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बरेली, वाईबीएन संवाददाता। इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना, माहे मुहर्रम, जल्द ही शुरू होने वाला है। माहे मुहर्रम का चांद 26 जून (गुरुवार) शाम को देखे जाने की संभावना है, जिसके साथ ही 27 या 28 जून से 1447 हिजरी का आगाज़ होगा। यह महीना अज़ीम कुरबानी के साथ इस्लामी साल का अंत करता है और शहादत से नए साल की शुरुआत। दरगाह से जुड़े नासिर कुरैशी ने बताया कि इस तरह यौमे आशूरा (10वीं मुहर्रम) 6 या 7 जुलाई को पड़ेगा।
दरगाह आला हज़रत के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां ने मुहर्रम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, "पहली मुहर्रम को इस्लाम के दूसरे खलीफा हज़रत उमर फारूक रदियाअल्लाहु अन्हु की शहादत हुई।" उन्होंने बताया कि आज से चौदह सौ साल पहले, सन 680 ईस्वी को पैगंबर-ए-इस्लाम के प्यारे नवासे हज़रत इमाम हुसैन रदियाअल्लाहु अन्हु व उनके 72 साथियों को कर्बला की तपती धरती पर भूखा-प्यासा शहीद कर दिया गया था।
मुफ्ती अहसन मियां ने जोर देकर कहा कि "सब्र, हक्कानियत, अमन की खुशबू और इंसानियत का नाम हुसैनियत है।" उन्होंने बताया कि हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों ने जालिम हुकूमत के सामने अपना सर झुकने नहीं दिया, बल्कि सर कटाकर इस्लाम का परचम बुलंद किया। उन्होंने कहा कि कर्बला का मैदान बुराई के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने का पैगाम भी देता है।
मुफ्ती अहसन मियां ने मुसलमानों से इस मुहर्रम में शहीद-ए-कर्बला को ख़िराज पेश करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा भलाई के काम करने का आह्वान किया। उन्होंने गैर-शरई कामों से बचते हुए नमाज़ की पाबंदी, कुरान की तिलावत, और रोज़ा रखने के साथ इमाम हुसैन की याद में महफ़िल सजाने और लंगर का एहतिमाम करने की सलाह दी।
उन्होंने लंगर के संबंध में एक खास हिदायत भी दी: "लंगर को लुटाने की जगह बैठ कर खिलाएं, क्योंकि इससे रिज़्क की बेहुरमती होती है।" उन्होंने बीमारों, यतीमों, बेवाओं और बेसहारों का खास ख्याल रखने, सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने और ज़्यादा से ज़्यादा पौधे रोपकर हरियाली बढ़ाने की अपील की। मुफ्ती अहसन मियां ने पौधारोपण को "हमारे नबी की सुन्नत" बताते हुए कहा कि पेड़ लगाकर अपने शहर को हरा-भरा कर पर्यावरण बचाने के लिए काम करना चाहिए। यह महीना त्याग, बलिदान और सामाजिक सद्भाव का संदेश देता है।