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नगर निगम : गंगानगर कॉलोनी में ठेकेदार ने कम कर दी इस सड़क की लंबाई
सीन एक,
वार्ड 35 में नगर निगम ने 26 अप्रैल 2025 को 07 लाख 31 हजार की लागत से सीसी रोड की मरम्मत और नाली निर्माण के टेंडर आमंत्रित किए। यह वह रोड थी, जो पहले से ही बनी थी। इस टेंडर की रकम कब और कहां चली गई। यह किसी को नहीं पता।
सीन दो,
15 मई 2021 को नगर निगम से गंगा नगर कॉलोनी में स्वीकृत 123 मीटर लंबाई की सड़क का निर्माण होना था। नगर निगम के ठेकेदार ने मात्र 105 मीटर सड़क ही बनाई। बाकी सड़क का शेष भाग 18 मीटर अधूरा ही छोड़ दिया। सड़क निर्माण की गुणवत्ता बेहद घटिया थी।
सीन तीन,
गाजियाबाद के एक ठेकेदार को बरेली नगर निगम में काम देने के बदले में कई करोड़ रुपए एक प्राइवेट ऑफिस में गोपनीय मीटिंग करके एडवांस ले लिए गए। उस ठेकेदार को जब काम नहीं मिला तो बहुत दिन तक नगर निगम के चक्कर लगाता रहा।
सीन चार,
वर्ष 2017 में सत्ता बदलते ही नदौसी के एक ठेकेदार की दो फर्में ब्लैक लिस्टेड हुईं। दोनों फर्म पूर्व महापौर और उनके पूर्व निजी सचिव के नजदीकी ठेकेदार की होने के आरोप थे। बाद में ठेकेदार की मोटी डील हो गई तो उनको बहाल करके नगर निगम में काम भी मिल गया।
बरेली, वाईबीएन संवाददाता।
वर्ष 2017 में नगर निगम चुनाव से पहले बरेली कॉलेज के मैदान में एक बड़ी जनसभा हुई थी। उसमें महापौर का चुनाव लड़ने वाले उस समय के नए-नवेले धन नेता ने शहरवासियों से बरेली को पांच साल में सिंगापुर बनाने के दावे किए थे। पांच साल बीत गए। बरेली तो सिंगापुर की तरह स्मार्ट बनने के बजाय पहले से भी बदतर हालत में चला गया। मगर, धन नेता कहलाने वाले साहब जरुर स्मार्ट बन गए। साहब ने नगर निगम से मिलने वाले मोटे कमीशन से न केवल लखनऊ रोड पर सैकड़ों बीघा जमीन खरीद डाली। बल्कि सिविल लाइंस में एक व्यापारी की पार्टनरशिप में आलीशान होटल भी बना लिया। नगर निगम से मोटी कमाई करने के बाद साहब ने समाजसेवा करने का नया फंडा निकाला। उस फंडे में समाजसेवा तो कहीं नहीं थी, लेकिन गरीबों को मूर्ख बनाकर अपना पहले से ठप निजी अस्पताल चलाने के लिए पीएम मोदी की नकल करते हुए आयुष्मान कार्ड की तर्ज पर लाल या पीले रंग के हेल्थ कार्ड भी जारी कर दिए गए। उन हेल्थ कार्ड पर झांसा तो मुफ्त इलाज का है, लेकिन अस्पताल में पर्चा बनने की फीस चुकाने से लेकर पांच गुनी कीमत पर दवाई मिलती है। इतना ही नहीं, कहीं 20 हजार बहनों से राखी बंधवाने तो कहीं हेल्मेट बांटने समेत तमाम राजनीतिक ड्रामा अब भी जारी है।
क्या बरेली बचे कार्यकाल में बन पाएगा सिंगापुर
बरेली को सिंगापुर बनाने के सपने सबसे पहले साल 2017 में दिखाए गए थे। उस समय देश और प्रदेश में पीएम मोदी और योगी की लहर थी। उसी लहर पर सवार होकर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ने वाले एक धन नेता ने कैडर और कद्दावर को पीछे छोड़ते हुए भाजपा का चाल, चेहरा और चरित्र सब कुछ बदल डाला। एक समय था, जब भाजपा में कैडर, कद और बरसों की तपस्या को देखते हुए टिकट तय होते थे। मगर, उसी भाजपा में बीते आठ या 10 साल से पूंजी देखकर टिकट तय होने लगे। उसी का फायदा उठाकर बाहर से आए एक धन नेता ने न केवल नगर निगम बल्कि पूरी भाजपा पर एक तरह से कब्जा कर लिया। नगर निगम के निर्माण कार्यों, विज्ञापन एजेंसी, निगम की पुरानी संपत्तियों से राजस्व वसूली, दुकानों की नीलामी, शहर के बाजारों से किराया, अतिक्रमण, औद्योगिक एरिया में विकास कार्य, डोर टू डोर कूड़ा उठाने के ठेके, विज्ञापन के ठेके, पार्कों और उद्यानों में हरियाली बढ़ाने के स्थान पर ठेकों पर होटल और रेस्टोरेंट खुलवाकर सरकारी राजस्व बढ़ाने की जगह अपनी ऊपरी कमाई के रास्ते तलाशने समेत हर एक जगह कमीशनखोरी करके एक तरह से लूट मचा दी गई। नतीजा यह है कि बीते आठ साल में नगर निगम के किसी भी काम में ठेकेदारों से कमीशन 16 प्रतिशत से बढ़कर 45 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी बरेली स्मार्ट नहीं बन पाया। अधिकांश इलाके तो दिन प्रति दिन बद से बदतर हालत में पहुंच चुके हैं। मगर, साहब की स्मार्टनेस दिन पर दिन बढ़ गई है क्योंकि चारो ओर से न केवल मोटी कमाई हो रही है बल्कि सत्ता में प्रभाव भी बढ़ता चला गया। अब साहब अपने कार्यकाल के बचे हुए तीन साल में बरेली को फिर से सिंगापुर बनाने का वादा दोहरा रहे हैं।
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