर यारों फर नहीं है, मगर धब्बा भी दामन पर नहीं है', 'जलाओ और खुद को आशिक़ी में, अभी अश्कों से दामन तर नहीं है' से मुहब्बत करने वालों को नसीहत दी। सैय्यद सज्जाद अमरोहवी ने अपने कलाम 'ठोकरें हर राह पर हैं ठोकरों से बचना सीख, सर उठाकर चलने वाले सर झुकाकर चलना सीख', गर सुलगती एक चिंगारी बुझा सकते हैं हम, आग के शोलों से बगीचे बचा सकते हैं हम' से सामाजिक एकता का संदेश दिया। अभिनव अतीक ने 'लगी आंखों से जैसे पलके अबरू साथ रहती हैं, हमारे घर में वैसे हिंदी उर्दू साथ रहती हैं 'सबके गाने नहीं किस्से नहीं स्पीच नहीं, अबके सरहद के जवानों की जवानी सुनना' और 'दोस्त हम हारे हैं मैदान नहीं छोड़े हैं, हाथ में जंग के सामान नहीं छोड़े हैं', 'मेरी बस लाश तेरे हाथ लगी है जानी, जिस्म तो छोड़ दिया जान नहीं छोड़े हैं' सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही पाई। बज्म ए सुखन का संचालन जीशान हैदर ने किया। इस मौके पर एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक व चेयरमैन देव मूर्ति, आशा मूर्ति, ऋचा मूर्ति, उषा गुप्ता, कवि रोहित राकेश, डा. निर्मल यादव, डा.प्रभाकर गुप्ता, डा. अनुज कुमार, डा.शैलेश सक्सेना, अश्विनी चौहान, डा. रीता शर्मा सहित शहर के गणमान्य लोग मौजूद थे।