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समाजवादी पार्टी
वाईबीएन संवाददाता बरेली।
आई लव मोहम्मद पर उठे विवाद के बाद बरेली में उपद्रव, पथराव और पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई से राजनीतिक समीकरण भी बदलने लगे हैं। खासतौर से भाजपा और सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बनने का सपना देखने वाले दावेदारों को तौकीर प्रकरण से तगड़ा झटका लगा है। अब बरेली की शहर और कैंट सीटों पर वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना भी बढ़ गई है। अगर आईएमसी मुखिया मौलाना तौकीर मामले में प्रशासन अपना एक्शन आगे भी जारी रखता है तो 2027 के चुनाव में ध्रुवीकरण तय है। इसका सबसे ज्यादा असर सपा पर पड़ेगा। सपा में कैंट सीट से मुस्लिम उम्मीदवारों की दावेदारी कमजोर पड़ेगी। समाजवादी पार्टी भी माहौल को देखते हुए मुस्लिम दावेदारों का मोह छोड़कर हिंदू प्रत्याशियों पर दांव लगा सकती है।
जब भी विधानसभा के चुनाव आते हैं तो शहर के एक चिकित्सक सपा से कैंट सीट पर अपने टिकट की दावेदारी ठोंकने लगते हैं। हालांकि उनको हर बार निराशा ही हाथ लगती है। फिर भी वह मानते नहीं है। वह कैंट से विधायक बनने का सपना बरसों से पाले बैठे हैं। पिछली बार यानी कि 2022 के चुनाव में भी उन्होंने कैंट सीट से टिकट की दावेदारी ठोकी थी। मगर, तब सपा ने पूर्व मेयर सुप्रिया ऐरन पर दांव लगाया था। इसके बाद वही चिकित्सक एक बार फिर कैंट सीट पर सपा से टिकट मांगने लगे। हालांकि अभी विधानसभा चुनाव में एक साल से भी ज्यादा वक्त है। मगर, हाल ही में आई लव मोहम्मद पर मौलाना तौकीर प्रकरण ने जिस तरह से शहर में सांप्रदायिक माहौल गरमाया है। उसका असर सपा के मुस्लिम दावेदारों पर पड़ना तय है। वर्ष 2017 में कैंट सीट पर कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी को उतारा था। तब उनको केवल अपने ही समुदाय का वोट मिल पाया था। हिंदू समाज ने उनको वोट देना पसंद नहीं किया। उसका नतीजा यह निकला कि तमाम ध्रुवीकरण के बाद भी वह चुनाव में 10 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव हार गए थे। उसके बाद 2022 में सपा ने शहर और कैंट दोनों सीटों पर हिंदू प्रत्याशी मैदान में उतारे। दोनों को वोट भी अच्छे मिले। मगर, तमाम गुणा-भाग के बाद सपा के दोनों प्रत्याशी भाजपा की काट नहीं खोज पाए।
पीडीए पंचायत और शेरो-शायरी करके रिझाने की कोशिश
सपा ने हाल ही में प्रत्येक विधानसभा सीट पर चुनाव प्रभारी भेजकर टिकट के दावेदारों का सर्वे कराया था। सूत्रों के अनुसार उस सर्वे में शहर और कैंट सीट पर मुस्लिम दावेदारों की स्थिति कमजोर पाई गई। सपा के हाईकमान को जो सर्वे रिपोर्ट भेजी गई है, उसमें 2027 के चुनाव में शहर और कैंट सीट से हिंदुओं में ब्राम्हण, वैश्य या कायस्थ बिरादरी से प्रत्याशी उतारकर चुनाव लड़ाने की सलाह दी गई है। दूसरी ओर बरेली के एक जाने-माने राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखने वाले चिकित्सक भी सपा में कैंट सीट से अपनी दावेदारी जताते आए हैं। वह पीडीए पंचायत और शेरो-शायरी की महफिल सजाकर सपा नेतृत्व को रिझाने में लगे हैं। मगर, उनके साथ असली दिक्कत है कि चिकित्सक का निजी अस्पताल पहले से ही विवादों में है। एक तो नाम को लेकर अस्पताल विवाद में फंस गया था। वहीं दूसरी चिकित्सक के बारे में यह भी मशहूर है कि अगर उनके अस्पताल में कोई मरीज चार-छह दिन भी धोखे से भर्ती हो जाए तो बिल चुकाने के लिए उसे अपना घर या जमीन बेचनी पड़ेगी। मरीजों से भरपूर रकम वसूलने के बाद भी चिकित्सक दंभ समाजसेवा का भरते हैं। उसी तथाकथित समाजसेवा के बल पर ही सपा से टिकट की दावेदारी करने में लगे हैं। मगर, हाल ही में मौलाना तौकीर प्रकरण के बाद जिस तरह से शहर की फिजा में ध्रुवीकरण नजर आने लगा है। उसमें उनकी दावेदारी कमजोर मानी जाने लगी है। दूसरी ओर चिकित्सक के एक भाई भी जिस विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांग रहे हैं। उससे समाजवादी पार्टी अभी से असहज है क्योंकि उस क्षेत्र से वर्तमान में सपा के विधायक मौजूद हैं। वह उनकी परंपरागत सीट मानी जाती है। बहरहाल, मौलाना तौकीर प्रकरण वर्तमान में पुलिस-प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है। मगर, इसी बीच वर्तमान माहौल को देखते हुए राजनीतिक पंडित अभी से 2027 के चुनाव का गुणाभाग लगाने में व्यस्त हो गए हैं।