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फूड कोर्ट की वह अधूरी दास्तां, जो तीन महीने में पूरी होनी थी, 11 महीने बाद अधूरी है
बरेली, वाईबीएन संवाददाता। स्मार्ट सिटी के नाम पर शहर बीते आठ साल में भले ही बद से बदतर हालत में पहुंच चुका हो, लेकिन नगर निगम में नीचे से ऊपर तक लिफाफे का खेल चल रहा है। वह तो दिवाली पर महापौर उमेश गौतम द्वारा भाजपा के 50 से अधिक और बाकी अन्य निर्दलीय पार्षदों को गिफ्ट के रुप में नोटों का लिफाफा और अटैची बांटने का मामला चर्चा में आ गया। अन्यथा, अब तक किन-किन लोगों को मुंह बंद करने के लिए लिफाफे और अटैची मिले, वह किसी को पता नहीं चला। नगर निगम में महापौर और पार्षदों से लेकर अधिकारियों तक बल्कि विकास के नाम पर बरेली से लखनऊ तक लिफाफा और अटैची का खेल लंबे समय से चल रहा है। यह अब भी जारी है। भाजपा समेत अन्य दलों के नेता लिफाफे और अटैची पर गहरी सांस लेकर लंबी चुप्पी साधे हुए हैं।
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दिवाली पर महापौर उमेश गौतम ने भाजपा समेत निर्दलीय या बाकी कुछ दलों के पार्षदों को नोटों का लिफाफा और अटैची उपहार में दी थी। उन्होंने उसके फोटो और वीडियो भी डाले थे। तबसे यह मामला शहर ही नहीं, बल्कि लखनऊ तक चर्चा में है। महापौर के खुलेआम लिफाफा और अटैची बांटकर उसके फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करने से यह तो साबित हो गया कि नगर निगम में लंबे समय से लिफाफे और अटैची का खेल चल रहा है। इस खेल में महापौर उमेश गौतम से लेकर पार्षद, नगर निगम के अधिकारी और लखनऊ के भी कुछ बड़े नाम भी शामिल हैं। शहर में चहुं ओर चर्चा है कि वर्ष 2017 से नगर निगम में अटैची और लिफाफा कल्चर पूरी तरह से हावी हो गया है। इस कल्चर के चलते शहर के विकास कार्य ठप हैं। सिर्फ लिफाफा और अटैची ही बंट रहे हैं। जनप्रतिनिधि अपने लिफाफे और अटैचियां लेकर शहर को गड्ढे और नाली में ढकेलने में लगे हुए हैं।
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एडटेक एजेंसी ने नगर निगम में बिना जमानत राशि जमा किए कर लिया अनुबंध, अब नोटिस
चाहे सीएम ग्रिड के काम हों या फिर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के। हर किसी में 45 फीसदी कमीशन का खेल खुलेआम चल रहा है। इस खेल में अब शहरवासी भी जानने लगे हैं। ताजा मामला फूड कोर्ट का है। माननीय की बेहद करीबी एजेंसी एड-टेक प्रिंट एंड मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने मल्टी लेबिल कार पार्किंग, जिसमें 33 कार का स्पेस बनना है, ने परिसर और लाइट एंड साउंड में नगर निगम से अनुबंध किया था। एग्रीमेंट के अनुसार फूड प्रोजेक्ट तीन माह में पूरा करना था। मगर, एक साल बीतने के बाद ये प्रोजेक्ट अधूरा है। तो इसकी वजह आसानी से समझी जा सकती है। वह यह है कि एड टेक टेक एजेंसी के संचालक राजीव तनेजा और उनके एक पार्टनर माननीय के बेहद खास है। वह उनके शहर के अंदर लग्जरी ऑफिस में ही दिन-रात माननीय की सेवा में लगे रहते हैं। तो उनका भला कौन क्या बिगाड़ सकता है। हालांकि नगर आयुक्त संजीव मौर्य ने एडटेक को नोटिस जारी करके खानापूरी करने की कोशिश की है। मगर, वह महज औपचारिकता है। नगर आयुक्त के नोटिस में यह कहा गया है कि निर्धारित समय में काम पूरा नहीं किया गया तो उनकी जमानत राशि जब्त करके अनुबंध निरस्त कर दिया जाएगा। वहीं एडटेक के संचालक राजीव तनेजा का कहना है कि उनको अभी नोटिस प्राप्त ही नहीं हुआ। जब नोटिस मिलेगा तो जमानत राशि जमा करा दी जाएगी। मतलब, एडटेक के संचालक राजीव तनेजा ने नगर निगम से फूट कोर्ट संचालित करने का अनुबंध तो कर लिया। लेकिन जमानत राशि 11 महीने बाद तक जमा नहीं की। शहर वासी इस खेल को आसानी से यह समझ सकते हैं कि नगर निगम में ऊपर से नीचे तक क्या खेल चल रहा है? माननीय का अटैची और लिफाफा शहरवासी सोशल मीडया पर खुलेआम देख ही रहे हैं। क्या अब इसके आगे भी कहने को कुछ बाकी है?
वर्जन
फूड कोर्ट के अनुबंध में बकाया जमानत राशि जमा न करने के लिए एडटेक एजेंसी के संचालक को नोटिस जारी किया गया है। सात दिन में जमानत राशि जमा न करने पर अनुबंध निरस्त कर दिया जाएगा। संजीव मौर्य, नगर आयुक्त, नगर निगम बरेली
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