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नगर निगम का प्रकाश विभाग
वाईबीएन संवाददाता बरेली।
दो साल पहले एक माननीय ने नगर निगम के चुनाव प्रचार में कहा था कि अपने पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने शहर में रिकॉर्ड 60 हजार लाइटें लगवा दीं। रात में पूरा शहर मुंबई के जुहू चौपाटी की तरह जगमग जगमग रहता है। शहर का कोई भी नागरिक नगर निगम की लाइटों की रोशनी में हाइवे पर कभी भी लांग ड्राइव पर जा सकता है। मगर, माननीय ने यह नहीं बताया कि जिस ठेकेदार ने नगर निगम में घटिया गुणवत्ता की लाइट सप्लाई की। उस ठेकेदार का दफ्तर उनके सरकारी कैंप ऑफिस में बरसों तक क्यों चला। अब भी नगर निगम को लाइट सप्लाई करने वाले ठेकेदार का दफ्तर मिशन कंपाउंड से चलता है। नगर निगम की तरफ से शहर में लगी कोई भी लाइट दो महीने से ज्यादा नहीं चलती। आखिरकार, माननीय और नगर निगम के बिजली ठेकेदार बीच ये रिश्ता क्या कहलाता है?
वर्ष 2017 से अब तक बीते आठ साल से नगर निगम में छोटी और बड़ी लाइट सप्लाई का काम ईईएसएल नामक फर्म करती है। इस फर्म को जब नगर निगम की लाइट सप्लाई का टेंडर मिला तो उसके ठेकेदार ने अपना ऑफिस माननीय केसरकारी कैंप ऑफिस के अंदर ही खोल दिया। कई बरसों तक बिजली ठेकेदार का दफ्तर माननीय के कैंप ऑफिस से संचालित होता रहा। जबकि नियमानुसार उसमें केवल माननीय ही बैठ सकते थे। जब नगर निगम बोर्ड की बैठक में विपक्ष के पार्षदों ने हंगामा किया तो ठेकेदार का ऑफिस रामपुर गार्डन की उस बिल्डिंग में खोल दिया गया, जिसमें आठसाल पहले नगर निगम के तत्कालीन मेयरों का कैंप कार्यालय चलता था। नियमानुसार बिजली ठेकेदार के प्राइवेट ऑफिस का नगर निगम के कैंप कार्यालय से चलना अपने आप में ये सवाल खड़े करता है कि आखिरकार नगर निगम के बिजली ठेकेदार और माननीय के बीच में ऐसा क्या रिश्ता है कि माननीय इस ठेकेदार को 24 घंटे अपनी नजरों के सामने रखना चाहते हैं। वर्तमान में बिजली ठेकेदार का दफ्तर मिशन कंपाउंड से चलता है। ये मिशन कंपाउंड भी माननीय के ही अधिकार क्षेत्र में है। कुल मिलाकर नगर निगम में बिजली सप्लाई करने वाले ठेकेदार पर माननीय की इतनी कृपा क्यों बनी हुई है। आखिर, दोनो के बीच में ये रिश्ता क्या कहलाता है?
शहर की ज्यादातर सड़कों पर पूरी रात घुप्प अंधेरा, दो महीने भी नहीं जलती नगर निगम की लाइटें
नगर निगम में बिजली सप्लाई करने वाले बड़े ठेकेदार का सिक्का इस कदर चलता है कि किसी की हिम्मत नहीं है कि उसके सामने कोई कुछ बोल दे। जबसे नगर निगम में ईईएसएल के ठेकेदार विपिन अग्रवाल की एंट्री हुई है, तबसे छोटे ठेकेदारों को प्रकाश विभाग से लाइट के टेंडर मिलने बंद हो गए। इसका नतीजा यह निकला कि नगर निगम की ज्यादातर लाइटें जलती ही नहीं। शहर के मुख्य मार्गों से लेकर गली, मोहल्ले और वार्डों में पूरी रात घुप्प अंधेरा छाया रहता है। महीने बीत जाते हैं। ठेकेदार के कर्मचारी खराब लाइटों की मरम्मत करते नहीं दिखते। नियमानुसार लाइट की आपूर्ति के बाद कम से कम पांच साल तक उसकी देखरेख का काम संबंधित ठेकेदार का ही रहता है। लेकिन, ठेकेदार माननीय का अति निकट है। इसलिए, वो सिर्फ पेमेंट उठाता है। बाकी, लाइट ठीक करते हैं नगर निगम के कर्मचारी।
बाजार में 1200 या 2400 की लाइट नगर निगम ने 10200 रुपए में खरीदी
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सूत्रों के मुताबिक नगर निगम की लाइट खरीद में मोटे कमीशन का खेल बीते आठ साल से चल रहा है। इसके चलते नगर निगम से सेटिंग वाले ठेकेदार को प्रकाश विभाग से लाइट खरीद और मरम्मत का टेंडर मिलता रहा। वो ठेकेदार पेटी पर उन छोटे ठेकेदारों से लाइट खरीद कराता है, जो कभी नगर निगम से खुद लाइट सप्लाई के टेंडर लेते थे। मगर, अब यही ठेकेदार पेटी पर काम करने को मजबूर हैं। लाइट खरीद में 70 से 80% तक कमीशन है। नगर निगम के सूत्रों का कहना है कि नगर निगम ने बीते आठ साल में घटिया गुणवत्ता की लोकल लाइटें ब्रांडेड कंपनियों का लेबल लगाकर सप्लाई करके मोटा कमीशन लिया। इसके परिणाम स्वरूप शहर के अंदर 80% लाइटें जलती ही नहीं हैं। स्मार्ट सिटी के नाम पर पूरा शहर अंधा सिटी बन चुका है।
वर्जन,
नगर निगम की लाइट सप्लाई और मरम्मत मेरी फर्म ईईएसएल करती है। मगर, मैं लाइट की गुणवत्ता, संख्या और मरम्मत के बारे में कुछ नहीं बता सकता। इस बारे में नगर निगम के अधिकारी ही बताएंगे।
विपिन अग्रवाल, मालिक, ईईएसएल फर्म, (नगर निगम को लाइट सप्लाई करने वाली)
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