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नगर निगम बरेली
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सीन एक,
वार्ड 17 न्यू कैलाशपुरम कॉलोनी हरुनगला में नगर निगम के ठेकेदार ने एक ही जगह दो गलियो के अलग अलग निर्माण में एक मे छः इंच सीसी रोड डाला। वहीं दूसरी तरफ चार इंच। ठेकेदार ने सीसी रोड की लंबाई चौड़ाई अपनी मर्जी से कम कर दी।
सीन दो,
बालजती मोहल्ले में ठेकेदार इम्तियाज ने नगर निगम से मोटे कमीशन पर टेंडर हासिल करके पुरानी सड़क को उखाड़े बिना उसी पर सीसी रोड डालकर खानापूर्ति करने में लगे हैं। आम नागरिक विरोध कर रहे हैं। लेकिन सुनने वाला कौन है।
सीन तीन
किला पुल से सिटी स्टेशन होते हुए चौपला तक नगर निगम के ठेकेदार ने छह महीने पहले सीसी रोड डाली थी। मगर, सड़क की गुणवत्ता इतनी अच्छी निकली कि तीन महीने में पूरी सड़क ध्वस्त। सड़क पर दो फिट के गड्ढे हैं। 45% कमीशन देने के बाद सड़क बनेगी तो ऐसी ही होगी।
वाईबीएन संवाददाता बरेली।
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आठ साल पहले बरेली को सिंगापुर की तर्ज पर स्मार्ट बनाने के दावे पूरी तरह से धराशाई हो चुके हैं। नगर निगम में नीचे से ऊपर तक व्याप्त घोर भ्रष्टाचार से जनता त्राहि त्राहि कर उठी है। साहब, प्रत्येक टेंडर में अपना एडवांस लेने के बाद संगठन, पार्षद और सत्ता के प्रभावशाली नेताओं को अटैची और लिफाफे बांटने में लगे हैं। वहीं, अधिकारी, इंजीनियर और ठेकेदार के मजबूत गठजोड़ से नगर निगम भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बन चुका है। आम पब्लिक की सुनने वाला फिलहाल कोई नहीं है। नगर निगम में जबसे कार्पोरेट संस्तुति हावी हुई है। तबसे घपले घोटाले और भ्रष्टाचार सारी सीमाएं पार कर गया है। माननीय के अति नजदीकी ठेकेदार की बनाई सड़के तीन महीने में ही उखड़ जाती हैं। नगर निगम के अधिकांश टेंडर इनके पास ही हैं। सूत्रों का कहना है कि जबसे माननीय सीट पर विराजमान हुए, तबसे शाहजहांपुर के तिलहर से आए एक ठेकेदार ने भाजपा में संगठन के कुछ नेताओं के साथ मिलकर नगर निगम के निर्माण कार्यों में अप्रत्यक्ष रूप से ठेके ले रखे हैं। उनमें एक पार्टनर राजीव ट्रेडर्स भी हैं। इनकी बनी ज्यादातर सड़कें छह महीने भी नहीं चलती। क्योंकि इनकी गुणवत्ता इतनी घटिया है कि एक्सपर्ट तो छोड़ो। आम नागरिक भी सड़क देखकर बता देगा कि उसमें पीडब्ल्यूडी के निर्धारित मानक से कितनी कम निर्माण सामग्री इस्तेमाल की गई है। ठेकेदारों का कहना है कि जब ऑनलाइन टेंडर लेने से पहले 12% एडवांस देंगे। फिर कुल 45% कमीशन देकर सड़क या नाली बनेगी तो उसकी गुणवत्ता कैसी होगी। खास बात यह है कि नगर निगम के अधिकांश ठेकेदार शहर में निर्माणाधीन तमाम सड़क, नाली और नालों की लंबाई चौड़ाई भी अपनी सुविधा के हिसाब से कम कर देते हैं। न उसको जेई देखते हैं, न ही एई। अधिशासी अभियंता और चीफ इंजीनियर भी डाकघर के सामने वाले प्राइवेट ऑफिस की कठपुतली बनकर पूरे शहर की लंका लगाने में लगे हैं। हालांकि इस मामले में नगर निगम के इंजीनियर कुछ भी बोलने से बचते हैं। उनका कहना है कि नगर निगम के प्रत्येक काम में राजनीति हावी है। इसमें वह काम की गुणवत्ता कैसे तय करसकते हैं।
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