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नगर निगम बरेली
बरेली,वाईबीएनसंवाददाता।
आठ साल पहले बरेली को सिंगापुर बनाने का दावा करने वाले एक धन नेता के कार्यकाल में नगर निगम, स्मार्ट सिटी, सीएम ग्रिड और Ncap समेत केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के अलावा स्थानीय आय से 5000 करोड़ से ज्यादा का बजट खर्च हो चुका है। इसके बाद भी शहर बदहाली के कगार पर है। मगर,नेताजी जनता के दुख को अपना दर्द न समझकर चापलूसों से सिर्फ अपना गुणगान कराने में लगे हैं। जब भी बरसात होती है तो बरेली के मुख्य मार्गों के अलावा पॉश कॉलोनियों और निचले इलाकों में पांच से छह फुट तक पानी भर जाता है। तब न तो धन नेता जनता के किसी व्यक्ति का फोन रिसीव करते हैं, न ही नगर निगम के अफसर। बल्कि नेताजी शहर की खंडहर सड़कें और गलियों में जलभराव जैसी समस्याएं सुलझाने के बजाय बरसात से भीगी अपनी सेल्फी फेसबुक पर डालकर शहरवासियों का मजाक उड़ाते दिखते हैं।
नगर निगम वैसे जनता से सीधी जुड़ने वाली एक स्वायत्त संस्था है। यहां ऐसे जनप्रतिनिधि चुनने को प्राथमिकता दी जाती है जो शहर की जनता के लिए न केवल 24 घंटे उपलब्ध रहे बल्कि सड़क, बिजली, पानी, कूड़ा उठान जैसे समस्याओं को तुरंत हल कराए। मगर, बरेली में भाजपा ने किसी जन नेता की जगह धन नेता को शहर का जन प्रतिनिधि बनाया। इसका नतीजा सबके सामने है। धन नेता ने शहर को गर्त में डालकर सिर्फ अपना विकास किया। भारत के इंदौर जैसे शहरों में नगर निगम जमीनी स्ततर पर नई सोच के साथ विकास कार्य कराने के लिए जाना जाता है। इंदौर के जनप्रतिनिधि अक्सर खुद जनता के बीच झाड़ू लगाते दिखते हैं। शायद, इसीलिए इंदौर देश ही नहीं, दुनिया के स्मार्ट शहरों में अपनी जगह बनाए हुए है। मगर, उसके विपरीत बरेली को देख लीजिए। बरेली का नगर निगम भ्रष्टाचार में पैर से शिख तक आकंठ डूब चुका है। यहां के जनप्रतिनिधि कमीशन वसूलने और सोशल मीडिया पर अपनी सेल्फी डालने में अपना समय लगाते हैं। उनको शहर के विकास से कोई मतलब नहीं है। हां, उस विकास कार्य में कमीशन कितना आएगा, इससे पूरा मतलब है। इसीलिए, नगर निगम में कमीशन के बिना कोई काम नहीं होता। सबसे बड़ी बात तो यह है कि नगर निगम के निर्माण कार्यों में कमीशन वसूलने में धन नेता अव्वल नंबर पर हैं। फिर नगर निगम के बाकी स्टाफ का क्या कहना?
सावन जो आग लगाए, उसे कौन बुझाए ...
