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एसआरएमएस रिद्धिमा में रविवार देर रात हिंदी काव्य संध्या "साहित्य सरिता" का आयोजन हुआ। नवोदित कवियों ने रिद्धिमा के मंच से अपने गीतों और मुक्तकों के माध्यम से कविता के सभीं रंगों की बरसात की। कवियों ने मंच से प्रेम, देशप्रेम, माता-पिता के त्याग, बेटी, सामाजिक सद्भाव, भ्रष्टाचार को केंद्रित कर कविता पाठ किया। काव्य संध्या "साहित्य सरिता" में अपने कविता पाठ किया । हर कवि को हर पंक्ति पर दर्शकों की वाह वाह और हर अंतरे पर तालियां मिलीं।
कार्यक्रम का आरंभ प्रयागराज के कवि ज्ञानेंद्र शर्मा प्रयागी ने परिवार में पिता की भूमिका को अपनी कविता में रेखांकित कर किया। बोले- दुख का मंजर इधर आया, हर समंदर इधर आया। तब पिता ने कहा मैं हूं खड़ा, जब एक खंजर इधर आया। अपनी कविता में मां का जिक्र करते हुए ज्ञानेंद्र ने कहा- तारे पल्लू में सब समेटे हुए, मां ने चंदा मुझे पुकारा है। चांदनी का नहीं कोई उबटन, मां ने चेहरा मेरा संवारा है। ज्ञानेंद्र ने दूसरी कविता में विरह का जिक्र किया। बोले- तुम जो बिछड़े कह कर जाते, आंख किबाड़ पे जा टिकती है। भोजीपुरा के युवा कवि शक्ति सिंह ने चांद तारे तो लाना है मुश्किल बड़ा, मांग का तेरी सिंदूर बन जाऊंगा। मुक्तक से अपना कविता पाठ आरंभ किया। फिर गीत, रास्ता वीरान था हम भी चलते रहे, ठोकरें भी लगीं संभलते रहे का उन्होंने पाठ किया। बरेली की युवा कवियत्री उन्नति राधा शर्मा ने अपने कविता पाठ में इश्क को ईश्वर की इबादत बताया। उन्होंने कहा- प्रेम मंदिरर बसेरा सा हो जाएगा, तू जो कह दे सबेरा सा हो जाएगा।
उन्नति ने अगली कविता में कहा- घूमेंगे सारी दुनिया लेकर हाथों में हाथ, प्रिय तुम देना मेरा साथ, हो मथुरा की कुंझ गली या काशी का मणिकर्णिका घाट। बदायूं के युवा कवि विवेक मिश्रा ने अपने कविता में कन्या भ्रूण हत्या का जिक्र किया। बोले- मम्मी पापा दादी से है बस इतनी दरकार, मुझको जग में आने दो मैं देखूंगी संसार। जन्म से पहले माह रहे हो क्या अपराध है मेरा, यदि मैं हूं निर्दोष जो जन्म से क्यूं मुंह फेरा। बदायूं के ही युवा कवि शतवदन शंखधार ने अपनी कविता के माध्यम से श्रोताओं को देशभक्ति के रस से ओतप्रोत किया। बोले- इस देश भर में हुए जो बलिदानी लोग, वतन की खातिर वो सीना तान कर अड़ गए होंगे। शंखधार ने अगली कविता में कहा- पायल की झंकारपे कविता क्या लिखना, चूड़ी कंगन हार पे कविता क्या लिखना। जब भी लिखो शहीदों पे लिखो कविता, फूल कली खार पे कविता क्या लिखना।
कवियत्री स्नेह सिंह ने इबादत करके तो देखो, ईश्वर का आभास होता है। खुदा कहीं और नहीं मिलता, वो स्वयं में विश्वास होता है। मुक्तक से कविता पाठ आरंभ किया। इसके बाद स्नेह ने अपनी कविता में कारगिल, भ्रष्टाचार, चारा घोटाला, आतंकवाद का जिक्र करते हुए कोई तो हो जो एक नया धर्म बनाए, जो हिंदू न मुसलमान इंसान बनाए से अपना कविता पाठ समाप्त किया। बरेली के ही कवि विश्वजीत सिंह निर्भय ने सनातन पर अपनी कविता पढ़ी। कवि और लेखक अभिषेक चित्रांश ने महाकाल को अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने बेटे और बेटी को अपनी कविता में प्रस्तुत किया और कहा- ओस की एक बूंद सी हैं बेटियां, स्पर्श अगर चुभ जाए तो रो देती हैं बेटियां। तबला हारमोनियम और संतूर गिटार भी है बेटा अगर तो, सुर में सरगम हैं बेटियां। सुनाकर श्रोताओं को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। कार्यक्रम का संचालन डा. अनुज कुमार ने किया। इस मौके पर एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देवमूर्ति, आशा मूर्ति, आदित्य मूर्ति जी, ऋचा मूर्ति जी, डा.रजनी अग्रवाल, सुभाष मेहरा, डा. एमएस बुटोला, डा.प्रभाकर गुप्ता, डा.शैलेश सक्सेना, कवियत्री सोनरूपा विशाल, कवि रोहित राकेश और शहर के गणमान्य लोग मौजूद थे।