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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
यूपी सरकार के पूर्व लघु उद्योग राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार भगवतसरन गंगवार बरेली ही नहीं, बल्कि यूपी की राजनीति में अपनी पहचान रखते हैं। वह नवाबगंज से पांच बार विधायक रह चुके हैं। बरेली से दो बार और पीलीभीत से एक बार लोकसभा का चुनाव लड़कर खासे वोट प्राप्त कर चुके हैं। आठ साल में भाजपा की प्रचंड लहर में वह दो विधानसभा, एक जिला पंचायत और दो बार लोकसभा चुनाव में हालांकि वह पराजित जरूर हुए, लेकिन उन्होंने प्रत्येक चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों को तगड़ी टक्कर दी। 2022 के विधानसभा चुनाव में नवाबगंज से बहुत कम वोटों से अंतर से पराजित हो गए। कुछ दिन पहले उनके छोटे बेटे का असामायिक निधन हो गया। इससे पहले बड़े बेटे को भी खोना पड़ा। दो जवान बेटों के असामायिक निधन से वह दुखी भी हैं, जो कि स्वाभाभिक भी है। इसके चलते वह कुछ दिन से राजनीतिक गतिविधियों से एक तरह से दूर हैं। यंग भारत न्यूज चैनल के स्थानीय संपादक सुधाकर शुक्ल ने उनसे राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश-
आपका नाम सपा जिलाध्यक्ष के दावेदारों में भी है? क्या आप जिलाध्यक्ष बनना चाहते हैं?
मेरी राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से इस बारे में बात हुई थी। मैं अपनी व्यक्तिगत समस्याओं की वजह से मानसिक रुप से यह जिम्मेदारी उठाने में सक्षम नहीं हूं। इसलिए मैने उनको विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। अभी बरेली में पार्टी के अंदर सब कुछ अच्छा चल रहा है। बाकी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जी कोई आदेश कर देंगे तो उसका पालन करना प्रत्येक कार्यकर्ता का कर्तव्य है। साथ ही मेरा भी।
2027 के चुनाव में कांग्रेस से सपा का गठबंधन न हुआ तो बरेली में क्या फर्क पड़ेगा सपा पर?
भाजपा जबसे केंद्र और प्रदेश की सरकार में आई है। तबसे राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदले हैं। इनके नेता जो भी बोल देते हैं, वही सच हो जाता है। वैसे तो कांग्रेस और सपा गठबंधन हमारे शीर्ष नेतृत्व का विषय है। मगर, कांग्रेस को बड़ा दल होने के नाते बड़ा दिल भी दिखाना चाहिए। हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जी ने हमेशा गठबंधन के मामले में बड़ा दिल दिखाया है। चाहे वह बसपा से गठबंधन
हो या फिर कांग्रेस सहित अन्य दलों के साथ।
एनडीए और इंडिया गठबंधन में क्या फर्क है आपकी नजर में?
निश्चित रुप से बड़ा फर्क है। भाजपा नुकसान करके भी अपने एनडीए के साथी दलों से गठबंधन बनाए रखती है। मगर, कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है। दूसरी बात भाजपा हर चीज पर रिसर्च करके गठबंधन करती है। क्योंकि उनका लक्ष्य देश में लंबे समय तक राज करने के साथ ही विपक्ष को कमजोर रखना और जनता को अपनी खामियों से हटाकर धार्मिक मसलों की ओर मोड़े रखना भी है।
जब भाजपा पूरे देश के अधिकांश राज्यों में सरकार चला रही है तो ऐसे में सपा पीडीए की राजनीति में कहां तक सफल है?
भाजपा और आरएसएस की विचाराधारा देश के दस प्रतिशत पूंजीपतियों को धन देकर बाकी 90 प्रतिशत जनता को भिखारी बनाए रखने की है। मै तो स्वयं भी आरएसएस में रहा हूं। मैने गुरु गोलवलकर के लेख पढ़े- उसमें उन्होंने स्वयं कहा है कि जब भी देश की सत्ता हाथ लगे तो जंगल, जमीन और धन 10 प्रतिशत के हाथ में सौंप दो। सात जन्मों तक आपकी सरकार बनी रहेगी। इसी पैटर्न पर भाजपा 80 लाख जनता को राशन पर निर्भर करके देश का बाकी धन पूंजीपतियों को खुले हाथों से बांट रही है। इससे उनको वोट भी मिल रहा है और अपनी विचारधारा को भी आगे बढ़ाने में सफल हैं।
हमनें पीडीए की बात की। आप सपा की पीडीए राजनीति के बारे में बताइए?
आजादी के बाद जब संविधान निर्माण का मसला चल रहा था। तब, दलित पिछड़े और मुसलमानों को सुविधाएं देने की बात हुई। तो आरएसएस और जनसंघ ने कहा था कि जो आजादी दलित, पिछड़े और मुसलमानों को बराबरी का हक दे। ऐसी आजादी से तो 1000 साल की गुलामी अच्छी। भाजपा तो देश की 90 फीसदी जनता को भिखारी बनाए रखना चाहती है, ताकि हमेशा उसका राज कायम रहे।
बरेली में लंबे समय तक संतोष गंगवार सांसद और केंद्र में मंत्री रहे। आपकी नजर में दोनों में बेहतर कौन है?
काम करने के लिए लिहाज से तो दोनों ही बेकार हैं। संतोष गंगवार ने इतने साल सांसद और मंत्री रहने के बाद भी बरेली की जनता के लिए कोई भी बड़ा काम नहीं किया। छत्रपाल गंगवार को अभी एक साल से भी कम समय हुआ है। अभी इनके बारे में क्या कहें। मगर, दोनों के व्यक्तित्व की तुलना करें तो संतोष गंगवार का प्रदर्शनीय व्यवहार मौजूदा सांसद से बेहतर था। इनको किसी के सामने जो भी बोलना है तो बोल ही देंगे। बाकी, मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा।
संसद से वक्फ बिल पास होकर कानून बन चुका है? क्या कहेंगे?
भाजपा ने वक्फ बिल लाकर 80 और 20 की लड़ाई पूरे देश में शुरू कराई है। वह यह दिखाना चाहते हैं कि हम 80 वालों के साथ खड़े हैं। 20 वालों को घृणा, तृष्णा और अपमानित करेंगे। हमारी पार्टी सपा सबके लिए काम करती है। भाजपा हर चीज में शिगूफा छोड़ती है। उनका हर काम चुनाव के दृष्टि से होता है।
आप अगला विधानसभा चुनाव नवाबगंज से लड़ेंगे या बहेड़ी-भोजीपुरा से?
मैंने अब तक जो राजनीति की है, वह हमेंशा अरुचि से की है। मेरी राजनीति में कभी भी रुचि नहीं थी। मेरी रुचि अध्यात्म में थी। मगर, मेरे गुरु जी ने राजनीति में आने की सलाह दे दी। नवाबगंज की जनता ने मुझे पांच बार एमएलए बनाया। नेताजी ने मुझे दो बार अपनी सरकार में मंत्री बनाया। अगर चुनाव लड़ना होगा तो नवाबगंज की जनता को क्यों छोड़ूंगा।