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एसआरएमएस रिद्धिमा में गुरुवार को विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर 'थिएटर: कल, आज और कल' विषय पर एक विचारगोष्ठी आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में बरेली और आसपास के क्षेत्रों से जुड़े ख्याति प्राप्त रंगकर्मियों ने अपने विचार साझा किए। चर्चा के दौरान थिएटर को मिल रही चुनौतियों, संसाधनों की कमी, और दर्शकों की घटती रुचि जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने थिएटर को पुनर्जीवित करने के लिए सामूहिक प्रयासों और समयानुसार परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया।
थिएटर के उत्थान के लिए रंगकर्मियों को स्वयं आना होगा आगे
रंगकर्मियों ने इस बात पर सहमति जताई कि थिएटर को दीर्घकालिक रूप से जीवंत बनाए रखने के लिए सरकारी या सामाजिक सहायता पर्याप्त नहीं होगी। थिएटरकर्मियों को स्वयं इसमें सुधार लाने और बदलते समय के अनुसार अनुकूलन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि थिएटर को चमकाने के लिए खुद मेहनत और त्याग करना ही सबसे प्रभावी उपाय है, क्योंकि बाहरी सहायता केवल अस्थायी राहत दे सकती है।
नामचीन रंगकर्मियों की सहभागिता
इस परिचर्चा में कई जाने-माने रंगकर्मियों ने हिस्सा लिया। जिनमें दिल्ली के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक अमर साह, शाहजहांपुर के कठपुतली कलाकार एवं निर्देशक कप्तान सिंह कर्णधार, अनुभवी रंगकर्मी राजेंद्र घिल्डियाल, फिल्म अभिनेत्री शुभा भट्ट भसीन, बहुआयामी थिएटर कलाकार गुडविन मसीह, टीवी व थिएटर अभिनेत्री नीलम वर्मा और नाट्य निर्देशक विनायक कुमार श्रीवास्तव शामिल थे।
थिएटर को समयानुसार बदलने की जरूरत
परिचर्चा के दौरान राजेंद्र घिल्डियाल ने वर्तमान समय में थिएटर की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पहले थिएटर ही मनोरंजन का मुख्य साधन था। अब विभिन्न डिजिटल मंचों के कारण दर्शकों की रुचि थिएटर से कम हो गई है। उन्होंने कहा कि थिएटरकर्मियों को आज के दौर की जरूरतों के हिसाब से अपने नाटकों और प्रस्तुतियों में बदलाव लाना होगा।
नीलम वर्मा ने थिएटर में आर्थिक तंगी की समस्या को स्वीकारते हुए सुझाव दिया कि इसे व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी विकसित किया जाना चाहिए। शुभा भट्ट भसीन ने थिएटर को समाज के विभिन्न वर्गों से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया।
बच्चों को जोड़ने से बढ़ेगी दर्शकों की संख्या
गुडविन मसीह ने थिएटर को पुनर्जीवित करने के लिए बच्चों को इसमें शामिल करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि यदि बच्चों को थिएटर से जोड़ा जाए, तो उनके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य भी थिएटर में रुचि लेने लगेंगे। जिससे दर्शकों की संख्या में वृद्धि होगी। कप्तान सिंह कर्णधार ने थिएटर को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया, जिससे थिएटर की जड़ों को और मजबूती मिल सके।
थिएटर को खुद दर्शकों तक पहुंचाना होगा
कप्तान सिंह कर्णधार ने थिएटर की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए नई स्क्रिप्ट और प्रस्तुति शैली को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि थिएटरकर्मियों को अब दर्शकों की प्रतीक्षा करने के बजाय खुद उनके पास जाकर अपनी प्रस्तुतियों को मंचित करना होगा। थिएटर को नयापन देने के लिए पारंपरिक विषयों से हटकर नई कहानियों को अपनाना होगा और नाटकों की अवधि को भी दर्शकों की सुविधा के अनुसार कम करना होगा।
भाषा की नहीं, भावों की होती है अहमियत
अमर साह ने रंगमंच की भाषा और उसके भविष्य पर चर्चा करते हुए कहा कि थिएटर मुख्य रूप से भावनाओं और रसों का संप्रेषण करने का माध्यम है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भाषा थिएटर की सबसे बड़ी बाधा नहीं है। बल्कि इसका आत्मिक संप्रेषण ही इसकी सच्ची ताकत है। उन्होंने थिएटर को अपनी कमियों को दूर करने और स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने का सुझाव दिया।
कार्यक्रम का संचालन और विशिष्ट अतिथि
इस परिचर्चा का संचालन सौरभ गुप्ता ने किया। इस अवसर पर एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक एवं चेयरमैन देव मूर्ति, रंगमंच प्रेमी, और शहर के अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित रहे। थिएटरकर्मियों की इस सार्थक चर्चा ने थिएटर के भविष्य और उसकी संभावनाओं पर नए विचार प्रस्तुत किए, जिससे यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में थिएटर को और अधिक सशक्त बनाने के लिए ठोस प्रयास किए जाएंगे।