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श्रीराम को हुआ वनवास, मिलने पहुंचे भरत

बाबा त्रिवटीनाथ मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास पंडित उमाशंकर व्यास ने कहा कि एक तरफ श्रीराम और भरत का भाई का संबंध है और दूसरी ओर भरत अपने बड़े भाई को अपना स्वामी मानते हैं।

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Sudhakar Shukla
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

बाबा त्रिवटी नाथ मंदिर के श्री रामालय में आयोजित श्रीरामचरितमानस कथा  के तृतीय  दिवस परम पूज्य कथा व्यास पं उमाशंकर व्यास  ने कहा कि प्रभु श्री राम और भरत का भ्रात प्रेम अति अनुपम और प्रेरणादायक है।
कथा व्यास कहते हैं कि एक तरफ राम और भरत का भाई का संबंध है और दूसरी ओर भरत जी अपने बड़े भाई को अपना स्वामी मानते हैं‌।किसी भी युग में अपनी माता के द्वारा मिला हुआ राजपाठ मिलने पर यह कहना कि यह राजपाठ मेरे बड़े भाई श्री राम की धरोहर स्वरूप है और उनकी पादुका को अपने स्वामी की निशानी मान कर अपने धर्मनिष्ठ कर्म का पालन किया।

भक्ति प्रभु के प्राप्ति हो गई और उसको सन्मार्ग की प्राप्ति हो जाती है

कथा व्यास कहते हैं कि श्री राम चरित मानस में हर पात्र में मर्यादा की पराकाष्ठा उसी के द्वारा संभव हुई जिसने श्रीराम को सब कुछ मान लिया अर्थात जिसकी भक्ति प्रभु के प्राप्ति हो गई और उसको सन्मार्ग की प्राप्ति हो जाती है।
कथा व्यास कहते हैं कि जब मनुष्य प्रभु के पथ पर अग्रसर हो जाता है तब उसको सत्यता का बोध हो जाता है  और जब सत्य का रास्ता मिल जाता है तब निश्चित ही कल्याण संभव है।
कथा व्यास कहते हैं कि श्री भरत जी अपने प्रभु श्रीराम से अगाड्य प्रेम करते थे।उन्होंने कहा की यदि प्रभु चौदह वर्ष में तनिक भी विलम्ब करेंगे तो मैं जीवित नहीं रहूंगा।
कथा व्यास कहते हैं कि लक्ष्मण जी को यह भ्रम हुआ कि भरत अपनी सेना के साथ उन्हें मारने आ रहे हैं परंतु सत्य जानकर कि भरत अपने स्वामी राम के पास भक्ति भाव के साथ आ रहे हैं तथा अयोध्या का राज पाठ के लिये कहते हैं कि यह सब प्रभु राम का है तब लक्ष्मण जी को संताप होता है तथा ग्लानि होती है। 
कथा ऋषि पं उमाशंकर व्यास ने कहा कि भरत शब्द के भ का अर्थ भक्ति, र का अर्थ रस और त का अर्थ तत्व है। जहां पर भक्ति रूपी गंगा, प्रेम रस रूपी संगम स्थल हो, उस मूर्तिमान को प्रयाग कहते हैं। इसलिए भरत को प्रयाग भी कहा गया है। रामचरितमानस के अयोध्या कांड में 222 वें दोहे की पंक्ति में इसका उल्लेख किया गया है।  
कथा ऋषि पं उमाशंकर व्यास  ने कहा कि राम वनागमन की सूचना पर ननिहाल से भरत अयोध्या वापस आते हैं और कुल गुरु वशिष्ठ से श्री राम को भी वन जाने का कारण पूछते हैं तो वशिष्ठ जी भरत को मनुष्य के प्रारब्ध के बारे मे बताते हैं। कहते हैं कि भाग्य के आगे जीव का कोई वश नही चलता।मनुष्य को प्रारब्ध से मिलने वाली विषमताओं  को अपने सत् कर्मो के द्वारा 
संमार्ग पर लाने की चेष्टा करना ही परम  धर्म तथा जीवन का मूल होता है।

कथा में सुविख्यात श्रीमद्भागवत कथा व्यास पं देवेन्द्र उपाध्याय जी का मन्दिर सेवा समिति की  ओर से मन्दिर सेवा समिति के प्रताप चंद्र सेठ तथा मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल ने कथा के मध्य में पधारने पर स्वागत एवं अभिनंदन किया।
कथा के उपरांत काफी संख्या में भक्तों ने श्रीरामचरितमानस की आरती में भाग लिया तथा प्रसाद वितरण हुआ।
आज ही कथा में मंदिर सेवा समिति के प्रताप चंद्र सेठ ,मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल ,सुभाष मेहरा तथा हरिओम अग्रवाल  का मुख्य सहयोग रहा।

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