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जीव मात्र के कल्याण का साधन श्रीमद् भागवत कथा :आचार्य श्याम बिहारी चतुर्वेदी

जनकपुरी स्थित श्री हर मिलाप शिव शक्ति मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के द्वितीय दिवस पर श्रीधाम वृंदावन से पधारे प्रतिष्ठित कथा वाचक आचार्य श्याम बिहारी चतुर्वेदी ने श्रद्धालुओं को भावविभोर करने वाली कथा का श्रवण कराया।

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Sudhakar Shukla
Shyam Bihari Chaturvedi
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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जनकपुरी स्थित श्री हर मिलाप शिव शक्ति मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के द्वितीय दिवस पर श्रीधाम वृंदावन से पधारे प्रतिष्ठित कथा वाचक आचार्य श्याम बिहारी चतुर्वेदी ने श्रद्धालुओं को भावविभोर करने वाली कथा का श्रवण कराया। उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि इस मानव जीवन का परम उद्देश्य श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण एवं उस पर चिंतन करना है, क्योंकि इसी के माध्यम से जीव ईश्वर से जुड़कर मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होता है।

परीक्षित का जन्म और धर्मात्मा राजा

कथा को आगे बढ़ाते हुए आचार्य श्याम बिहारी चतुर्वेदी ने श्रद्धालुओं को राजा परीक्षित के जन्म की मार्मिक कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि महाराज परीक्षित न केवल वीर और धर्मनिष्ठ राजा थे, बल्कि वे प्रजा को अपनी संतान के समान मानकर निष्कलंक सेवा भाव से राजकार्य करते थे। उनका जीवन आदर्श राजधर्म और जनकल्याण की मिसाल था, जो आज भी समाज को सेवा, संयम और कर्तव्यपरायणता का संदेश देता है।

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धर्म और पृथ्वी का संवाद

एक दिन भ्रमण करते हुए राजा परीक्षित ने एक अद्भुत दृश्य देखा: एक बैल जिसके तीन पैर कटे हुए थे और एक गाय उस बैल की दशा देखकर रो रही थी। आचार्य जी ने बताया कि वह गाय कोई और नहीं, साक्षात पृथ्वी थीं और वह बैल धर्म का स्वरूप था। यह प्रसंग धर्म और पृथ्वी के बीच का संवाद था। धर्म रूपी बैल ने गाय रूपी पृथ्वी से उसके रोने का कारण पूछा। पृथ्वी ने उत्तर दिया कि जब पृथ्वी पर धर्म की वृद्धि होती है, तो उसे अत्यंत प्रसन्नता होती है, लेकिन जब धर्म का लोप होने लगता है, तो उसे बहुत कष्ट होता है। वर्तमान में धर्म का क्षय हो रहा है और अधर्मी लोग बढ़ रहे हैं, जिससे पृथ्वी अपने भविष्य को लेकर चिंतित है।

कलयुग का आगमन और परीक्षित का क्रोध

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इसी बीच, एक काला पुरुष कलयुग के रूप में प्रकट हुआ और गाय-बैल को मारने लगा। अपने राज्य में ऐसा अत्याचार देखकर परीक्षित क्रोधित हो उठे और धनुष पर बाण चढ़ाकर उस पुरुष को ललकारा। भयभीत कलयुग ने अपना परिचय दिया और राजा से रहने के लिए स्थान मांगा।

कलयुग के निवास स्थान

परीक्षित ने कलयुग को चार स्थान दिए: जुआ खेलने की जगह, वेश्यावृत्ति का स्थान, हिंसा और मारकाट का स्थान और मदिरापान का स्थान। कलयुग ने इन स्थानों को अपने लिए उपयुक्त नहीं बताया, जिसके बाद राजा ने उसे पांचवां स्थान स्वर्ण में दिया, विशेषकर अन्याय से कमाए गए सोने में।

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कलयुग का प्रभाव और श्रृंगी का श्राप

कथा में आगे बताया गया कि अन्याय के मुकुट पर बैठने के कारण कलयुग का प्रभाव परीक्षित पर पड़ने लगा, जिससे उन्होंने शमीक ऋषि के आश्रम में उनका अपमान कर दिया और उनके गले में मरा हुआ सांप डाल दिया। शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने अपने पिता का अपमान देखकर परीक्षित को श्राप दे दिया कि सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से उनकी मृत्यु हो जाएगी।

शुकदेव जी का आगमन और भागवत कथा का महत्व

शुकताल में परीक्षित को श्री शुकदेव जी महाराज के दर्शन हुए। परीक्षित ने उनसे पूछा कि जिसकी मृत्यु निकट हो उसे क्या करना चाहिए और जीव का शाश्वत कल्याण किसमें है। तब श्री शुकदेव जी ने श्रीमद् भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि यही प्रत्येक जीव के कल्याण का साधन है और इसी के श्रवण से भवसागर पार किया जा सकता है।

इस अवसर पर भजन गायक जगदीश भाटिया, दीपक भाटिया, सुनील मिश्रा, अमित, केशव मिश्रा, राजेश, निर्मला देवी, विनोद खंडेलवाल, श्याम दीक्षित और दूर-दूर से आए श्रोता समुदाय उपस्थित रहे।

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