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आईवीआरआई के ट्रेनिंग कार्यक्रम देश भर के वैज्ञानिकों के लिए बेहद उपयोगी : डॉ त्रिवेणीदत्त

आईवीआरआई में ओडिशा के पशुपालन अधिकारियों के लिए ‘डेयरी विकास एवं चारा संवर्धन” पर पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हुआ। यह प्रशिक्षण 17 अक्टूबर तक चलेगा।

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Sudhakar Shukla
आईवीआरआई में ओडिशा राज्य के पशुपालन अधिकारियों के लिए ‘डेयरी विकास एवं चारा संवर्धन” पर पाँच दिवसीय प्रशिक्षण

आईवीआरआई में ओडिशा राज्य के पशुपालन अधिकारियों के लिए ‘डेयरी विकास एवं चारा संवर्धन” पर पाँच दिवसीय प्रशिक्षण

वाईबीएन संवाददाता बरेली।

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), इज़्जतनगर के संयुक्त निदेशालय (प्रसार शिक्षा) द्वारा ओडिशा राज्य के पशुपालन विभाग के अधिकारियों हेतु “डेयरी विकास और चारा संवर्धन” विषय पर पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 13 से 17 अक्टूबर, 2025 तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें कुल 15 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं।

कार्यक्रम का उद्घाटन संस्थान के निदेशक डॉ. त्रिवेणी दत्त ने किया। उन्होंने कहा कि आईवीआरआई ने पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। आईवीआरआई अब तक पाँच प्रमुख पशु रोगों को देश से समाप्त करने में सहयोग दे चुका है। संस्थान ने अब तक 50 से अधिक जैव उत्पाद विकसित किए हैं, जिनमें 30 टीके शामिल हैं। ये सभी टीके एवं निदान किटें भारत सरकार के राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के अंतर्गत उपयोग में लाई जा रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि आईवीआरआई न केवल जैव उत्पाद विकास के क्षेत्र में अग्रणी है, बल्कि पशु उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। संस्थान द्वारा वृंदावनी गाय एवं लेन्डली सूकर की संकर प्रजातियों को विकसित किया है तथा ग़ुर्राह सूकर, रोहिलखंडी तथा चौगरखा बकरी का पंजीकरण किया गया है, तथा रोहिलखंडी गाय नस्ल का पंजीकरण भी प्रक्रिया में हैं।

डॉ.त्रिवेणी दत्त ने बताया कि आईवीआरआई का प्रकाशन एवं उत्पाद पोर्टफोलियो भी अत्यंत समृद्ध है — अब तक 116 कॉपीराइट, पेटेंट एवं डिज़ाइन पंजीकृत किए जा चुके हैं तथा 47 तकनीकों का व्यावसायीकरण किया गया है। संस्थान देशभर में टीकों की गुणवत्ता नियंत्रण, रोग प्रकोपों में सहायता एवं राज्य जैविक इकाइयों को जैव उत्पाद आपूर्ति जैसी सेवाएँ भी प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि “हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल राज्य सरकारों के लिए, बल्कि देशभर के पशु चिकित्सकों एवं प्रयोगशाला अधिकारियों के ज्ञानवर्धन हेतु अत्यंत उपयोगी हैं। आपकी उपस्थिति हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हम राज्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप संस्थान अपनी अनुसंधान दिशा निर्धारित करते हैं।”

इस अवसर पर संयुक्त निदेशक (प्रसार शिक्षा) डॉ. रूपसी तिवारी ने कहा कि डेयरी क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग है और देश की खाद्य सुरक्षा एवं रोजगार सृजन में इसका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि संस्थान द्वारा विकसित तकनीकों, मोबाइल एप्स, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, पॉडकास्ट्स तथा यूट्यूब चैनलों के माध्यम से किसानों एवं पशुपालन अधिकारियों तक ज्ञान का व्यापक प्रसार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि “निरंतर पशुचिकित्सा शिक्षा” के माध्यम से राज्य अधिकारियों को नवीनतम वैज्ञानिक प्रगति एवं तकनीकी हस्तांतरण से जोड़ना संस्थान की प्राथमिकता है।

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उन्होंने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे ओडिशा राज्य की स्थानीय आवश्यकताओं, चुनौतियों एवं अनुसंधान की संभावनाओं को साझा करें, ताकि उन्हें आईवीआरआई के अनुसंधान एजेंडा में सम्मिलित किया जा सके।

प्रभारी, पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन अनुभाग डॉ. मुकेश सिंह ने  विभाग की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए बताया कि आईवीआरआई देश में साहीवाल, मुर्राह तथा अन्य देशी नस्लों के संरक्षण एवं सुधार हेतु महत्वपूर्ण परियोजनाएँ संचालित कर रहा है।

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