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नताशा ने नरेश को सौंप दिए माता पिता.... जानिए पूरी कहानी

एसआरएमएस रिद्धिमा के सभागार में रविवार देर रात शाम पारिवारिक नाटक कलयुग की यशोधरा का मंचन हुआ। डा. रचना गुप्ता लिखित कहानी कलयुग की यशोधरा का नाट्य रूपांतरण डा. प्रभाकर गुप्ता और अश्वनी कुमार ने एवं निर्देशन विनायक कुमार श्रीवास्तव ने किया।

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Sudhakar Shukla
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बरेली, वाईबीएन नेटवर्क। एसआरएमएस रिद्धिमा के सभागार में रविवार देर रात शाम पारिवारिक नाटक कलयुग की यशोधरा का मंचन हुआ। डा. रचना गुप्ता लिखित कहानी कलयुग की यशोधरा का नाट्य रूपांतरण डा. प्रभाकर गुप्ता और अश्वनी कुमार ने एवं निर्देशन विनायक कुमार श्रीवास्तव ने किया।

रिद्धिमा में हुआ पारिवारिक नाटक कलयुग की यशोधरा का मंचन

यशोधरा और सिद्धार्थ की कहानी से प्रेरित इस नाटक की मुख्य पात्र नताशा है। उसके परिवार में पति नरेश, बच्चे प्रखर, दक्षिता और नताशा के सास ससुर हैं। एक दिन नरेश घर छोड़ कर चला जाता है। वह अपनी स्टेनो के साथ रहने लगता है। नरेश के जाने बात नताशा अपने सास और ससुर को बताती है। सास ससुर नताशा को ही दोषी बताकर उसी को जिम्मेदार ठहराते हैं। नरेश के जाने के बाद नताशा परेशान है। उस पर अब बच्चों और सास ससुर को पालने की जिम्मेदारी हो। नताशा की सहेली स्नेहा उसे हिम्मत देती है और सिलाई करने के प्रेरित करती है। स्नेहा के पास टेलरिंग का डिप्लोमा भी है। इसी तरह संघर्ष करते हुए बीस साल निकल जाते है। नताशा बेटी दक्षिता की शादी तय करती है। घर में वैवाहिक मंगल गीत चल रहे है, तभी नरेश वहां घूमते हुए अचानक आ जाता है। नताशा ऊसे देख कर स्तब्ध हो जाती है, लेकिन माता पिता नरेश को देख कर खुश होते है। 

स्नेहा ने प्रखर से कराया कन्यादान का आग्रह

प्रखर और दक्षिता भी अपने पिता को नहीं पहचान पाते। नरेश की मां नताशा को कहती है कि वो कितने शुभ दिन यहां आया है। नरेश का पिता नरेश से कन्या दान की कहता है, लेकिन दक्षिता पिता नरेश से कन्यादान नहीं करना चाहती। नताशा की सहेली स्नेहा प्रखर से कन्यादान को कहती है। नताशा को यह सुझाव ठीक लगता है। तब नताशा अपने पति को वापस आने का कारण पूछती है पर नरेश के पास कोई उत्तर नहीं है। नरेश वापस जाने लगता है नताशा उसे रोक कर कहती है कि जैसे यशोधरा के दरवाजे से सिद्धार्थ खाली हाथ वापस नहीं गया था, उसी तरह तुम भी खाली हाथ वापस नहीं जाओगे और नरेश के मां पिता को नरेश को सौंप देती है। यहीं पर नाटक समाप्त हो जाता है। 

नाटक में सोनालिका सक्सेना (नताशा), मनोज शर्मा (नरेश), शोभा गंगवार (नरेश की मां), राज किशोर पाठक (नरेश के पिता), शाहजीन खान (दक्षिता), गौरव कार्की (प्रखर), दिव्यांश (छोटा प्रखर), विषा गंगवार (स्नेहा) ने अपनी भूमिकाओं को संजीदगी से निभाया। नाटक में सूत्रधार अनमोल मिश्रा रहे। संगीत का संचालन हर्ष, प्रकाश संचालन जसवंत और साउंड का संचालन हर्ष गौड़़ ने किया। इस अवसर पर एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक व चेयरमैन देव मूर्ति , आशा मूर्ति, ऋचा मूर्ति, सुभाष मेहरा, डा. प्रभाकर गुप्ता, डा. अनुज कुमार, डा. शैलेश सक्सेना मौजूद थे।

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