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दुधवा टाइगर रिजर्व के कतर्नियाघाट क्षेत्र में ही नहीं बल्कि किशनपुर सेंच्यूरी क्षेत्र में भी जंगल के अंदर चलतुआ गांव बसा हुआ है। यह गांव पूरनपुर तहसील में है। गांव के लोगों को भी जंगल के बाहर बसाने की कोशिश लंबे समय से की जा रही है। वन विभाग और राजस्व विभाग की टीम सर्वे भी कर चुकी है। सर्वे में गांव के लोगों को गांव के बाहर बसने को दो विकल्प दिए गए। मगर अब तक जंगल के अंदर बसे गांव के लोगों को जंगल के बाहर नहीं बसाया जा सका।
तहसील क्षेत्र के थाना सेहरामऊ उत्तरी क्षेत्र का चलतुआ गांव दुधवा टाइगर रिजर्व की किशनपुर सेंच्युरी में जंंगल के बीच में बसा है। गांव में पहुंचने को चार किलोमीटर जंगल में दूरी तय करनी पड़ती है। आवागमन को पगडंडी बनी है। गांव में प्राइमरी स्कूल है। मगर मूलभूत सुविधाओं में बिजली, सड़कें, मोबाइल नेटवर्क आदि कुछ भी नहीं है। चारों ओर जंगल से घिरे गांव में अक्सर जंगली जानवरों का भय बना रहता है। तीन साल पहले खेत की रखवाली कर रहे बुजुर्ग को हाथी ने पटककर मार डाला था। करीब साढ़े पांच साल पहले मानव-वन्य जीव संघर्ष में लोगों ने बाघ को लाठियों से पीटकर मौत के घाट उतार दिया था। करीब एक साल महीने पहले गांव पहुंचे तत्तकालीन डीएम संजय सिंह को लोगों ने समस्याएं बताई थी। डीएम ने ग्रामीणों की समस्या से शासन को अवगत कराया। डीएम पीलीभीत ने ग्रामीणों की मंशा जानने को तीन सदस्यीय टीम गठित की थी टीम में एसडीएम पूरनपुर,डीएफओ,एसडीओ वन को शामिल किया गया था। गांव के लोगों को जंगल के बाहर बसाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। इसके लिए गांव छोड़ने वालों को 15 लाख रुपये या दो हेक्टेयर जमीन देने का का विकल्प दिया गया। 18 दिसंबर को गांव में एसडीएम अजीत प्रताप सिंह की मौजूदगी में बैठक हुई। बैठक में लोगों को जंगल के बाहर बसाने की योजना के तहत विकल्पों की जानकारी देकर उनकी राय जानी गई। बैठक में अधिकांश लोगों ने विकल्प के रूप में मिलजुली सहमति दी थी। गांव के अधिकांश लोगों का कहना है कि वे लोग खुद गांव में नहीं रहना चाहते। इसको लेकर कई बार अफसरों को समस्याओं की जानकारी दे चुुके है। मगर गांव में उनके घर, गांव के समीप खेती भी है। सरकार खेती के बदले खेती और रहने को जमीन दें। बैठक के बाद गांव में राजस्व, वन और स्वास्थ्य विभाग की टीम ने सर्वे शुरू किया था। सर्वे में कितने परिवार और घर गांव में है। गांव के लोग गांव छोड़ने पर कौन सा विकल्प चुनना चाहते है। जानकारी कर टीमों को अपनी रिपोर्ट दी। किशनपुर के रेंजर मोहम्मद अयूब हसन ने बताया कि सर्वे में गांव में 308 परिवारों के रहना पाया गया था। इसमें से छह परिवारों ने विकल्प के रूप में 15 लाख रुपये अन्य 302 परिवारों ने जमीन लेने पर सहमति दी। साथ ही दो या तीन स्थानों पर संयुक्त रूप से बसने को कहा। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट विभागीय अफसरों और एसडीएम को भेज दी गई थी।
चतलुआ गांव में दशकों पहले 52 लोगों को जमीन के पट्टा देकर बसाया गया था। उस समय वन्य जीवों की संख्या जंगल में कम थी। वन्य जीवों की संख्या बढ़ने पर वन्य जीव अक्सर गांव के आबादी में अब आ रहे है। फसलों की रखवाली करने में किसानों को रातों को जागना पड़ता है। वन्य जीवों के हमला से लोग दहशत में रहते है। एसडीएम अजीत प्रताप सिंह ने बताया कि सर्वे रिपोर्ट वन विभाग के अफसरों को भेज दी गई थी। गांव के लोगों की विकल्प चुनने को लेकर फिर शीघ्र ही बैठक कराई जाएगी। ग्रामीणों की राय जानने के बाद फिर रिपोर्ट अफसरों को भेजी जाएगी। उच्च अफसरों के निर्देश मिलने पर अगली कार्रवाई होगी