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जिले में किसानों द्वारा फसल लोन लेने की रफ्तार में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है, जो कृषि क्षेत्र के लिए एक चिंताजनक संकेत है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में जहां 1.64 लाख किसानों ने फसल ऋण का लाभ उठाया था, वहीं वित्तीय वर्ष 2024-25 में यह संख्या घटकर मात्र 1.50 हजार रह गई है। किसानों की संख्या में यह कमी ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। हालांकि, इस गिरावट के बावजूद, ऋण की राशि में तीन सौ सत्तावन करोड़ रुपये से अधिक की वृद्धि हुई है। आंकड़ा दर्शाता है कि कम किसानों ने बड़े ऋण लिए हैं। यह प्रवृत्ति छोटे और सीमांत किसानों के लिए ऋण पहुंच में कमी का संकेत हो सकती है, जो अक्सर कृषि गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता पर अधिक निर्भर करते हैं।
दो वित्तीय वर्ष के आंकड़ों से यह स्पष्ट हो रहा है कि बैंक किसानों को ऋण देने में पहले जैसी सक्रियता नहीं दिखा रही हैं। सूत्रों की मानें तो बैंकों को फसल ऋण देने में कई तरह की चुनौतियां और जोखिम दिखाई देते हैं, जिसके चलते वे अपेक्षाकृत बड़े और सुरक्षित ऋणों को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका सीधा खामियाजा छोटे और मध्यम वर्ग के किसानों को भुगतना पड़ रहा है, जिन्हें खेती के लिए पूंजी की तत्काल आवश्यकता होती है। बैंक पहुंचे किसान हरीश कुमार बताते है कि बैंक अधिकारी अक्सर आवेदन प्रक्रिया को जटिल बना देते हैं, या फिर आवश्यक दस्तावेजों के नाम पर अनावश्यक विलंब करते हैं। कई बार तो बैंक शाखाओं में किसानों को पर्याप्त मार्गदर्शन भी नहीं मिल पाता, जिससे वे निराश होकर लौट जाते हैं।
सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत किसानों को सस्ते ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराने का प्रावधान है, लेकिन यदि बैंक ही इस प्रक्रिया में सहयोग नहीं करेंगी तो इन योजनाओं का लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाएगा। किसान राजाराम ने बताया कि ऋण न मिलने की स्थिति का सीधा असर कृषि उत्पादन पर पड़ रहा है। समय पर ऋण न मिलने से किसान उन्नत बीज, खाद की खरीद में असमर्थ हो जाते हैं, जिससे उनकी फसल की पैदावार प्रभावित होती है। इससे न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, बल्कि जिले की कृषि अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।