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प्राइवेट अस्पतालों ने चलाया हाईवे पर एंबूलेंस का खेल , जानिए कैसे

कर्मचारी नगर के राधिका सुपर स्पेशिलटी अस्पताल की एक एंबूलेंस फतेहगंज पश्चिमी हाइवे से एक्सीडेंट में घायल मरीज को बिना उसकी मर्जी के अपने अस्पताल ले आई।

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Sudhakar Shukla
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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केस एक: कर्मचारी नगर के राधिका सुपर स्पेशिलटी अस्पताल की एक एंबूलेंस फतेहगंज पश्चिमी हाइवे से एक्सीडेंट में घायल मरीज
को बिना उसकी मर्जी के अपने अस्पताल ले आई। मरीज जिला अस्पताल जाना चाह रहा था। मरीज के परिवार वालों को जब यह पता 
चला तो वह अस्पताल पहुंचे। तब तक मरीज का वहां इलाज शुरू कर दिया गया। परिवार वालों ने जब अस्पताल पहुंचकर आपत्ति जताई 
तो अस्पताल के डॉक्टर ने 50 हजार रुपए का बिल पकड़ा दिया। परिवार वालों ने हंगामा काटा तो अस्पताल के स्टाफ ने बाहर निकलकर उनसे मारीपीट की। अस्पताल में भी तोड़फोड़ हुई। अस्पताल संचालक ने दबंगई दिखाते हुए मरीज के परिवार वालों पर इज्जतनगर थाने में एफआईआर दर्ज करा दी। अभी तक यह मामला विवेचना में चल रहा है। 

केस दो:

सिटी स्टेशन के सामने एक प्राइवेट अस्पताल के संचालक ने अपनी 11 एंबूलेंस बदायूं और शाहजहांपुर रोड पर लगा दीं। उसका चालक उस मार्ग पर होने वाले एक्सीडेंट वाले घायल मरीजों को जबरन एंबूलेंस में डालकर प्राइवेट अस्पताल ले जाकर भर्ती कर देता है। फिर मजबूरी में मरीज को महंगा इलाज कराना पड़ता है। कुछ महीने पहले एक बदायूं के मरीज का एंबूलेंस के चालक और अस्प्ताल के स्टाफ से इस बात को लेकर झगड़ा भी हो गया था। दोनों के बीच कई घंटे विवाद चला। फिर एक बड़े नेता ने फोन करके यह मामला किसी तरह से सुलझवाया। 

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केस तीन

मॉडल टाउन रोड पर भाजपा के नेता कम डॉक्टर जो कि हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं, उनकी एंबूलेंस पर भी बड़ा बाईपास से लेकर शाहजहांपुर रोड , नैनीताल रोड और दिल्ली हाईवे पर खड़ी रहती हैं। जैसे ही गांव से कोई मरीज आता दिखा तो उसे एंबूलेंस में डालकर अस्पताल ले आते हैं। फिर इलाज के साथ ही उस मरीज का बिल सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता जाता है। जब तक मरीज के तीमारदार अस्पताल पहुंचते हैं तब तक उसका महंगा इलाज डॉक्टर शुरू कर देते हैं। कई बार डिलीवरी केस के मरीजों को भी प्राइवेट अस्पतालों 
की एंबूलेंस अपने अस्पताल में ले जाकर महिलाओं के ऑपरेशन करा देते हैं। फिर उनको लाखों रुपये का बिल पकड़ा दिया जाता है। मरीज जब यह भुगतान देने में आनाकानी करता है तो डॉक्टर सत्ताधारी दल से जुड़े होने और डॉक्टरों की यूनियन होने की धौंस दिखाकर मरीज पर एफआईआर दर्ज कराने की धमकी देते हैं। 
  
