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साहित्य सरिता में बही कविता की रसधार
रिद्धिमा में नवोदित कवियों के लिए “साहित्य सरिता”
वाईबीएन संवाददाता
बरेली। एसआरएमएस रिद्धिमा में रविवार देर शाम “साहित्य सरिता” के अंतर्गत तृतीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें कविता की रसधार बही। श्रोता वीर, श्रृंगार, हास्य, करुण और हास्य व्यंग्य की रचनाओं में गोते लगाते रहे।
जितना समेटना चाहोगे, उतनी बिखरती नजर आऊंगी...
बहेड़ी (बरेली) की कवियत्री डा. लवी सिंह, शाहबाद (हरदोई) के करुणेश दीक्षित, बरेली के कमल सक्सेना, बरेली, बदायूं के उज्ज्वल वशिष्ठ, बदायूं की सरिता सिंह और बदायूं के ही पवन शंखधार ने अपनी रचनाओं के साहित्य प्रेमियों को वाहवाही हासिल की। साहित्य सरिता का आरंभ लवी सिंह ने किया। उन्होंने सुनाया कि
'यूं तो खुली किताब हूं मैं, पर तुम पढ़ न पाओगे, जितना समेटना चाहोगे, उतनी बिखरती नजर आऊंगी' को सुना कर किया। करुणेश दीक्षित ने 'बहुत बेहोश होता हूं मैं जब बेहोश होता हूं, तुम्हीं से बात करता हूं मैं जब खामोश होता हूं' सुना कर प्रेमियों की भावनाओं को अपने शब्द दिए। गीतकार कमल सक्सेना ने 'यूं तो मैंने कई सिकंदर देखे हैं, लेकिन वक्त पड़ा तो अंदर देखे हैं, हूं तो गांव किनारे का दरिया लेकिन, तेरे जैसे कई समंदर देखें हैं, सुनाया।
सारी बातें बताने की नहीं होती.....
उज्ज्वल वशिष्ठ ने अपनी कविता खुशबुएं मान छुपाने की नहीं होती हैं, सारी बातें भी बताने की नहीं होती, दूर से देखकर आंखों को सुकूं मिलता है, तितलियां हाथ लगाने की नहीं होती हैं' को श्रोताओं के सम्मुख रखा। सरिता सिंह ने अपने गीत 'प्रेम का जल तरल नहीं होता, हर नदी में कमल नहीं होता, पीने पड़ते हैं प्यास में आंसू, क्योंकि जीना सरल नहीं होता' के जरिए प्रेमियों के हृदय को टटोला। पवन शंखधर ने अपनी रचना 'पतझड़ या मधुमास नहीं हूं, मैं कोई अहसास नहीं हूं, मेरा चिंतन रजनीगंधा, परिचय का मोहताज नहीं हूं' को सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटोरीं। कार्यक्रम का संचालन अश्वनी चौहान ने किया। इस मौके पर एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देव मूर्ति जी, आशा मूर्ति जी, डा.प्रभाकर गुप्ता, डा.अनुज कुमार, डा.शैलेश सक्सेना और शहर के गणमान्य लोग मौजूद थे।