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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
नवाब मोहम्मद हुसैन खान की कोठी, इमामबाड़ा और 17 दुकानें वक्फ संपत्ति नहीं हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की एकल पीठ ने तथ्यों को छिपाकर निगरानी याचिका दाखिल करने पर यूपी सिया वक्फ बोर्ड पर 15 हजार रुपये जुर्माना लगाया है। जस्टिस जसप्रीत सिंह की एकल बेंच ने वक्फ डीड को शून्य घोषित करते हुए नवाब साहब की वंशज हुमा जैदी के पक्ष में यह फैसला सुनाया है।
शहर में किला सब्जी मंडी के पास नवाह साहब की करोडों की संपत्ति है। 1934 में नवाब मोहम्मद हुसैन खान ने अपनी कोठी से सटी 17 दुकानों को वक्फ कर दिया था। कोठी के अंदर एक कमरा भी था। इसका इस्तेमाल मुहर्रम के दौरान मजलिस के लिए किया जाता था। इसको इमामबाड़ा कहा जाता है। नवाब साहब की मौत के बाद उनकी बेटी ने सिविल जज बरेली की अदालत में वक्फ डीड को चुनौती दी थी। उनका कहना था कि वक्फ डीड अवैध है। यूपी शिया वक्फ बोर्ड ने इस मामले में विरोध किया, लेकिन हार गया। 1934 के वक्फ डीड को अवैध और शून्य घोषित कर दिया गया। 1962 में यूपी शिया वक्फ बोर्ड ने अपने रिकॉर्ड से उक्त वक्फ (I-1115) को हटा दिया। कोठी, इमामबाड़ा और कोठी के बाहर की 17 दुकानें नवाब के वंशजों की निजी संपत्ति बनी रहीं। इसके बाद कभी कोई मुत्तवल्ली भी नियुक्त नहीं किया गया। 2015 में शिया वक्फ बोर्ड ने 17 दुकानों को फिर से वक्फ घोषित कर दिया और मुतवल्ली नियुक्त कर दिया।
नवाब मोहम्मद हुसैन खान के पोते (नवाब तहव्वुर अली खान) ने 2015 के आदेश को यूपी वक्फ ट्रिब्यूनल, लखनऊ में चुनौती दी। अप्रैल 2024 में वक्फ ट्रिब्यूनल, लखनऊ ने मामले को स्वीकार कर लिया और वक्फ बोर्ड के 2015 के आदेश को रद्द कर दिया। इसके बाद शिया वक्फ बोर्ड ने एक नया मुद्दा उठाया और नवाब परिवार की कोठी व निजी इमामबाड़े को वक्फ संपत्ति होने का दावा किया। जून 2024 में डीएम बरेली/अतिरिक्त वक्फ आयुक्त को इस संबंध में लिखा गया। अतिरिक्त नगर मजिस्ट्रेट/सहायक वक्फ आयुक्त ने नवाब परिवार की एकमात्र वारिस हुमा जैदी को उक्त कोठी और इमामबाड़े में निर्माण या विध्वंस न करने का निर्देश दिया। हुमा जैदी ने बोर्ड और एसीएम के उन आदेशों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी। जनवरी में 2025 में हाईकोर्ट ने आदेशों पर रोक लगा दी। शिया वक्फ बोर्ड ने इस आदेश को छुपाया और उन्होंने वक्फ ट्रिब्यूनल, लखनऊ के अप्रैल 2024 के फैसले के खिलाफ फरवरी, 2025 में उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में एक सिविल रिवीजन याचिका दायर कर दी। झूठा हलफनामा दायर किया और कहा कि इमामबाड़ा एक वक्फ संपत्ति है। हुमा जैदी ने विस्तृत जवाबी हलफनामा दायर किया दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हुमा जैदी के पक्ष में आदेश दिया। कोर्ट ने फैसला में कहा है कि कोठी और इमामबाड़ा कभी भी वक्फ संपत्ति नहीं थी। कोर्ट ने यूपी शिया वक्फ बोर्ड पर तथ्यों को छिपाकर निगरानी याचिका दाखिल करने के लिए जुर्माना भी लगाया है।
मुतवल्ली सैय्यद जमीर रजा का कहना है कि नवाब साहब की दो पत्नियां थीं। पहली पत्नी हुसैनी बेगम को उन्होंने तलाब दे दिया था। दूसरी पत्नी शबदरी बेगम के कोई संतान नहीं थी। पहली पत्नी से उनको अनबरी बेगम नाम की बेटी थी। अनबरी बेगम के दो बेटे तहब्बर अली और सफदर अली थे। हुमा जैदी तहब्बर अली की बेटी हैं। सफदर अली अपनी संपत्ति बेच चुके हैं। 1936 में नबाव साहब की मौत के बाद पहली पत्नी की संतानों ने वक्फ डीड को चुनौती दी थी। जमीर रजा ने बताया कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। वक्फ संपत्ति के वह वैध मुतवल्ली हैं।