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समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह
बाईवीएन संवाददाता बरेली।
समाजवादी पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के चयन को अंतिम रुप देना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में कुछ महीने पहले प्रत्येक विधानसभा में चुनाव प्रभारी बनाकर टिकट के दावेदारों की रिपोर्ट मंगवाई गई थी। सपा ने पिछली बार शहर और कैंट दोनों सीटों पर वैश्य समुदाय से अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। ये दोनों ही प्रत्याशी भाजपा से बड़े अंतर से हारकर ढेर हो गए थे। पिछले चुनाव परिणामों को देखते हुए सपा डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में शहर की सीट पर वैश्य बिरादरी का टिकट काट सकती है। इस हिसाब से पुराने प्रत्याशी का टिकट भी खतरे में पड़ सकता है।
2022 में बड़े अंदर से चुनाव हारे थे सपा के राजेश अग्रवाल
शहर की विधानसभा सीट जीतना सपा के लिए हमेशा से ही एक चुनौती रहा है। पार्टी ने पहले भी शहर सीट जीतने के लिए अलग-अलग जातियों के प्रत्याशी उतारकर तमाम प्रयोग किए। मगर, पार्टी को अब तक शहर विधानसभा सीट पर जीत नसीब नहीं हुई। वर्ष 2022 में सपा ने शहर और कैंट दोनों सीटों पर वैश्य समुदाय से अपने प्रत्याशी उतारे थे। ये दोनों प्रत्याशी सपा का मूल वोट तो ले गए। मगर, दोनों को अपनी बिरादरी का वोट नहीं ले पाए। वैश्य समुदाय का वोट भाजपा के खाते में चला गया। हालांकि कैंट सीट पर भाजपा के प्रत्याशी वैश्य समुदाय से थे। सपा और भाजपा दोनों ही दलों ने वैश्य समुदाय से प्रत्याशी उतारे तो वैश्य समुदाय ने अपना निर्णय भाजपा को पक्ष में सुनाया। भाजपा के संजीव अग्रवाल ने बाजी मार ली और विधानसभा के लिए चुन लिए गए। मगर, शहर सीट पर भाजपा से गैर वैश्य यानी कायस्थ समुदाय से प्रत्याशी होने के बाद भी वैश्य समुदाय का वोट सपा के राजेश अग्रवाल को नहीं मिला। नतीजा यह निकला कि राजेश अग्रवाल को 96 हजार 694 वोट हासिल करने के बाद भी भाजपा प्रत्याशी डॉ अरुण कुमार से 32 हजार 320 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे। इस बार सपा शहर सीट से किसी नए चेहरे की तलाश में है।
वैश्य समुदाय का शहर सीट से कट सकता है पत्ता
सपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार समाजवादी पार्टी का मूल् वोट बैंक मुस्लिम, यादव के अलावा पीडीए का है। वैश्य समुदाय आमतौर पर सपा को वोट देना पसंद नहीं करता। भले ही पार्टी चाहे इस समुदाय का प्रत्याशी ही क्यों न चुनाव में उतार दे। इसकी वजह सुरक्षा को माना जाता है। एक वैश्य समुदाय के नेता के अनुसार आम तौर पर वैश्य समुदाय यह मानता है कि सुरक्षा के मसले पर सपा सरकार हमेशा ही बैकफुट पर रहती है। सपा की जब भी प्रदेश में सरकार बनती है तो सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन जाता है। जबकि भाजपा राज में वैश्य समुदाय खुद को सुरक्षित महसूस करता है। इसलिए, यह समुदाय जातिगत मसले में न पड़कर सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वोट करता है। सपा चाहे उनके ही समुदाय से प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतार दे। लेकिन वैश्य समुदाय का अधिकांश समर्थन सपा को मिलना अब भी एक बड़ी चुनौती है।
चुनाव प्रभारियों ने हाईकमान को भेजी है अपनी रिपोर्ट
समाजवादी पार्टी ने साल 2022 में नगर निगम के पार्षद राजेश अग्रवाल को शहर सीट से विधानसभा प्रत्याशी बनाया था। वह मजबूत प्रत्याशी होने के बाद भी अपने समुदाय का समर्थन नहीं जुटा पाए। हालांकि चुनाव में उनको 96 हजार से अधिक वोट मिले। लेकिन, भाजपा के डॉ अरुण कुमार सक्सेना सवा लाख से ज्यादा वोट लेकर सपा को करारी मात दे गए। सपा के अंदरुनी सूत्रों के अनुसार साल 2027 के विधानसभा चुनाव में सपा उस बिरादरी के नेता को विधानसभा प्रत्याशी किसी हाल में नहीं बनाएगी, जो अपनी बिरादरी का वोट न ले पाएं। हाल ही में शहर सीट से सपा के चुनाव प्रभारियों ने भी हाईकमान को कोमोबेश ऐसी ही रिपोर्ट सौंपी है। अगर चुनाव प्रभारियों की रिपोर्ट पर सपा हाईकमान ने टिकट ने निर्णय लिया तो शहर सीट से वैश्य समुदाय का पत्ता कट सकता है।