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एक दिन हमको डांट पड़ी घरवाली से... आई लव यू बोल दिया था साली से...

एसआरएमएस रिद्धिमा में गुरुवार (17 जुलाई 2025) शाम “साहित्य सरिता” के अंतर्गत द्वितीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। शाहजहांपुर के उमेश शाक्य ने श्रोताओं पर हास्य रंग बरसाया।

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Sudhakar Shukla
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

एसआरएमएस रिद्धिमा में गुरुवार (17 जुलाई 2025) शाम “साहित्य सरिता” के अंतर्गत द्वितीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस हिंदी काव्य संध्या में लखनऊ के कवि दिव्यांश रावत, शाहजहांपुर के उमेश शाक्य, बदायूं के अखिलेश ठाकुर, बरेली के डा. कमलकांत तिवारी, अंकित तुलसी, अंशु गुप्ता और स्नेह सिंह ने आध्यात्म, प्रेम, सामाजिक सद्भाव, भ्रष्टाचार और हास्य-व्यंग्य को केंद्रित कर कविता पाठ किया। काव्य संध्या का आरंभ बरेली के अंकित तुलसी ने किया। उन्होंने अपनी कविता मां जगदम्बा को समर्पित की और उनका शब्द चित्र प्रस्तुत किया। लखनऊ के कवि दिव्यांश रावत ने अपने हैं सब पराया कोई नहीं, पर मेरे दुख में आया कोई नहीं, जब खड़ा था उठाते थे सब, जब गिरा तो उठाता कोई नहीं सुनाया। बरेली की युवा कवियत्री स्नेह सिंह ने अपनी कविता में भगवान शंकर का वर्णन किया। कहा- सावन की ये उमंग, भस्म से जो खेले रंग, ऐसा रूप मनमोहक विकराल है। 

रिद्धिमा में नवोदित कवियों के लिए “साहित्य सरिता” का आयोजन 


शिक्षा का मोल हमने ही आज बेच खाया, सत्ता में बैठा हर शख्स विद्वान हैं मुक्तक सुनाया। फिर भ्रष्टाचार और देशप्रेम को अपनी कविता में उठाया। कहा-  बीती कुछ वो बात जुबानी कहती हूं, लिख न सकी वो बात पुरानी कहती हूं। स्नेह ने मां की ममता और उसके पराक्रम का भी अपनी कविता में प्रस्तुत किया। शाहजहांपुर के उमेश शाक्य ने श्रोताओं पर हास्य रंग बरसाया।

उन्होंने सुनाया- होते इतने प्रवीण गंजे यहां दवाई ढूंढ़ लेते हैं, बूढ़े भी यहां अपने लिए लुगाई ढूंढ लेते हैं। एक दिन हमको डांट पड़ी घरवाली से, आई लव यू बोल दिया था साली को। बरेली की अंशु गुप्ता ने अपनी कविता में मां और पिता को समर्पित की। कहा- अपने घर की छत बन रही हूं, मैं कुछ कुछ मां जैसी बन रही हूं। मैं ढूंढती हूं वर्तमान में अपने पुराने पिता को, मैं रह गई वहीं कंधे झुक गए पापा के। बदायूं के अखिलेश ठाकुर ने महिलाओं को शक्ति का रूप बताया। नारियों के अस्मिता पर आरियां चलाने वालों के खिलाफ खड़े होने का आह्वान किया। उन्होंने जग में अगर औरत नहीं होती, ये वीरान हो गया होता और वक्त पर गर खिजां नहीं आती गुल को अभिमान हो गया होता शेर भी पढ़े। 

अंत में मंच को बरेली के डा. कमलकांत तिवारी ने संभाला। उन्होंने अपनी वीर रस की कविताओं से श्रोताओं की नसों में दौड़ रहे खून में उबाल लाने का काम किया। उन्होंने सुनाया- मुफलिसी दौर निकलने का दौर आता है, हमको तकदीर बदलने का हुनर आता है। वतनपरस्तों को जो भाए वहीं तराना लिखती है, कलम हमारी देशभक्ति का तराना लिखती है। मां भारती के शीश को कटने नहीं देंगे, सौगंध खाओ देश कौन बंटने नहीं देंगे। कार्यक्रम का संचालन अश्वनी चौहान ने किया। इस मौके पर एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देवमूर्ति, आशा मूर्ति, आदित्य मूर्ति, डा.प्रभाकर गुप्ता, डा.अनुज कुमार, डा.शैलेश सक्सेना, डा.रीटा शर्मा, कवि रोहित राकेश मौजूद थे।

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