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रिद्धिमा में नाटक द्विंद का जीवंत मंचन : बच्चों से समय और सम्मान ही तो चाहते हैं मां-बाप

कहानीकार डॉ. रिजवाना बी द्वारा लिखित कहानी पर आधारित नाटक द्वन्द का मंचन रविवार को एसआरएमएस रिद्धिमा के प्रेक्षागृह में किया गया। कलाकारों के जीवंत मंचन ने मन मोह लिया

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Sudhakar Shukla
रिद्धिमा में नाटक द्वंद्व का जीवंत मंचन करते हुए कलाकार

रिद्धिमा में नाटक द्वंद्व का जीवंत मंचन करते हुए कलाकार

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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

डॉ. रिजवाना बी की कहानी पर आधारित नाटक द्वन्द का मंचन रविवार (31 अगस्त 2025) देर रात एसआरएमएस रिद्धिमा के प्रेक्षागृह में किया गया। इस कहानी को नाट्य रूपान्तर डॉ. रिजवाना बी और अश्वनी कुमार ने। विनायक कुमार श्रीवास्तव निर्देशित यह नाटक दो परिवारों पर केंद्रित रहा। इसमें एक परिवार खुशहाल है और दूसरा दुखी। खुशहाल परिवार में राम नाथ मिश्रा अपनी पत्नी गीता, बेटा अमित, बहु नीलम और पोती शुभी के साथ रहते हैं। बेटा अमित अपने मां- पिता को कभी दुखी नहीं होने देता है, लेकिन इसके विपरीत दूसरी तरफ विवेक का परिवार है। इस परिवार में विवेक की पत्नी रीना, बेटी शुभी और विवेक के मां- पिता यानि शुभी के दादा और दादी रहते हैं। दादा सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके हैं। बेटा विवेक और बहु उनको कोई सम्मान नहीं देते और न ही समय ही देते हैं। इससे दोनों बुजुर्ग बहुत अकेलापन महसूस करते है। काम में व्यस्त होने के कारण विवेक के पास समय ही नहीं है और माता पिता के साथ भी उसका व्यवहार ठीक नहीं है। मां-बाप चाहते हैं कि बेटा बहु और पोती उन्हें भी थोड़ा समय दें, लेकिन विवेक अपने काम की वजह से उन्हें समय नहीं दे पाता। फ्रेंड सर्किल और फोन पर व्यस्त रहने के कारण बहु रीना भी उन्हें समय नहीं देती। 

फोन पर व्यस्त रहते हैं बहू और पोती

पोती रागिनी भी अपने  खिलौनों और फोन पर व्यस्त रहती है। विवेक के पिता एक दिन अपनी तबियत ख़राब होने के कारण डाक्टर को दिखने के लिए कहते हैं, विवेक समय के आभाव बता कर अगले रविवार को दिखाने को कहता है। रीना भी सास से किसी न किसी बात पर आपस में कहासुनी करती है। दादा और दादी का मन खिन्न हो जाता है। उनको ऐसा लगता है वो दोनों घर के कोने में पड़े हुए कोई फर्नीचर है। इसी तरह पोती रागिनी भी दरवाज़े पर सामने आने पर कहती है दादू सामने से हटो मेरे फोन का नेटवर्क स्लो हो जाता है। इसी तरह कई घटनाओं के बाद एक दिन दोनों घर छोड़ देते है। तब विवेक और रीना को पछतावा होता है कि उन्होंने बहुत गलत किया। तभी उनका पडोसी शिवम विवेक को बताता है उसके माँ पिता को रेलवे स्टेशन पर देखा है। उसी समय विवेक की बहन नीलम आती है, जो कि रामनाथ मिश्रा के बेटे अमित की पत्नी है। विवेक अपनी बहन को देख कर भावुक हो जाता है। नीलम समझाती है मां- पापा को सिर्फ थोड़ा समय चाहिए और कुछ नहीं। विवेक अपने मां- पिता को ले आता है। सभी को चाहे बुजुर्ग हों या उनकी संतान आपस में एक दूसरे की भावनाओं को समझने और बुजुर्गों को समय देने के संदेश के साथ नाटक का समापन होता है। नाटक में दादा और दादी का किरदार राज किशोर पाठक और डा सुषमा सिंह ने निभाया। श्रीकांत तिवारी (विवेक), कविता तिवारी (रीना) विनायक श्रीवास्तव (रामनाथ मिश्रा), सौरभ रस्तोगी (अमित), सोनालिका सक्सेना (नीलम) के साथ ही अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को संजीदगी से निभाया। नाटक में ध्वनि संचालन हर्ष गौड़ और प्रकाश संचालन जसवंत सिंह ने किया। जबकि सूर्यकान्त चौधरी ने वायलिन, अनुग्रह सिंह ने की बोर्ड और विशेष कुमार ने गिटार के जरिये मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस अवसर पर एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक एवं चेयरमैन देव मूर्ति, आशा मूर्ति, आदित्य मूर्ति, ऋचा मूर्ति, उषा गुप्ता, सुभाष मेहरा, डा.एमएस बुटोला, डा.प्रभाकर गुप्ता, डा.अनुज कुमार, डा.शैलेश सक्सेना, डा.मनोज कुमार टांगड़ी, डा.रीटा शर्मा सहित शहर के गण्यमान्य लोग मौजूद थे। 

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