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सुन्नी हलके में मोहर्रम की नौ तारीख पर शहीदाने कर्बला की अकीदत का जोश नजर आया। शहर भर में इमामबाड़ों पर रखे तख्त, ताजियों की जियारत के लिए पूरी रात लोग पहुचते रहे। नजरा यह था कि कोई नियाज नजर करता, फल फूल और मेवों का चढ़ावा चढ़ाता तो कोई अलम और शबीह पेश करता नजर आया। साथ ही शिद्दत से लोग मन्नतो मुराद भी मांगते रहे।
रात शुरू होते ही लोग अपने घरों से तख्तो ताजियों की जियारत के निकल पड़े थे। देखते ही देखते तमाम इमामबाड़ों में अकीदतमंदों की भीड़ उमड़ने लगी। इसमें महिलाओं की भी काफी संख्या थी। युवा भी एक इमामबाड़े से दूसरे पर पहुंचने के लिए भागते रहे। कोई पैदल टोली में दिखा तो कुछ बाईक पर फर्राटा भरते पहुंते रहे। यह मंजर पूरी रात शहर में बना रहा।
खात तौर से पुराना शहर के अब्बासी गली का इमामबाड़ा मदीना शाह, सैलानी, नवाजा शेखान, कांकर टोला, हजियापुर, रोहली टोला, खदना, जगतपुर, नई,बस्ती, मोहन तालाब, कोट, घेर जाफर खां, सूफी टोला, मीरा की पैंठ और किला क्षेत्र के जसोली, जखीरा, मलूकपुर के अलावा शहर के आजमनगर, शाहबाद, ब्रह्मपुरा, गुलाबनगर, बानखाना आदि के इमामबाड़ों पर खूब रौनक रही।
इन इमामबाड़ों के सभी तख्तों ताजिये सुबह बाकरगंज स्थित कर्बला पहुंचना शुरू जाएंगे। जहां फूल और चढ़ावे दफ्न किए जाएंगे। यह सिलसिला दिन भर रहेगा।
मलूकपुर में खानेकाबा के नक्शे को देखने के लिए लगी रही भीड़
मोहर्रम की नवीं रात को जहां तमाम तख्त व ताजिए सजाए गए। वहीं तमाम रौजे और इस्लामी झांकियां भी सजाई गईं, जो आकर्षण का केंद्र बनी रहीं। खास तौर से मलूकपुर में 1937 का नक्शा ए हरम शरीफ रहा, जिसे देखने के लिए पूरी रात भारी भीड़ लगी रही। मोहम्मद शुऐब ने बताया कि उनके लकड़ दादा हाजी अमीर उल्लाह जब हज से वापस लौटे तब यह काबा शरीफ का नक्शा लेकर आये थे और मोहर्रम की नौ तारीख को नक्शा सजाया। तब से लेकर आज 88 वर्ष बीतने के बाद भी रोज़ा ए मुबारक को सजाया जा रहा है। इस दौरान मोहम्मद शोएब, इंजीनियर अनीस अहमद खां, पम्मी खां वारसी, हाजी उवैस खान, हाजी शोएब खान, मोहम्मद रुशेद, मुजाहिद खां भूरा, अशफाक अहमद खास तौर से पहुंचे। इसी तरह शहर के मोहल्ला जखीरा, जसोली, कंघीटोला और पुराना शहर के अब्बासियों वाले चौक, कांकर टोला, कोट, सैलानी, सूफी टोला, हजियापुर आदि में भी तमाम रौजे और झांकिया सजाई गईं।