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बरेली नगर निगम
बरेली,वाईबीएनसंवाददाता।
मशहूर फिल्मी गीतकार साहिर लुधियानवी ने आगरा के ताजमहल को मोहब्बत की निशानी बताने वालों के लिए लिखा है कि इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर,ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़... मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे..। वैसे तो गजल की ये पंक्तियां मुमताज की याद में ताजमहल बनाने वाले दौलतमंद शाहजहां की मुहब्बत पर व्यंग्य करके लिखी गई हैं। मगर, यहां पर इन पंक्तयों को चरितार्थ किया है दौलत के बल पर सत्ता हासिल करके बरेली को सिंगापुर की तर्ज पर स्मार्ट सिटी बनाने का सपना दिखाकर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ने वाले धन नेता ने।
आठ साल पहले बरेली को सिंगापुर की तरह स्मार्ट बनाने का दावा करने वाले यह धन नेता शहरवासियों के सामने किए गए अपने पुराने वादे तो भूल गए। लेकिन सत्ता पाते ही उन्होंने नगर निगम की पुरानी चकाचक सड़क, नालियों, बिल्डिंग या अन्य निर्माण कार्यों के नाम पर अलग-अलग मदों के बजट में बार-बार निर्माण होना दर्शाकर हजारों करोड़ के वारे-न्यारे कर लिए। नगर निगम की दर्जनों सड़कें अब भी ऐसी हैं, जिनकों एक या दो साल के अंदर विभिन्न मदों में से चार से छह बार निर्माण कराना दर्शाकर हजारों करोड़ के बजट का बंदरबांट किया गया। आज की तारीख में चार या छह बार की चकाचक बनी वह सब सड़कें या नालियां खंडहर बनी हुई हैं। धन नेता के कार्यकाल में कुतुबखाना पुल का निर्माण शहर के विकास में मील का पत्थर माना जाता है। मगर, शहरवासियों को अच्छी तरह से याद है कि तीन साल पहले सेतु निगम के ठेकेदार ने पुल का निर्माण अचानक रोक दिया था। तब यह खबर भी सोशल मीडिया की सुर्खियां बनी थी कि साहब उस ठेकेदार से ओवरब्रिज की कुल लागत का 12 प्रतिशत कमीशन एडवांस देने का दबाव बनाए हुए थे। हालांकि बाद में यह मामला कैसे निपटा? यह अब भी शहरवासियों के लिए अबूझ पहेली है। अब हालांकि कुतुबखाना पुल बनकर तैयार हो चुका है। और यह पुल सिंगापुर की तर्ज पर बरेली को स्मार्ट बनाएगा।
वार्डों के कामों में भी सैकड़ों करोड़ के बजट का गोलमाल
सूत्रों की मानें तो शहर के 80 वार्डों में नगर निगम की तरफ से हुए विकास कार्यों में बीते आठ साल में अरबों रुपए का घपला किया जा चुका है। नगर निगम के काम के घपलों की आठ साल की सूची बनाई जाए तो उसे देखकर शहरवासियों के कान खड़े हो जाएंगे। नगर निगम की तरफ से कुछ साल पहले यह दावे किए गए कि शहर के समस्त 80 वार्डों को बीते आठ साल में प्रति वर्ष पांच करोड़ से लेकर 50 करोड़ रुपए विकास कार्यों के लिए आवंटित किए गए। मगर, इतनी बड़ी रकम कहां और किस काम में किस तरह खपाई गई। उन कामों की गुणवत्ता क्या थी। इसका कोई हिसाब-किताब किसी के पास नहीं है। साहब के पीलीभीत बाईपास रोड निवासी एक खास ठेकेदार को शहर में होर्डिंग, बैनर,पोस्टर समेत पूरे विज्ञापन वसूली का ठेका नियमों को ताक पर रखकर मिला है। उस ठेकेदार को नगर निगम से हजारों करोड़ रुपए का विज्ञापन देने के लिए बाइलाज में बदलाव कर दिया गया। दूसरे ठेकेदारों को लाख कोशिश करने पर भी विज्ञापन के टेंडर नहीं मिले। तमाम ठेकेदार तो नियम विरुद्ध विज्ञापन के टेंडर देने के विरोध में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक गए। मगर, साहब की मनमानी पर कहीं से भी रोक नहीं लगी। कहने को तो नगर निगम के टेंडरों की प्रक्रिया ऑनलाइन और पारदर्शी है। मगर, ऐसा है तो सिर्फ एक ही ठेकेदार को नगर निगम के विज्ञापन के टेंडर बीते आठ साल में कैसे मिलते गए। इस पर सवाल उठना लाजिमी है। एक समय था। जब नगर निगम से प्रति वर्ष 270 करोड़ के अल्प बजट में भी शहर में विकास कार्य दिखाई देते थे। मगर, अब नगर निगम का बजट 500 करोड़ से भी ऊपर चला गया। उस पर स्मार्ट सिटी का तीन हजार करोड़ से ज्यादा का बजट अलग से। मगर, शहर में इतनी बड़ी मात्रा में मिले बजट के बाद भी विकास कार्य कहीं दिखाई नहीं देते। उस पर से दावा यह है कि बदलता बरेली-चमकता बरेली। नगर निगम का ऐसा कोई काम नहीं कराया गया, जो बिना कमीशन लिए दिखाई दे। ऐसे में बरेली कहां चमक रहा है-और कहां दमक रहा है। यह प्रत्येक शहरवासी जानता है।