बरेली शहर से जुड़े ग्रामीण इलाकों और हाईवे पर प्राइवेट नर्सिंग होम ने एंबूलेंस का खेल चला रखा है। प्राइवेट अस्पतालों की 100 से ज्यादा एंबूलेंस नैनीताल रोड हाईवे, पीलीभीत-सितारगंज हाईवे, दिल्ली-रामपुर हाईवे, शाहजहांपुर-लखनऊ हाईवे और बदायूं-आगरा हाईवे पर सुबह चार बजे से जाकर खड़ी हो जाती हैं। यह पूरे दिन और रात 24 घंटे खड़ी रहती हैं। जैसे ही हाईवे पर कार या बाइक से 
किसी का एक्सीडेंट हुआ तो बिना मरीज से पूछे एंबूलेंस चालक घायल को जबरदस्ती एंबूलेंस में डालकर सीधे उसी अस्पताल में पहुंचा देता है, जिस अस्पताल की एंबूलेंस है। अस्पताल का स्टाफ घायल का तुरंत महंगा इलाज शुरू कर देता है। जब तक उस घायल मरीज के परिवार वाले अस्पताल पहुंचते हैं तो मजबूरी में उनको उसी अस्पताल में मरीज का महंगा इलाज कराना पड़ता है। भले ही उनकी आर्थिक स्थिति प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने की हो या फिर नहीं। अगर मरीज के पास इलाज कराने के लिए पैसे नहीं हैं और वह जिला अस्पताल ले जाने की जिद करने लगे तो अस्पताल का स्टाफ और डॉक्टर उसे  हाथापाई पर उतर आते हैं।

यह एक दो अस्पताल की बात नहीं है। मिनी बाईपास से कर्मचारी नगर रोड के एक दर्जन से अधिक प्राइवेट अस्पतालों के अलावा सिटी स्टेशन के सामने एक प्राइवेट अस्पताल के अलावा गांधी उद्यान से चौकी चौराहे के बीच के चार और मॉडल टाउन रोड के आधा दर्जन प्राइवेट अस्पताल इस खेल में शामिल हैं। इन निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने अपनी एंबूलेंस शहर के चारो कोनों पर हाईवे के निकट खड़ी कर रखी हैं। एंबूलेंस के चालक उस रोड से गुजरने वाले मरीजों का सबसे पहले आयुष्मान कार्ड पता करते हैं। अगर किसी मरीज का आयुष्मान कार्ड बना मिल गया।

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फिर तो समझो हो गए उस अस्पताल के वारे-न्यारे। हाईवे पर कार या बाइक, साइकिल या पैदल। जैसे ही मरीज वाहन की चोट-चपेट में घायल हुआ तो एंबूलेंस फौरन उसके पास हितैषी बनकर पहुंचती है। उसे डालकर अस्पताल ले जाती है और तुरंत मरीज का इलाज शुरू हो जाता है। मगर, मरीज की जेब कितनी कटनी है, यह उसको बाद में पता चलता है। अगर, इसी बीच किसी मरीज के तीमारदार ने 
प्राइवेट अस्पताल के मनमाने इलाज पर आपत्ति जताई तो अस्पताल के डॉक्टर अपने स्टाफ के साथ न केवल उसके साथ मारपीट करते हैं बल्कि आईएमए की यूनियन बनाकर उस मरीज के खिलाफ कोतवाली और थाने तक लामबंदी भी करते हैं। 

गर्भवती महिलाएं खास निशाने पर 

डिलीवरी कराने वाली गर्भवती महिलाएं तो प्राइवेट नर्सिंग होम के खास निशाने पर हैं। अस्पतालों ने एंबूलेंस भेजकर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं और बुजुर्गों को जबरदस्ती लाकर इलाज कराने की मुहिम चला रखी है। डोहरा रोड पर दो बड़े अस्पताल तो आयुष्मान कार्ड से इलाज कराने के खेल में करोड़ों में खेल रहे हैं। हालांकि इन अस्पतालों में ज्यादातर मरीज भर्ती होने के बाद अपने प्राण ही त्याग देते हैं। बमुशिकल 10 प्रतिशत मरीजों की ही जान बच पाती है।

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