एक पुरानी फिल्म का गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ था। वह था कि चिनगारी कोई भड़के ...तो सावन उसे बुझाए। सावन जो अग्नि लगाए, उसे कौन बुझाए...। जब माझी ही बरेली की नाव डुबोने में लगा हो तो उसे कौन बचा सकता है।
एक निजी एजेंसी द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार ज्यादातर शहरवासी यह मानते हैं कि नगर निगम के नेताजी अपने धन के बल पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के अलावा बरेली की जनता को भी मूर्ख बनाकर ठेकेदारों के कमीशन से अपनी जेबें भरने में लगे हैं। ऐसे में शहर के विकास की चिंता कौन करे। सूत्रों के मुताबिक नेताजी का अगला लक्ष्य है कि कैंट से एमएलए का चुनाव जीतकर लखनऊ या दिल्ली की सरकार में मंत्री बनना। शहर के विकास की चिंता छोड़ नेताजी अपने इसी लक्ष्य को पाने में लगे हैं। इन नेताजी के कार्यकाल में नगर निगम बरेली घपले-घोटालों का ऐसा इतिहास लिखने जा रहा है, जो न केवल वर्तमान बल्कि आने वाले दशकों तक शहर की बदहाली के दर्द का अहसास कराएगा।
नगर निगम अब तक केवल सड़क और नाली निर्माण पर 1200 करोड़ से ज्यादा का बजट खर्च कर चुका है। लेकिन इस बजट से शहर का धरातल पर विकास होने के बजाय हजारों करोड़ रुपए नेताजी, अफसर, इंजीनियर और ठेकेदारों की जेब में पहुंच गया। इतना बजट खर्च होने के बाद भी बरसात के मात्र तीन महीने में शहर की मुख्य सड़कें और वार्डों की गलियां टूटकर खंडहर बन चुकी हैं। जरा सी बारिश में शहर मिनी तालाब बन जाता है। इस तरह का नजारा शहर के किसी भी कोने से घूमकर कहीं पर भी साक्षात रूप से देखा जा सकता है। एक नजारा यहां भी देखिए।
सिंगापुर की तरह स्मार्ट सिटी बरेली की सड़कों की बदहाली की एक झलक:
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तत्कालीन नगर आयुक्त एन सैमुअल पाल ने लगाई थी घोटालों पर लगाम...
नगर निगम के घोटालों की सूची इतनी लंबी है कि अगर कोई पढ़ने लगे तो उसे लंबा वक्त लगेगा। यह सब घोटाले बरेली को सिंगापुर की तर्ज पर स्मार्ट सिटी बनाने के नाम पर बीते आठ साल से चल रहे हैं और अभी जारी हैं। बीच में डेढ़ साल के लिए एक आईएएस अफसर एन-सेमुअल पाल नगर आयुक्त बनकर बरेली आए थे। वह ईमानदार अधिकारी थे। उनके कार्यकाल में नगर निगम की कमीशन खोरी पर कुछ हद तक लगाम लगी थी। उन्होंने सड़क, नाली, सीवर, होर्डिंग, बैनर से होने वाली आमदनी, नगर निगम की संपत्तियों का किराया, स्मार्ट सिटी के बजट, सीएम ग्रिड और Ncap जैसे मदों में मिलने वाले बजट को ईमानदारी से खर्च करने पर जोर दिया था। तो नेताजी और नगर आयुक्त के बीच में मतभेद पनपने लगे। नेताजी को नगर निगम से कमीशन मिलना बंद हो गया। तो तत्कालीन नगर आयुक्त के खिलाफ लामबंदी होने लगी। आखिर में साहब ने सत्ता के बल पर लखनऊ से जोर-दबाव बनाकर तत्कालीन नगर आयुक्त का ट्रांसफर करा दिया। उसके बाद से तो नगर निगम के बजट की ऐसी लूट मची कि सबके होश फाख्ता हो गए। शहर में नगर निगम का ऐसा कोई काम नहीं, जो बिना कमीशन लिए कराया गया हो। ठेकों में कमीशन का चलन इतना बढ़ा कि प्रत्येक काम में नेताजी से लेकर निगम के अफसर, इंजीनियर और कर्मचारियों को मिलाकर 45 फीसदी या उससे अधिक का रेट पहुंच गया। उस पर नेताजी प्रत्येक टेंडर में 15 प्रतिशत एडवांस लेने लगे। ठेकेदारों और नेताजी के बीच उनके आलीशान ऑफिस में गोपनीय मीटिंग का सिलसिला इतना लंबा चलने लगा कि आम शहरवासियों की हालत बद से बदतर होती चली। नतीजा यह निकला कि शहर के मुख्य मार्गों की जो सड़कें पीडब्ल्यूडी के मानक के हिसाब से पांच साल चलनी चाहिए थीं। वह सड़कें या गलियां छह महीने में दो-बार उखड़कर फिर से बनने लगीं। अत्याधिक कमीशन की वजह से नगर निगम के ठेकेदार घटिया गुणवत्ता की टाइल्स व निर्माण सामग्री लगाने लगे। यहां तक कि तमाम सड़क और नालियों को नगर निगम से केवल कागजों पर बना दर्शाकर हजारों करोड़ के वारे-न्यारे किए गए। फिलहाल, नगर निगम के बजट में खुली लूट अब भी जारी है।
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