स्मार्ट सिटी, नगर निगम और Ncap के कामों में घपले दर घपले
केंद्र की स्मार्ट सिटी योजना का प्रारंभ 25 जून 2015 को किया था। मगर, बरेली चौथे राउंड में जनवरी 2018 में स्मार्ट सिटी योजना में शामिल हो पाया। स्मार्ट सिटी का प्रारंभिक बजट 940 करोड़ रुपए का था। बाद में यह बजट बढ़ता चला गया। मगर, स्मार्ट सिटी के बजट के नाम पर जिस तरह से नगर निगम के ठेकेदारों के बीच टेंडर हासिल करने में 45 प्रतिशत तक कमीशन बांटने का खेल खेला चला, जो अब भी जारी है। उस पर पूरा बरेली शर्मिंदा है। मगर,इतनी लूट मचने के बाद भी ज्यादातर जिम्मेदार इस लूट पर कोई भी टिप्पणी करने से बचते हैं तो उसकी वजह है अंदरखाने की डील। धन नेता को भी नगर निगम के निर्माण कार्यों में 45 प्रतिशत कमीशन के बंदरबांट पर गर्व है। सूत्रों के अनुसार साहब को किसी भी प्रोजेक्ट की कुल लागत का 15 प्रतिशत कमीशन तो टेंडर लेने वाले ठेकेदार को एडवांस में लेना होता है। उस पर भी ऑनलाइन व्यवस्था में एडवांस देने वाले ठेकेदार को टेंडर मिलने की गारंटी नहीं। मान लीजिए। किसी ठेकेदार ने 10 करोड़ के काम का टेंडर लेने के लिए 15 प्रतिशत एडवांस रकम दे दी। उसे ऑनलाइन टेंडर नहीं मिल पाया तो उस ठेकेदार की रकम वापस नहीं होती। ठेकेदार को नगर निगम में अगले टेंडर निकलने का इंतजार करके चुपचाप बैठना होता है। इस तरह से नगर निगम, स्मार्ट सिटी और Ncap के बजट के कामों की गुणवत्ता इतनी घटिया है कि इन मदों में बनी सड़कें, नालियां या अन्य निर्माण कार्य छह महीने भी नहीं टिकते। जैसे ही बरसात में अन्य वजहों से यह ध्वस्त होते हैं, वैसे ही उसके दोबारा टेंडर जारी हो जाते हैं। टेंडर पूरे काम के निकलते हैं, लेकिन उस जगह पर ठेकेदार सीमेंट की परत बनाकर पूरा पेमेंट ले लेता है। इस तरह के कामों के शहर में सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं।
अपने ही दल के विधायकों से दो-दो हाथ करने की तैयारी
सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यही धन नेता अब भाजपा से अलग होकर अपना नया संगठन बना चुके हैं। कहने के लिए तो इस संगठन को सेवा का नाम दिया गया है। मगर, हकीकत सबको पता है। राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि सिंगापुर की तरह स्मार्ट सिटी के नाम पर बरेली को बद से बदतर हालत में छोड़कर यह धन नेता कभी रक्षाबंधन पर 20 हजार बहनों से राखी बंधवाने तो कभी सीएम योगी और पीएम मोदी के कद से अपनी तुलना करते हुए उनकी तर्ज पर आयुष्मान कार्ड की नकल करकेअपना कार्ड जारी करके मुफ्त इलाज का ड्रामा करने में लगे हैं। इसका मकसद समाजसेवा वाली छवि चमकाकर किसी तरह कैंट या बिथरी से विधायक बनना है। सूत्रों का कहना है कि नेताजी ने पीएम मोदी के आयुष्मान कार्ड की तर्ज पर अपने निजी अस्पताल में गरीबों के मुफ्त इलाज की ब्यूह रचना इसलिए रची कि पहले से ठप अस्पताल समाजसेवा की आड़ में ही चल जाए। साहब के द्वारा गरीबों के लिए जारी गुलाबी कार्ड में यह लिखा है कि छह तरह के शुल्क मुफ्त हैं। सिर्फ दवाइयों और जांच की की फीस देनी है। मगर, जब मरीज यह कार्ड लेकर साहब के निजी अस्पताल में इलाज करवाने गए तो पता चला कि सबसे पहले उस मरीज से भर्ती शुल्क 1000 रुपए वसूला गया। उसके बाद बाकी सब शुल्क भी वसूले गए। मरीजों को जांच और दवाइयां के रेट पांच गुने अदा करने पड़े। राजनीतिक पंडितों ने बताया कि साहब की मुनाफा कमाने वाली समाजसेवा का मकसद आने वाले विधानसभा चुनाव में कैंट या बिथरी क्षेत्र से अपनी ही पार्टी के विधायकों से दो-दो हाथ करके चुनाव लड़ने की तैयारी से हैं। भले ही एमएलए का टिकट भाजपा से मिले या फिर इसके लिए दूसरे दल में जाना पड़े। साहब सिर्फ मौके की तलाश में हैं। भाजपा के एक विधायक से तो साहब की खुले मंच पर अप्रत्यक्ष रुप से तू-तू, मैं-मैं हो चुकी है।