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बरेली में चुनाव हारने वाले नेता बेरोजगार, इसलिए भाजपा-सपा में बढ़ी अंदरुनी रार

बरेली की राजनीति में भाजपा के अंदर चुनाव हारने वाले नेता एक साल से बेरोजगार हैं। सपा में भी नेताओं के पास कोई काम नहीं है। इसलिए दोनों ही दलों में अंदरुनी टकरार बढ़ी है।

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Sudhakar Shukla
bjp and sp
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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बीते साल लोकसभा चुनाव में रुहलेखंड मंडल में भाजपा को तगड़ा झटका लगा। आंवला और बदायूं लोकसभा सीटें भाजपा को समाजवादी पार्टी के हाथों गंवानी पड़ीं। इसके अलावा बरेली और शाहजहांपुर सीटों पर भाजपा की जीत जरुर हुई। लेकिन जीत का अंतर काफी कम हो गया। पीलीभीत लोकसभा सीट पर प्रत्याशी बदलने के बाद भी पार्टी को अच्छे वोटों के अंतर से जीत मिली। वहीं सपा ने आंवला और बदायूं की सीटें भाजपा को हराकर जीत लीं। इससे साइकिल वाली पार्टी के नेताओं का उत्साह दो गुना हो गया। मगर, लोकसभा चुनाव के एक साल बीतने से पहले ही दोनों प्रमुख दलों के बड़े नेताओं के बीच अंदरुनी टकरार बढ़ने लगी है। यह इन दलों के शीर्ष नेताओं के लिए चिंता का विषय हो सकता है। 

सोशल मीडिया पर आए दिन विवादित भाषणों के पड़ रहे वीडियो 

कुछ दिन पहले महर्षि कश्यप जयंती के मौके पर भाजपा के पूर्व सांसद ने अपने भाषण का एक वीडियो जारी किया। इसमें उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के जिन नेताओं ने उनको तीसरी बार लोकसभा में जाने से रोका। उनको वह 2027 के चुनावों में लखनऊ विधानसभा का मुंह भी नहीं देखने देंगे। पूर्व सांसद ने अपने भाषण में तीसरी बार लोकसभा में जाने से रोकने वाले किसी नेता का नाम तो नहीं लिया। लेकिन, राजनीतिक पंडितों के अंकगणित पर भरोसा करें तो उन्होंने अपनी ही पार्टी के दो या तीन मौजूदा विधायकों पर बिना नाम लिए हमला बोला। सूत्रों के मुताबिक पूर्व सांसद के लोकसभा चुनाव में एक विधायक ने अपने विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार की सिर्फ खानापूरी ही की। वह इक्का दुक्का जगह ही चुनाव प्रचार करने गए। उन्होंने अपना बाकी समय विश्वविद्यालय में गुजारा। लिहाजा, जब चुनाव परिणाम आए तो उनकी विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी गिनती में पिछड़ गए। जबकि उनको बीते चुनावों में बरेली बार्डर से लगी विधानसभा से लगातार लीड मिलती रही। वहीं बदायूं लोकसभा की एक विधानसभा सीट पर भाजपा के विधायक थे और दूसरी पर सपा के। भाजपा विधायक पूर्व सांसद के नसबंदी वाले बयान से चिढ़कर पहले तो घर बैठ गए। मगर, जब संगठन का दबाव बढ़ा तो कुछ दिन ही चुनाव प्रचार करके खानापूरी कर दी। एक अन्य विधायक के बारे में कहा जाता है कि वह पूरे दिन ओपीडी करते रहे। चुनाव प्रचार के नाम पर अपने कुछ फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड कर देते थे, ताकि यह लगे कि माननीय जी पूर्व सांसद को तन-मन और धन से चुनाव लड़ा रहे हैं। इन सबका नतीजा यह निकला कि पूर्व सांसद जो बीते दो चुनावों में लगातार एक से सवा लाख वोटों से जीतकर लोकसभा पहुंचते थे। वह तीसरी बार 15 हजार से ज्यादा वोटों से आंवला में ही रुक गए। उनका तीसरी बार दिल्ली पहुंचने का सपना अधूरा रह गया। 

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पूर्व विधायक ने भी चुकता किया हिसाब 

बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा के एक पूर्व विधायक ने भी आंवला लोकसभा क्षेत्र में अपना पुराना हिसाब किताब चुकता कर लिया। सूत्रों के अनुसार 2022 के विधानसभा चुनाव में इन माननीय का टिकट अचानक पार्टी ने काट दिया था। उनको टिकट काटने की कोई वजह भी नहीं बताई गई। इसके पीछे यह माना गया कि उस समय मौजूदा सांसद समेत बरेली के दिग्गज नेता, चुनाव प्रभारी, भाजपा संगठन के एक नेता ने उनका टिकट कटवाने में अहम भूमिका निभाई थी। टिकट कटने के बाद पूर्व विधायक उस समय तो खामोश हो गए। मगर, 2024 के लोकसभा का चुनाव शुरू हुआ तो उन्होंने दोनों नेताओं को निपटाने में पूरी ताकत लगा दी। नतीजा, यह निकला कि एक दिग्गज नेता का तो भाजपा ने टिकट काट दिया। वहीं दूसरे चुनाव में हार गए। दोनों बड़े नेताओं का बरेली की राजनीति में डिब्बा गोल होने से उनकी ताकत में इजाफा हो गया। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने भी इसका संज्ञान लिया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्व विधायक को चुनाव प्रभारी बनाकर भेजा गया। पार्टी उनकी भूमिका को बढ़ाने की कवायद में जुटी है, ताकि 2027 के विधानसभा चुनाव में किसी भी तरह के नुकसान से बचा जा सके। कुल मिलाकर बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा अपनी प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी से कम, अंदरुनी कलह से ज्यादा हारी। इससे पहले वहीं दूसरी ओर भाजपा के पूर्व विधायक ने आंवला विधानसभा में वर्ष 2022 के चुनाव में सपा के अपने सजातीय प्रत्याशी का खुलकर विरोध करते हुए तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी और यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री को चुनाव लड़ाया तो उनकी जीत का अंतर 30 हजार वोटों तक पहुंच गया। जबकि इससे पहले यही कैबिनेट मंत्री तीन या चार हजार वोटों से ही अपना चुनाव जीत पाते थे। वह भी जब तक वोटों की गिनती नहीं हो जाती थी, तब तक उनकी हार की ही भविष्यवाणी होती रहती थी। पिछली बार पूर्व भाजपा विधायक के चुनाव प्रचार का असर जीत के बड़े अंतर के रुप में दिखा।

भाजपा विधायक को सबक सिखाने को लगवाए होर्डिंग-पोस्टर 

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राजनीतिक पंडितों का कहना है कि पूर्व सांसद अपनी हार से न केवल परेशान हैं, बल्कि वह भाजपा के उन विभीषणों को सबक सिखाने की तैयारी में लग गए हैं, जिन्होंने उनको तीसरी बार लोकसभा में जाने से रोका है। इनमें उनके निशाने पर अपनी ही पार्टी के तीनों मौजूदा माननीय, एक ब्लॉक प्रमुख और  विधान परिषद सदस्य हैं। ब्लॉक प्रमुख अपने क्षेत्र में भाजपा को अपनी बिरादरी के ही वोट नहीं दिलवा पाए। वहीं अंदरुनी सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के समय भाजपा एमएलसी के लैंड लाइन फोन से तमाम बूथ और मंडल प्रभारियों और अन्य भाजपा वोटरों को फोन करके सपा प्रत्याशी को वोट देने को कहा गया था। यह बात चुनाव बाद कराए गए सर्वे में भी पता चली है। इन सब बातों से नाराज पूर्व सांसद ने एक विधानसभा में अपनी बेटी के होर्डिंग-पोस्टर भी लगवा दिए हैं। मतलब, पूर्व सांसद भाजपा विधायक के खिलाफ अपनी बेटी को मैदान में उतारेंगे। चाहे भाजपा के टिकट पर उतारें या फिर किसी दूसरे दल के टिकट पर। 

सपा में भी कम नहीं है अंदरुनी कलह 

समाजवादी पार्टी को आंवला लोकसभा में भाजपा की अंदरुनी फूट का फायदा मिला और वह अपना प्रत्याशी मामूली अंतर से ही, जिताने में कामयाब हो गई। मगर, चुनाव जीतने के बाद जिस तरह से सपा सांसद का अपनी पार्टी के नेताओं के प्रति रवैया है। उससे सपा के बड़े नेता से लेकर छोटे कार्यकर्ता तक बहुत नाराज हैं। खासतौर से सपा का वोट बैंक समझे जाने वाले मुस्लिम और यादव मतदाताओं में अपने ही सांसद के व्यवहार के प्रति खासा आक्रोश है। सपा के नेताओं का नाम न प्रकाशित करने की गुजारिश पर कहना है कि सांसद ने चुनाव जीतने के बाद इक्का-दुक्का चापलूसों को छोड़कर न तो किसी का फोन उठाया। न ही किसी भी सपाई के काम में आए। खास बात यह है कि उनकी भाजपा के नेताओं के साथ उनकी पटरी बहुत अच्छी बैठ रही है। वह दिग्गज भाजपा नेता को दिल्ली में सांसद कोटे से आवास दिलाने के लिए पत्र भी लिख चुके हैं।

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