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समाजवादी पार्टी को SC से झटका, पीलीभीत कार्यालय से बेदखली मामले में कोर्ट ने उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में समाजवादी पार्टी के कार्यालय के लिए आवंटित जमीन को रद्द करने से संबंधित मामले में दायर याचिका पर सुनवाई से जल्द इनकार कर दिया है. कोर्ट ने समाजवादी पार्टी को सिविल कोर्ट जाने को कहा है।

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Sudhakar Shukla
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में समाजवादी पार्टी के कार्यालय के लिए आवंटित जमीन को रद्द करने से संबंधित मामले में दायर याचिका पर सुनवाई से जल्द इनकार कर दिया है। कोर्ट ने समाजवादी पार्टी को सिविल कोर्ट जाने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि सिविल कोर्ट में पहले से ही याचिका लंबित है, इसलिए आप वही पर जाकर अपनी बातों को रखे. जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया गया वह मामले को गुण दोष के आधार पर कुछ नही कर सकता है।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि, जिसमें पार्टी को नगर निगम के प्लॉट पर औने-पौने दामों पर कार्यालय मिलने के तरीके को अस्वीकार किया गया। साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह आवंटन पार्टी के सत्ता में रहते हुए राजनीतिक शक्ति के दुरुपयोग पर आधारित है।

पहले भी खारिज हो चुकी है याचिका

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बता दें कि इससे पहले दायर याचिका को कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि याचिका दायर करने में 988 दिन की देरी हुई है, लिहाजा सुनवाई नही हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले की वैधता पर सवाल उठाया गया था, जिसमें समाजवादी पार्टी के तत्कालीन पीलीभीत जिला अध्यक्ष द्वारा व्यक्तिगत हैसियत से दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया गया था और आदेश दिया गया था कि उसी कारण से नई याचिका दायर करने की कोई स्वतंत्रता नही दी जाएगी.

समाजवादी पार्टी की ओर से दायर एसएलपी में कहा गया था कि उस समय के पीलीभीत जिला अध्यक्ष ने यह याचिका पार्टी की ओर से नही बल्कि व्यक्तिगत रूप से दायर की थी, उन्हें पार्टी की तरफ से कोई निर्देश नहीं था. ऐसे में पार्टी का पक्ष सही तरीके से कोर्ट के सामने नहीं रखा गया। साथ ही यह भी कहा गया था कि समाजवादी पार्टी पीलीभीत नगर पालिका परिषद के गलत तरीके से लिए गए अचानक लिए गए और अवैध फैसलों के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का इरादा रखती है, लेकिन ऐसा नही कर सकती, क्योंकि विवादित फैसला उसे आवंटन रद्द करने के मामले में नई याचिका दायर करने से रोकता है।

याचिका में यह भी कहा गया  था कि उन्हें सुनवाई का मौका नही दिया गया और ना ही संबंधित तथ्यों और कानूनों को ध्यान में रखते हुए फैसला लिया गया। पार्टी का कहना था कि वे लगातार किराया जमा कर रहे थे और जनवरी 2021 तक का भुगतान किया जा चुका है. याचिका में कहा गया था कि अधिकारी ने राजनीतिक दबाव में आकर यह फैसला लिया है.

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