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जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा वक्फ़ संशोधन बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची... कौन है ये संगठन जानिए...

जमात रजा-ए-मुस्तफ़ा, दरगाह आला हजरत/तजुशरिया का 107 साल पुराना एक प्रमुख संगठन है। यह बरेली मरकज देश व दुनिभर के मुसलमानों का सूफिज़्म और अहले सुन्नत का केंद्र है।

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Sudhakar Shukla
Dargah Aala Hazrat9
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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जमात रजा-ए-मुस्तफ़ा,  दरगाह आला हजरत/तजुशरिया का 107 साल पुराना एक प्रमुख संगठन है। यह बरेली मरकज देश व दुनिभर के मुसलमानों का सूफिज़्म और अहले सुन्नत का केंद्र है। काजी ए हिंदुस्तान मुफ़्ती मुहम्मद असजद रज़ा खां क़ादरी की सरपरस्ती व सदारत में जमात ने वक्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की

देश भर में मुसलमानों के धार्मिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्षरत जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की। संगठन का मानना है कि यह बिल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है।

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 क़ाज़ी ए हिंदुस्तान मुफ़्ती मुहम्मद असजद रज़ा खां क़ादरी ने हाल ही में संसद में पास किए गए वक्फ संशोधन बिल 2025 का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों और इस्लामी विरासत पर हमला बताया। इस बिल को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि वक्फ पूरी तरह से धार्मिक मामला है, जो मुस्लिम संपत्तियों की सुरक्षा और उनके धार्मिक उपयोग को सुनिश्चित करता है। उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना और संपत्तियों की नई जांच, संविधान के अनुच्छेद 26 का खुला उल्लंघन है। यह धार्मिक समुदायों को अपने मामले खुद संभालने का अधिकार देता है। उन्होंने कहा कि इस बिल को मुस्लिम वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने और उन्हें माफिया के हवाले करने की साजिश बताया।

 जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष सलमान हसन खान (सलमान मिया) ने कहा कि वक्फ़ संपत्तियाँ मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। यह संशोधन न केवल मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों पर आघात करता है, बल्कि वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाकर धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करता है। हमारा मानना है कि यह कानून संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।

 सलमान मियां ने बताय कि विशेष रूप से वक्फ़ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए सरकारी अधिकारियों को व्यापक अधिकार देने, और वक्फ़ ट्रिब्यूनल के निर्णयों को सीमित करने जैसे प्रावधानों पर आपत्ति जताई है। जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा ने सुप्रीम कोर्ट से इस कानून पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मशहूर वकील चार सदस्य पैनल रंजन कुमार दुबे, प्रिया पुरी, तौसीफ खान और मुहम्मद ताहा के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

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